कुछ अनकहा सा

कुछ अनकहा सा

फीचर्स डेस्क। सामान पैक कर रही चित्रा को कनखियों से एकटक देखे जा रहे थे, रामदीन जी । कहना तो बहुत कुछ चाहते थे पर उनका पौरुष सामने आ रहा था ।

कैसे कहते ? हां "वो ग़लत है और थे" !

उन्होंने कभी उसे न सम्मान दिया न प्रेम। दी तो बस गाली और मानसिक प्रतारणा। पर वो क्या करते ,बचपन से वही सब तो देखते आ रहे थे। बाबू जी अम्मा के साथ कितनी बदसलूकी से पेश आते थे। वो कहना चाहते थे "मैंने कभी औरतों का सम्मान कैसे करते हैं ? "नहीं देखा , "अपने घर में " तो मैं कैसे देता तुम्हें वो सम्मान जिसकी तुम हकदार थीं ! कहना चाहते थे तुमने सब सहा मेरे गन्दे व्यवहार के बदले में मुझे घर, मान, बच्चे उनकी अच्छी परवरिश दी बिना कोई शिकायत किये। पर कह नहीं पाये अपने पौरुष की वजह से। वो कहना चाहते थे मत जाओ चित्रा मैं नहीं रह पाऊंगा तुम्हारे बिना , मैं मर जाऊंगा। "मत जाओ ! पर कह न पाये।

 उनकी तंद्रा चित्रा की मधुर आवाज़ से टुटी। अपना ध्यान रखना मैं दो तीन दिनों में आ जाऊंगी अम्मा की तबीयत न खराब होती तो मैं न जाती। बहू को भी तो मायके जाना है। कातर दृष्टि से देखा चित्रा ने रामदीन जी को कि वो कुछ तो कहेंगे पर आदत से मजबूर वो कुछ न बोले। घर से निकलते एक बार नजर मिली भी तो मुंह फेर लिया।

वो जानते थे चित्रा आहत हुई होगी पर जिसे ताउम्र जुते की नोक पर रखा उसे कैसे कह देते। "मत जाओ" मैं जी नहीं पाऊंगा तुम्हारे बिना ।

 मौन चित्रा , आंखों के कोरो से आंसू पोंछ बाहर आती टैक्सी में स्टेशन के लिए अभी घर से निकली ही थी सामने से आ रही ट्रक से टैक्सी की भयंकर टक्कर से वही उसकी मृत्यु हो गयी । घर से सभी दौड़ पड़े , लोगों का कोहराम सा मच गया। कोई नहीं गया तो वो थे रामदीन जी। पोते ने दौड़ कर घर आ रोतेरोते कहा भी "दादा जी" दादी जी का एक्सटेंड हो गया है। पर वो नहीं गये।

 पर आज सचमुच वो कहना चाहते थे सबसे , चित्रा तो बहुत पहले ही मर गयी थी तब_तब जब उन्होंने उसके शरीर को रौंदा था। तब फिर जब उन्होंने उसके उपर पहली बार हाथ उठाया था । आज तो उसे मुक्ति मिली है ।

कुछ ही देर में चित्रा जी की लाश को सब घर ले आये थे पर ये सब देखने के लिए अब रामदीन जी जिन्दा नहीं थे क्योंकि जीवन में उनके झूठे पौरुष की वजह से बहुत कुछ अनकहा रह गया था। जिसकी वजह से चित्रा जी के साथ साथ उनकी सांसो ने भी उनका साथ छोड़ दिया था।

इनपुट सोर्स : रुबी प्रसाद, सिलीगुड़ी।