केरला स्टोरी : फ़िल्म को देखिए, समझिए नैरेटिव को

केरला स्टोरी : फ़िल्म को देखिए, समझिए नैरेटिव को

फीचर्स डेस्क। ब्रॉड माइंड होने के नाम पर जब कोई धार्मिक चिन्हों का, संस्थान का, कथाओं का मजाक उड़ाता दिखता है तो समझ जाना चाहिए कि इसको कूल दिखाने के चक्कर में अपने ही धर्म में खोट देखना है। औऱ हर बार होता यही है कि कभी भगवान कृष्ण, भगवान शिव, भगवान राम का अपमान करने वाले तर्क की बात करते है और हमारी इंस्टाग्राम वाली पीढ़ी जिसने स्कूल कॉलेजों, फ़िल्म सीरीज में बस यही सीखा है कि धर्म अफीम है, वे हंसते है।

श्री श्री रविशंकर एक बार जाकिर नाइक के चैलेंज पर डिबेट करने जाते है और जब जाकिर नाइक वहां अपनी बात कहता है तो श्री श्री वहाँ हिहिहि करके कहते है,"जाकिर जी का ज्ञान सच मे अद्भुत है।"

कितने शर्म की बात है भगवद गीता, उपनिषद, स्मृतियों, पुराणों औऱ वेदों के होते हुए भी आपको एक एक ऐसे स्कॉलर से हार माननी पड़ती है जिसका मजहब उसे दूसरे किसी ईमान को मानने की मनाही करता है।

हम वे सनातनी है जिनके पूर्वजों ने, बरगद- पीपल, तुलसी, सूर्य- तारे, नौ ग्रह, पर्वत - नदी, पशु- पक्षी, यहां तक कि मछली तक को पूजा है, उसे खुद के सर्व धर्मसम्भाव की बात बतानी नही आ रही!

 मुझे याद है किस तरह हमारे अध्यापक तक क्लास में सब बच्चो के सामने यह कहते हुए तनिक भी लज्जित नही होते थे कि "ब्राह्मण पाखंडी है", "राजपूतों ने तो सदा जमीन बेच के मौज करी है", "लाला जी चमड़ी दे देगा दमड़ी नही देगा।" और पूरी क्लास ठहाके लगाती थी।

कभी किसी ने सोचा कि ब्राह्मण पाखंडी है, यह शब्द बचपन से बार बार बच्चो के सामने कहने से उस ब्राह्मण बच्चे के दिमाग पर क्या असर पड़ेगा? मैं बताता हूँ, मेरा भाई इस नफरत में कि लोग "ब्राह्मणों को मरे पर भी ख़ाने वाले कहते है" कभी किसी श्राद्ध या अमावश्य पर किसी के घर भोजन करने नही गया। तमाम लड़के/ लड़की बाहर पूजा करते हुए घबराने लगे कि लोग कहीं पाखंडी न कहने लगे।

जब "केरला स्टोरी" में मुस्लिम लड़की कहती है कि, "खाना खाने से पहले अल्लाह को धन्यवाद न दो तो पाप लगता है, दोजख की आग में जलते है।" तब काश किसी ने उन लड़कियों को सिखाया होता:-

"ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम।

 ब्रह्म ऐव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।" तो वो जवाब दे पाती।

आप भले ही कितनी ही आंखे बंद कर लीजिये लेकिन आप इस सच को नही झुठला सकते कि भारत मे बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हो रहा है।  "परत" पढ़कर या "केरला स्टोरी" देखकर यदि आपकी अंतरात्मा यह कह रही है कि नही ऐसा कुछ नही हो रहा तो यकीन कीजिये आपका ब्रेन वाश हो चुका है।

"केरला स्टोरी" में दिखाई गई घटनाओं को झुठलाया नही जा सकता वो एकदम सच्ची कहानी है। दुर्भाग्य देखिए आदिगुरु शंकराचार्य जिस धरती पर पैदा हुए उस केरल की धरती पर यह हालत हो रही है। यदि सच मे आपके भीतर थोड़ा भी स्वाभिमान जिंदा है तो इस फ़िल्म को देखिए, समझिए नैरेटिव को। मेरे मुस्लिम जानकार भी कहते है कि सनातन की खूबसूरती उसका अध्यात्म है। आप लोग अपनी जड़ों को मत भूलिए, अपने बच्चो के साथ मंदिर जाइये, उन्हें रामायण महाभारत की कहानियां सुनाइये, बताइये क्यों शिव सती की मृत्यु पर परमेश्वर होकर भी पत्नी के प्रेम में साधारण मानव जैसा ही बर्ताव कर रहे थे। क्योंकि प्रेम में ईश्वर भी मनुष्य बन जाता है, वह जंगल जंगल भटक कर एक आम इंसान की तरह अपनी पत्नी को ढूंढता है।

बच्चो को सिर्फ कमाने की मशीन मत बनाओ, उन्हें जड़ो से जोड़ो, उनके साथ बात करो। उन्हें किसी के जिहाद का शिकार मत बनने दो। यह फ़िल्म इतनी बेहतरीन है कि आप एक मिनट के लिए स्क्रीन नही छोड़ सकते। बेहद कसा हुआ स्क्रीन प्ले, शानदार अभिनय, शानदार निर्देशन औऱ कहानी तो है ही सच।

सरकार को चाहिए कि इस फ़िल्म को गांव गांव नुक्कड़ नुक्कड़ मुफ्त दिखाए, जो लोग हॉल तक नही जा रहे उनतक फ़िल्म पहुंचाए। यह फ़िल्म सच मे बेहद जरूरी है। किसी के मजहब से घृणा करने से बेहतर है धर्म को समझना। सनातन कोई मजहब नही है, आत्मा का परमात्मा से सम्बन्ध है।

समय निकालिए "केरला स्टोरी" जरूर देखिए, आपकी उम्मीदों से कहीं बढ़कर है यह फ़िल्म।

इनपुर : लोकेश कौशिक।