लघुकथा: बेटी का त्याग

सोचते सोचते उसने एक बड़ा निर्णय लिया और सोने की कोशिश करने लगी। नींद उससे कोसों दूर जा चुकी थी….

लघुकथा: बेटी का त्याग

फीचर्स डेस्क। रात के ग्यारह बजे फोन की घंटी बजी सुमन ने भागकर फोन उठाया उधर से भाई शेखर  बोल रहा था। शेखर ने धीरे से पूछा," सुमन मां बाबूजी तो सो गए ना?

"हा, हा क्या बात है?सुमन ने पूछा "इसीलिए मैं देर से फोन कर रहा हूं ताकि तेरे से बात अकेले में हो सके और मैं तुझे सब बता पाऊं। यह जो बाबूजी रोज मुझे इंडिया आने के लिए कहते हैं और लड़की देखकर शादी करने की बात करते हैं। सुमन सुन, मैं तो अभी इंडिया आ  ही नही सकता हूं ।न ही मेरे लिए कोई लड़की देखो और ना ही किसी लड़की वाले को वेट करवाओ" और उसने सुमन को अपनी सारी समस्या समझा दी और बोला," अब जो भी करना है तुम करो। तुम साल  छह महीने जैसे तैसे सँभालो। फिर  कोई रास्ता निकाल लेंगे।"

सुमन   शेखर  से  बोली , " भाई मैं सब संभाल लूंगी।तुम चिंता मत करो।" यह कहकर फोन रख दिया। फोन रखते ही सुमन अपने बिस्तर पर धम से बैठी। माथे पर हाथ रखे वह सोच रही थी शेखर को तो मैंने कह दिया की चिंता मत कर, मैं सब संभाल लूंगी पर छह महीने साल रोकूंगी कैसे ? सोचते सोचते उसने एक बड़ा निर्णय लिया और सोने की कोशिश करने लगी। नींद उससे कोसों दूर जा चुकी थी।

अगले हफ्ते उसे देखने के लिए लड़के वाले आए तो सुमन ने उनसे बड़ा रूखा और अकडू व्यवहार किया। लड़के वाले ना करके चले गए पर सुमन के बाबूजी उनके जाने के बाद उस पर बहुत गुस्सा हुए कि अच्छा खासा लड़का था, भगा दिया। आखिर तुम चाहती  क्या हो?"

इधर सुमन यूं ही किसी ना किसी तरीके से लड़कों को ना करती और करवाती रही। उधर शेखर बाबूजी को चार महीने में आऊंगा छह महीने में आऊंगा कहता रहा ।बाबूजी कहते रहते सुमन के चक्कर में बेचारा शेखर भी इंडिया नहीं आ रहा। चाहता है बहन की शादी पहले तय हो जाये। कही वो इंडिया चला गया और हम उसकी शादी पहले न कर दे।  पर एक यह है कि कोई लड़का इसको पसंद ही नही आ रहा। सुमन सुनती पर चुप रहती ज्यादा दुखी होती तो बाथरूम में जाकर रो लेती पर मां बाप के आगे वही अकड़ो सी बनी रहती । सुमन का दिन सुबह पांच बजे शुरू होता दमे से जुड़ी मां और हार्ट के मरीज बाबूजी को चाय देने से और रात के ग्यारह कब बज जाते नौकरी , डॉक्टर ,दवाइयों में पता ही नहीं चलता ।धीरे धीरे चेहरे की लाली कम होने लगी। चिंता की लकीरें बढ़ने लगी ।कई बार मां बाबूजी को बात करते सुनती तो उसकी रही सही नींद भी उड़ जाती ।एक दिन उसने सुना बाबूजी मां को कह रहे थे इस लड़की के चक्कर में तो हम कभी अपनी बहू भी नही ला पाएंगे। बेचारा शेखर इस के चक्कर में इंडिया नहीं आ रहा। इसकी सगाई हो तो वह इंडिया आए ।इसने सगाई करवानी नहीं। इसलिए मैं तो कल शेखर को कहता हूं कि बेटा पहली फ्लाइट से आ जा नहीं तो हमारा मरा मुंह देखेगा ।आखिर शेखर को बाबूजी के इन शब्दों के आगे अपना फैसला बदलना पड़ा और  उसे इंडिया आने का प्रोग्राम तय करना पड़ा। रात को फिर देर से शेखर सुमन को फोन पर कहने लगा," सुमन अब तुम ही संभाल लेना। मैं सबको लेकर आ रहा हूं।" सुमन ने शेखर से कहा ,"भाई आप सब को लेकर आओ। बाकी मैं सब देख लूंगी।" 

सुमन ने चुपचाप सब  तैयारियां करनी शुरू कर दी । घर की साफ सफाई , बेडशीट , तकिये, कम्बल सब धोकर, ड्राइक्लीन करवा कर रख लिये।खाने पीने का सामान , राशन, बेकरी आइटम, टिंड फूड, कोल्ड ड्रिंक्स की बॉटल्स जो भी उसे समझ आया ।  

शेखर ने एयरपोर्ट पर पहुंच कर सुमन को फोन किया," हम एक घंटे में घर पहुंच जाएंगे। मेरे को बहुत घबराहट हो रही है । तुम सब संभाल लोगी ना?" 

सुमन बोली, "हां , हां भाई चिंता क्यों करते हो। सब ठीक है।" सुमन कभी गेट पर आती तो कभी अंदर माता-पिता को देखती जो खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे ।बाबू जी के पैर तो जमीन पर नहीं पड रहे थे । उन्होंने फोन करके बीकानेर से शेखर की पसंद की गुजिया मंगवाई। शाम के लिए उसकी पसंद का सरसों का साग मंगवाया और सुमन की मां से कहा ,"अपनी देखरेख में इसे जितना स्वाद बनवा सकती है उतना स्वाद बनाना। मेरा बेटा इतने सालों बाद घर आ रहा है बस अब बहू और ले आये। मेरा बेटा इतना लायक है लड़कियों की तो लाइन लग जाएगी।"

गाड़ी की आवाज सुनते ही सुमन गेट की तरफ भागी। भाई को वही गेट पर रुकने को कहा। फिर मां बाबूजी की तरफ आई और आरती का थाल जो उसने पहले ही सजाया हुआ था उठा कर लाई और बोली," आओ भाई आ गया है। दरवाजे पर है। आपकी बहू और पोता भी है। मां बाबूजी बहू की आरती उतारो और घर के अंदर प्रवेश करवाओ।"सुनकर बाबूजी गिरते-गिरते  बचे। सुमन ने एक हाथ से उनको सहारा जो दे दिया था। फिर दोनों को बाहर ले आई। मां बाबूजी को देखते ही शेखर पैरों में पड़ गया। मां बाबूजी मुझे माफ कर दो। मां बोली,"शेखर ठीक है तूने जो किया पर तूने हमसे ये इतनी बड़ी बात छुपाई।"

" मां, यह तो सुमन ने हिम्मत बंधाई वरना मैं तो अब भी आने की हिम्मत न कर पाता।" शेखर ने कहा। "सुमन तुझे पता था , तुम फिर भी हमारे ताने सुनती रही।"माँ ने रोते हुए सुमन को एक हाथ से अपने पास करते हुए कहा। 

बाबूजी एकदम बोले," अब समझ आया तू हर लड़के को मना क्यों करती रही और लड़के वालों को देखते ही अजीब व्यवहार क्यों करती थी।" 

मां बोली," मैं तो आपको रोज ही कहा करती थी हमारी सुमन ऐसी तो नहीं, पता नहीं क्या बात है, अच्छी भली लड़की को किसकी नजर लग गई ।"मां की आंखों में आंसू थे। बाबूजी सुमन से बोले," मेरी बच्ची मुझे माफ कर दे । पिछले एक साल से मैं तुझे बहुत बुरा भला कहता रहा ------" इसके आगे के शब्द वह बोल ही नही पाए कहते कहते  उनका  गला भर आया ।शेखर की कनाडियन पत्नी जो हिंदी सीख चुकी थी सब सुनकर बहुत हैरान हुई और बोली," क्या भारत में लड़कियां मां बाप और भाई को इतना प्यार करती हैं कि उनके लिए वे इतना बड़ा त्याग कर देती  हैं।" पड़ोसन शीला मौसी जो यह सब देख कर आ गई थी कहने लगी," इतना प्यार और त्याग करती हैं तभी तो इस देश में माँ की कोख ही बेटी की कब्र बन जाती है।

इनपुट सोर्स: डॉ अंजना गर्ग