क्या ऑनलाइन रिश्ते ऑफलाइन रिश्तों पर हावी हो रहे हैं

जीवन में कोई तो एक समय आता है जब हमारे पास अपने नहीं रहते, एक अकेलापन, नैराश्य घेर लेता है। और जो हैं, कितने भी अपने हों, हम उनसे मन की बात नहीं बांट पाते...

क्या ऑनलाइन रिश्ते ऑफलाइन रिश्तों पर हावी हो रहे हैं

फीचर्स डेस्क। वैसे ही बातचीत चल रही थी।  हमारे एक प्रिय ने कहा कि आज की पीढ़ी और आज की क्या हम जैसे बुढ़उ की पीढ़ी भी ऑनलाइन भाग रही है। अपने असली रिश्ते तो निभते नहीं, अनजान लोगों के पीछे लगे रहते हैं। उनका कहना था कि हम इन नकली रिश्तों के कारण असली रिश्तों से दूर जा रहे हैं।

किन्तु क्या सच में ही ऐसा ही है। क्या जीवन के वास्तविक रिश्तों की कड़वाहट और एक नया खुला संसार हमें कुछ नया दे रहा है तो इसमें बुरा क्या।

सम्हल कर और समझ कर तो आजकल असली रिश्तों में भी चलना पड़ता है। न जाने कब कौन पीठ में छुरी भोंक दे। और जब आवश्यकता हो तो फ़ोन का नैटवर्क ही कट जाये। कहां अपनापन है और कहां दूरियां, कहां समझ में आता है आज हमें। धोखा कहीं भी हो सकता है, छल कहीं भी हो सकता है किन्तु अपनापन, नेह, मैत्री भी कहीं भी मिल सकती है। अपनों से अपने अनजाने हो जाते हैं अपरिचित कभी-कभी अपने। दोनों अलग-अलग हैं, घबराना क्या। ये पता नहीं कि हम किसे निभा सकते हैं और कौन हमें निभा सकता है बस।

 यहीं से बात उठी कि क्या  ऑनलाइन रिश्ते ऑफलाइन रिश्तों पर हावी हो रहे हैं क्या ?

 मेरी दृष्टि में ऑनलाइन रिश्ते ऑफलाइन रिश्तों पर हावी नहीं हो रहे हैं, दोनों का आज हमारे जीवन में अपना.अपना महत्व है। हर रिश्ते को साधकर रखना हमें आना चाहिए, फिर वह ऑनलाइन हो अथवा ऑफलाइन ।

वास्तव में ऑनलाइन रिश्तों ने हमारे जीवन को एक नई दिशा दी है जो कहीं भी ऑफलाइन रिश्तों पर हावी नहीं है।

अब वास्तविकता देखें तो ऑफलाइन रिश्ते रिश्तों में बंधे होते हैं, कुछ समस्याएं, कुछ विवशताएं, कुछ औपचारिकताएं, कुछ गांठें। यहां हर रिश्ते की सीमाएं हैं, बन्धन हैं, लेनदारीए, देनदारी है, आयुवर्ग के अनुसार मान सम्मान है, जो बहुत बार इच्छा न होते हुए भी, मन न होते हुए भी निभानी पड़ती हैं। और कुछ स्वार्थ भी हैं। यहां हर रिश्ते की अपनी मर्यादा है, जिसे हमें निभाना ही पड़ता है। ऐसा बहुत कम होता है कि ये रिश्ते बंधे रिश्तों से हटकर मैत्री भाव बनते हों।

जीवन में कोई तो एक समय आता है जब हमारे पास अपने नहीं रहते, एक अकेलापन, नैराश्य घेर लेता है। और जो हैं, कितने भी अपने हों, हम उनसे मन की बात नहीं बांट पाते। यह सब मानते हैं कि हम मित्रों से जो बात कह सकते हैं बहुत बार बिल्कुल अपनों से भी शेयर नहीं कर पाते। ऐसा ही रिश्ता कभी-कभी कहीं दूर बैठे अनजाने रिश्तों में मिल जाता है। और वह मिलता है ऑनलाईन रिश्ते में।

किन्तु ऑनलाइन रिश्तों में कोई किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं है। एक नयापन प्रतीत होता है, एक सुलझापन, जहां मित्रता में आयु, वर्ग का बन्धन नहीं होता। बहुत बार हम समस्याओं से घिरे जो बात अपनों से नहीं कर पाते, इस रिश्ते में बात करके सुलझा लेते हैं। एक डर नहीं होता कि मेरी कही बात सार्वजनिक हो जायेगी।

हां, इतना अवश्य है कि रिश्ते चाहे ऑनलाइन हों अथवा ऑफलाइन, सीमाएं दोनों में हैं, अतिक्रमण दोनों में ही नहीं होना चाहिए।

इनपुट सोर्स : कविता सूद, मेम्बर फोकस साहित्य।