Mother's Day Special: सास में देखा मां का रूप
सास भी होती है मां , मेरी एक नहीं दो माएं है, ये जाना मैंने अपनी शादी के बाद।
फीचर्स डेस्क। उस समय अधिकांश घरो मे उषा हाथ सिलाई मशीन हुआ करती थी।औरते घर की अधिक तर कपडों की सिलाई उस पर करती ,टेलर की दुकान पर कपड़े खास तौर पर बच्चे और स्त्रियों के कम ही जाते थे।रीना जब ब्याह कर ससुराल आई तो सास ने अपने ब्लाऊज की ,और ननद के कुर्ते की कटिंग कर उससे कहा की इन पर मशीन मार दे।
दो दिन बीत गए कपड़े वैसे ही रखे थे।पूछने पर रीना बोली --"माँ जी मुझे सिलाई नही आती।"
"चलो काज बटन कर दो,दूसरे मे।"
"रीना चुप"
"नही आता?"सास ने पूछा,रीना ने नहीं मे सिर हिला दिया।सास मुस्करा दी।
"स्वटेर वगैरह बुन लेती हो की वो भी नहीं।"
रीना को रोना आगया,ब्याह के छह माह ही हुए थे, पढाई के अलावा ये काम उसने किये ही नहीं।पक्का माँ जी नाराज होंगीं ।अम्मा से शिकायत करेंगीं ।बिटिया को ये छोटे छोटे घर गृहस्थी के काम भी नही सिखाये।लेकिन माँ जी ने कुछ नहीं कहा।अपने काम मे व्यस्त हो गई।
"रीना बेटा मेरे पास आओ,ये ऊन,और सलाईयाँ है।देखो फंदे कैसे डालते है।"रीना की ट्रेनिंग शुरु,कढ़ाई करना,काज करना,कपड़ों की कटिंग,सिलाई,तरह तरह डिजाईन के स्वटेर, रीना पारंगत हो गई अपनी गुरु सासू माँ के प्रशिक्षण मे।
इनपुट सोर्स: सुनीता मिश्रा
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