National Doctor’s Day 2021 : भारतीय चिकित्सा क्षेत्र की आधार स्तम्भ हैं ये 5 महिला डॉक्टर्स , आइये पढ़ें

डॉक्टर्स डे के मौके पर आज हम ऐसे कुछ डॉक्‍टरों के बारे में जानेगे, जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपने योगदान से एक नई मिसाल कायम की साथ ही अपने काम और नाम के झंडे गाड़े.....

National Doctor’s Day 2021 : भारतीय चिकित्सा क्षेत्र की आधार स्तम्भ हैं ये 5 महिला डॉक्टर्स , आइये पढ़ें

फीचर्स डेस्क। डॉक्टर ईश्वर का ही स्वरुप है। किसी ने क्या खूब कहा है कि ईश्वर सब जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने चिकित्सकों का निर्माण किया। जो सभी को कुशलता और बिना किसी भेदभाव के ट्रीट कर सके। कोरोना काल में जब समूची दुनिया पर महामारी का संकट छाया तो डॉक्टर्स ही थे जो हम सभी का सुरक्षा कवच बन कर खड़े थे। अपनी जान की परवाह ना करते हुए इन्होने आमजन की जान बचाई। इसलिए हर साल 1 जनवरी को डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है, ताकि हम सभी इनके प्रति अपनी कृतज्ञ व्यक्त कर सके।   

आज डॉक्टर्स डे पर हम कुछ ऐसी महिला डॉक्टर्स के बारे में जानेगे। जिन्होंने भारतीय चिकित्सा में असीम योगदान दिया है। पुरुष प्रधानता से अप्रभावित, महिला डॉक्टरों के प्रयासों से भारतीय चिकित्सा को आज के समय में जेंडर-न्यूट्रल इंडस्ट्री बनने में मदद मिली है। कुछ ऐसी ही महिला डॉक्टरों की कहानी जानते हैं , जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपने योगदान से एक नई मिसाल कायम की....

भारत की पहली महिला फिजिशन डॉक्टर कादम्बिनी गांगुली

कादम्बिनी गांगुली ब्रिटिश राज के दौरान एक उदार परिवार में जन्मी देश की पहली महिला स्नातकों में से एक थीं। महिलाओं के लिए समाज की तय परिपाटी में इन्होने कभी अपने आप को फिट होते नहीं पाया। सन्न 1886 में अपनी डिग्री अर्जित करते हुए वह दूसरी महिला भारतीय डॉक्टर बनीं। उस समय में जहां एक महिला का डॉक्टर होना लगभग असंभव था, कादम्बिनी ने विदेश की यात्रा की और एलआरसीपी, एलआरसीएस और जीएफपीएस डिग्री अपने नाम करने के बाद ही घर लौटीं। इसके बाद उन्हें लेडी डफरिन हॉस्पिटल, कोलकाता में नौकरी की पेशकश की गई, जिसके बाद उन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू की। कादम्बिनी गांगुली भारत की पहली महिला स्नातक और पहली महिला फ़िजीशियन थीं। यही नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला का गौरव भी कादम्बिनी गांगुली को ही मिला था।

भारत की पहली महिला कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर एसआई पद्मावती

डॉक्‍टर शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती भारत की पहली महिला कार्डियोलॉजिस्ट हैं। 96 साल की उम्र में भी वह उतनी ही एक्टिव हैं और अपने रोगियों का इलाज कर रही हैं जैसे कि 60 साल पहले किया करती थीं। बर्मा में जन्मी, पद्मावती ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई रंगून मेडिकल कॉलेज से की, जिसके बाद वह 1949 में लंदन चली गईं। यहां पर उन्होंने रॉयल कॉलेज ऑफ़ फिजिशियन, लंदन से एक FRCP प्राप्त किया। उसके बाद रॉयल कॉलेज ऑफ़ फिजिशियन, एडिनबर्ग से FRCPE किया। कार्डियोलॉजी में रुचि बढ़ने से पहले उन्होंने लंदन के कई फेमस हॉस्पिटल में मेडिकल प्रैक्टिस की। आगे पढ़ाई करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि भारत में कार्डियोलॉजी को वह महत्व नहीं मिला, जितना की मिलना चाहिए था। अपनी मातृभूमि पर लौटकर, उन्‍होंने न केवल देश का पहला कार्डियोलॉजी क्लिनिक खोला, बल्कि भारतीय मेडिकल कॉलेज में पहला कार्डियोलॉजी विभाग भी बनाया और हार्ट डिजीज के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए भारत की पहली हृदय नींव की स्थापना की। पद्म विभूषण (1992) को पाने वाली पद्मावती अभी भी राष्ट्रीय हृदय संस्थान, दिल्ली के निदेशक और अखिल भारतीय हृदय फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वह निवारक कार्डियोलॉजी में छात्रों को प्रशिक्षित करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ भी सहयोग करती हैं।

पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर भक्ति यादव

भक्ति यादव का जन्म 3 अप्रैल 1926 को उज्जैन के पास महिदपुर में हुआ। स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में वह एमबीबीएस कोर्स के पहले बैच की पहली महिला छात्रा थीं। 1952 में उन्हें एमबीबीएस की डिग्री हासिल हुई। उन्होंने कई जगह नौकरी की और बाद में घर पर ही नार्सिंग होम खोलकर मरीजों को चेकअप शुरू किया। संपन्न परिवार के मरीजों से भी वह नाममात्र की फीस लेती थीं और गरीब मरीजों का इलाज तो फ्री में किया करती थीं। वर्ष 2011 में उन्हें निःशुल्क चिकित्सा सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जिसके कुछ समय बाद 91 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया।

पहला टेस्ट ट्यूब बेबी रचा डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा ने

इंदिरा हिंदुजा ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। हजारों लोगों का इलाज किया, लेकिन इतिहास रचने वाले तारीख यानि 6 अगस्त 1986 को आज भी याद किया जाता है। केईएम हॉस्पिटल में उन्होंने देश को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात दी थी। आज भले ही टेस्ट ट्यूब बेबी बहुत आम बात हो, लेकिन उस दौर में यह काफी दुर्लभ था। इस क्षेत्र में उनके प्रयासों के लिए, उन्हें 2011 में सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। इंदिरा हिंदुजा का जन्‍म शिकारपुर (पाकिस्तान) में हुआ था। विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गईं थीं।

पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर कामिनी ए राव

डॉक्‍टर कामिनी ए राव भारत में सहायक रिप्रोडक्‍शन के क्षेत्र में अग्रणी हैं। उन्‍हें रिप्रोडक्‍शन एंडोक्रिनोलॉजी, ओवेरियन की बनावट और सहायक रिप्रोडक्‍शन प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता थीं। उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। डॉक्‍टर कामिनी ए राव को भारत के पहले SIFT शिशु के जन्म का श्रेय दिया जाता है।

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