Rose day Special : सूखा गुलाब...

Rose day Special : सूखा गुलाब...

फीचर्स डेस्क। आज कई दिनों बाद किताबों की अलमारी को करीने से लगा रही थीं।

"शिवानी की कहानियांँ" पुस्तक को पोंछते हुए हाथ रुक गए।

वही कुर्सी पर बैठ गई और पन्ने पलटने लगी तभी किताब में लाल रंग का सूखा गुलाब गिरा । गुलाब को उठाते हुए 30 साल पहले का सारा किस्सा आंँखों के सामने घूम गया। गुलाब चाहे सूख गया परंतु एहसासों की महक अभी भी बाकी थी।

"हाय सानिया, चलो कैंटीन में चाय पीने चलते हैं"

सौरभ ने आवाज़ लगाते हुए बोला। सौरभ मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ता था ।

"अरे सौरभ, यह क्या तुम्हें कितनी बार बोला है यह बालों में तेल चपुडकर मत आया करो। थोड़ा ढंग से रहा करो।"हमेशा की तरह सौरभ को बोलती थी, और ऊपर तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता ।

पर उसका सौम्य और बेपरवाह अंदाज ही मुझे भाता था।

 "सानिया, चिल करो चिल! फालतू की बाहरी चमक दमक में उलझी रहती हो।"सौरभ का बेपरवाह अंदाज।

 अक्सर हमारी नोकझोंक होती रहती थी । कभी नोट्स ,कभी किताबें ,कभी लाइब्रेरी हम टकरा ही जाते थे। मुझे भी सौरभ दोस्त से कुछ ज्यादा ही लगता था। ऐसे ही समय निकल रहा था। फिर 1 दिन किसी दोस्त से पता चला कि सौरभ का विवाह तय हो गया है। मैं तो जैसे आसमान से गिरी। इतना ही पता चला कि सौरभ की मांँ बीमार रहती थी। उन्होंने सौरभ का रिश्ता अपने किसी जान पहचान पहले की लड़की से तय कर दिया था।

एक सप्ताह तक इस गुलाब और किताब के संग खूब आंँसू बहाए। उस समय फोन, मोबाइल के तो साधन होते नहीं थे। हम तो अपने मन की दूसरे को कह भी नहीं पाए। यह गुलाब और किताब मुझे सौरभ ने मेरे जन्मदिन पर दिया था। यही एकमात्र गवाह था हमारे आपसी बेनाम रिश्ते का!!!

प्रेम का एक रूप त्याग भी है। समय सब के घाव भर देता है। मैंने भी अपनी पढ़ाई जारी रख स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली और अपनी दुनिया में व्यस्त हो गई। आज सूखे गुलाब ने बहुत से एहसास ताजा कर दिए।

इनपुट सोर्स : रेखा मित्तल, मेम्बर ऑफ फोकस साहित्य ग्रुप।