छम्मो भिखारिन...

छम्मो भिखारिन...

फीचर्स डेस्क। वह गलियों में भीख मांगती हुई सरपंच के घर के बाहर पहुंच गई। आज उसने गली में खड़े होकर बहुत आशीष दिए लेकिन उसे कहीं से कुछ भी ना मिला था। वह जानती थी कि सरपंच मुख्त्यार सिंह बहुत दरिया दिल व्यक्ति है। उसे आस थी कि यहां से उसे जरूर कुछ ना कुछ मिलेगा। छम्मो सरपंच के घर के दरवाजे के पास जाकर बैठ गई। उसने भीतर झांका। बूढ़ा सरपंच खाट पर बैठकर हुक्का गुड़गुडा़ रहा था। उसने याचना भरी दृष्टि से सरपंच की ओर देखा। सरपंच ने भीतर से नौकर रणबीर को आवाज देते हुए कहा "अरे रणवीर छम्मो नै कुछ खान खातर दे दे। यह सुनकर छम्मो के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। सरपंच ने छम्मो को गौर से देखा। मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी  छम्मो को देखकर ऐसे लग रहा था जैसे वह कई दिन से नहाई ना हो लेकिन उसकी  मोटी मोटी आंखें, तीखे नयन नक्श और मैला हुआ गोरा रंग उसके सौंदर्य की गवाही दे रहा था।  छम्मो के माता-पिता का कोई अता-पता नहीं था। शायद किसी ने उसे सड़क पर यूं ही लावारिस फेंक दिया था। ज़िंदगी के इन हालातों ने छम्मो को थोड़ा अक्खड़ बना दिया था। इससे पहले वह पास वाले गांव में भीख मांगा करती थी लेकिन एक दिन गांव के किसी लड़के ने मौका पाकर उसका उत्पीड़न करने की कोशिश की। एक बार जब वह चौधरी भूपेंद्र सिंह के घर के दरवाजे पर गई थी  तो घर में भूपेंद्र के बेटे  रंजीत के अलावा कोई ना था । रंजीत एक बिगड़ा हुआ बदमाश लड़का था। छम्मो  को देखकर उसकी नियत खराब होने लगी और उसने खाना खिलाने के बहाने छम्मो को घर के भीतर बुला लिया। भोली-भाली छम्मो उसके इरादे ना भांप सकी। लेकिन जैसे ही रंजीत ने उसका हाथ पकड़ा तो उसे सारा मामला समझते देर ना लगी। परंतु ऊपर बैठा परमपिता परमेश्वर  महिला को मजबूरी तो देता है लेकिन साथ में किसी ना किसी रूप में ताकत भी देता है चाहे वह शारीरिक ना होकर जबान की हो। उसने उस लड़के के हाथ पर दांत से काट लिया और खूब गालियां देने लगी जिससे वह लड़का डरकर वहां से भाग खड़ा हुआ।

इसके बाद पुरुषों के प्रति छम्मो का व्यवहार थोड़ा सख्त  और गाली भरा हो जाता था लेकिन अब इंसान  की पहचान  करना उसको आता था।  ऊपर से एक  सख्त आवरण  ओढ़ना उसकी जरूरत  बन गयी। इसके बाद उसने वह गांव हमेशा के लिये छोड़ दिया लेकिन भविष्य के लिए उसको एक सीख मिल गई की यदि स्त्री  कोमलता के साथ  कठोरता  नहीं अपनाएगी तो  समाज के दरिंदे उसे नोंच डालेंगे ।

"हे ईश्वर तेरी माया।" सरपंच मुख्तियार सिंह के मुंह से निकला।" कहीं पर तो तू लाख मन्नतो के बाद भी एक बेटी नहीं देता और कहीं पर बेटियाँ लावारिस सड़कों पर  पलती  हैं। मुख्त्यार  ने छम्मो के पैरों की ओर देखा। उसके पैरों में चप्पल नहीं थी। फटी हुई एड़ियाँ और काले हुए टकने देखकर मुख्त्यार सिंह को दया आ गई और उसने भीतर से एक जोड़ी चप्पल मंगवा कर छम्मो  के लिए दरवाजे पर भिजवा दी। चप्पल देखकर छम्मो के चेहरे पर  खुशी के भाव आ गए उसने चप्पल  पहनकर  सरपंच की ओर कृतज्ञता से देखा और  आगे  बढ गई।

क्रमश: बाकी कहानी अगले आर्टिकल में

इनपुट सोर्स : ममता सोनी, वरिष्ठ लेखिका, नई दिल्ली।