क्या समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है ?

क्या समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है ?

देश के कोने - कोने में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता की चर्चा अपने चरम पर है साथ ही अफवाहों का बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है। हमेशा की तरह पक्ष इसके फायदें बता रहा है तो विपक्ष कई कमियां गिना रहा है। पर देश हित और आम आदमी के हित में क्या यह वास्तव में उपयोगी है इस पर बिना पक्षपात के कोई चर्चा करना नहीं चाह रहा है। एक बड़े तबकें में जहाँ भ्रम की स्थिति है वही अनेकों लोग ऐसे भी है जो विरोध तो कर रहें है पर उनके पास कोई उचित कारण नहीं है। चलिए समझतें है की यह वास्तव में है क्या ? “यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) का मतलब है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति के क्यों न हो। ” इसके लागू हो जाने से शादी, तलाक, बच्चा गोद लेना और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों समेत कई विषयों में सभी भारतीयों के लिए एक जैसे नियम हो जायेगें। अभी अलग-अलग धर्म और समुदाय अपने धर्म के नियमों के अधीन चल रहे है जिनसे सभी में व्यापक भिन्नता देखने को मिल रही है।  हालाँकि कई धर्मों में मात्र हिन्दू धर्म ने समय के साथ-साथ व्यापक बदलाव किया है और सभी के हितों की रक्षा भी की है।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता की बात की जाये तो एक दर्जन से भी अधिक मौकों पर माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट विभिन्न सरकारों को यूसीसी लाने के लिए निर्देशित कर चुकें है। वर्ष 2017 में शायरा बानों केस में सुप्रीम कोर्ट कह चूका है की जल्द से जल्द समान्य अचार संहिता लागू किया जाए। वर्ष 2021 में एक हिन्दू जोड़े के तलाक होने के मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने भी यूसीसी लाने की बात कही थी।  देश के संविधान में निहित आर्टिकल 44 भी इसकी बात करता है।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में पहलें से ही यूसीसी लागू है। भारतीय जनता पार्टी के कोर एजेंडों में यूसीसी शामिल रहा है और अपने चुनावी वायदों में किये गए बड़े वादों की पूर्ति वो कर चुकें है जैसे धारा 370 का हटाना, तीन तलाक पर कानून लाना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया जाना।  उनके मुख्य चुनावी वायदों में अब महज यूसीसी ही शेष है जिसकी लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्व आने की पूरी सम्भावना है।  ऐतिहासिक रूप से देखे तो लगभग वर्ष 1955 से भारतीय जनता पार्टी इसकी आवश्यकता पर विशेष बल दे रही है।  यदि आधुनिकता और वर्तमान आवश्यकताओं को विभिन्न पैमानों पर मूल्यांकित किया जाए जहाँ आज धर्म और जाति के साथ-साथ दशकों पुरानी रूढ़वादी परम्पराएँ ख़त्म हो रही है ऐसे में विकास में वृद्धि देने और सभी को समान रूप से अधिकार देने की आवश्यकता भी यूसीसी के पक्ष में दिखती है।

यूसीसी के आ जाने से न केवल सभी को समान रूप से अधिकार मिल जायेगे बल्कि अनेकों विसंगतियों का स्वतः समापन भी हो जायेगा।  यदि लाभ की बात करें तो – हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई समेत सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी की एक उम्र हो जाएगी। सभी धर्मों के लिए तलाक या विवाह के पश्चात् अलग होने की प्रक्रिया सभी के लिए समान हो जाएगी।  मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार मिल जायेगा।  मुस्लिम महिलायें भी बच्चा गोद ले सकेगी। मुस्लिम पुरुष एक से अधिक शादी नहीं कर सकेगा।  मुस्लिम समाज में भी बेटों की तरह बेटियों को भी सम्पत्ति में हक़ मिल सकेगा।  हिन्दुओं के अलग-अलग समुदायों में शादी के लिए अलग-अलग नियम और रीति-रिवाज है तथा उम्र भी अलग-अलग ली जाती है, यूसीसी आने से समानता देखने को मिलेगी। हिन्दू शादियों में तलाक के लिए कोई प्रावधान नहीं है यूसीसी आने से इनमे भी समरूपता दिखेगी।  हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) हिन्दुओं को कई विशेषाधिकार देतें है जैसे की आय पर कर के विषय में, यूसीसी आने से इसमें भी अन्य की तरह समानता दिखेगी। इनके अतिरिक्त हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई समेत सभी धर्मों में सिविल सम्बन्धी अपने नियम है जिसमे व्यापक भिन्नता दिखती है कही इसका लाभ तो कही इसकी बड़ी खामी दिखती है खासकर महिलाओं के अधिकारों को लेकर।  ऐसे में यूसीसी के आने से सभी को बड़े स्तर पर न केवल लाभ मिलेगा बल्कि सामाजिक और आधुनिक आवश्यकता के अनुरूप समानता भी दिखेगी जिसका सकारात्मक प्रभाव दिखेगा।

आखिर विरोध क्यों ? देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दशकों से अपेक्षित सुधारों को वृहद राजनैतिक जोखिम होतें हुए भी लागूं करने में अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण लगातार दे रहें है। यूसीसी भी उसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में माना जा सकता है।  एक छोटें उदाहरण से समझिये “ प्रधानमंत्री अपने भाषण में कहतें है की एक ही परिवार के सभी सदस्यों के लिए अलग-अलग नियम होन चाहिए या फिर एक ? जनता सीधे जबाब देती है एक” देश को परिवार मानने वाली नरेन्द्र मोदी बिना किसी भेदभाव और राजनैतिक लालच के सुधार की प्रवृत्ति को लागू कर रहें है जो सभी के हित में है, पर इस विषय में विरोध के पीछे सिर्फ दो कारण है क. राजनैतिक कारण – विपक्ष का नैतिक और प्राथमिक दायित्व होता है की सरकार की किसी भी नीति का वह खुल कर विरोध करें भले वह आम जन के हित में हो और आप ऐतिहासिक रूप से देखेगें तो वर्तमान में और इतिहास में भी यह आपको हर बड़े निर्णय पर देखने को मिलेगा।  ख. अधूरी जानकारी – देश के बड़े हिस्से में लोगों के पास या तो जानकारी नहीं है या अधूरी जानकारी है वो जिन्हें अपना नेतृत्वकरता मानतें है उन्ही की बातों को सच मान लेते है जबकि यह सच्चाई है की नेतृत्वकरता हर बात सही कह रहा हो यह जरुरी नहीं है।

यूसीसी के विषय में यह कहा जा सकता है की देश में चल रहा विरोध राजनैतिक प्रवृति से प्रेरित है और लोगों में जानकारी के आभाव में भीड़तंत्र को गुमराह किया जा रहा है। राजनैतिक चश्मे को उतार कर और वर्तमान आवश्यकता को आप, स्वयं मूल्यांकित करके देखेगे तो आप स्वयं महसूस करेगे की यह अनिवार्य और त्वरित आवश्यकता का रूप ले चुकी है और इसे अविलम्ब देश में लागू किया जाना चाहिए।  केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को चाहियें की इस विषय पर उनके विधायक / सांसद प्रतिनिधि जनता के बीच इसके लाभों को लेकर जाए और उनसे संवाद करें।  सोशल मीडिया और विभिन्न संगठनो, टीवी न्यूज़ चैनल, प्रिंट मीडिया और यूटुब चैनलों के जरिये व्यापक जागरूकता और जानकारी आम जन को देने की भी जरूरत है। विपक्ष को इस विषय में इस बात को भी स्वीकार करना चाहिए की बीजेपी की चुनावी घोषणाओं में अति महत्वपूर्ण घोषणा के रूप में यूसीसी शामिल था जिसके आधार पर जनता ने उन्हें चुना है ऐसे में सरकार का इस विषय में विरोध करने या समर्थन करने के बजाय शांत रहना उनके लिए हितकर होगा। आखिर देश की जनता और युवा पीढ़ी इस बात को अब समझ रही है की यूसीसी से उन्हें लाभ है या हानि ? हाँ सरकार को अलग-अलग इलाकों में चल रही संस्कृति और परम्परा को लेकर यूसीसी में महत्वपूर्ण स्थान जरुर देना चाहिए जिससे आधुनिकता के साथ-साथ परम्पराएँ भी जीवित रहें।   

इनपुट सोर्स : डॉ अजय कुमार मिश्रा, वरिष्ठ लेखक, लखनऊ।