जीने की आजादी....

जीने की आजादी....

फीचर्स डेस्क। आज सुबह एक लेख पढ़ रही थी, हमारे देश की लगभग सत्तर प्रतिशत लड़कियों/ स्त्रियों को जो शारीरिक दिक्कतें हैं, उनकी वजह परवरिश, तिरस्कार, पाबंधियां और बचपन में परिवार में दिए गए तनाव हैं। क्या आप यह सोच सकते हैं कि ये जो बात-बात पर लड़कियों से कहा जाता रहा है, ऐसे नहीं, ऐसे बैठो, जोर से मत हंसों, पांव फटकार कर मत चलो, ये मत पहनो, वो जरूर पहनो, ऐसे मत खाओ, अपने सीने को ढक कर रखो, जांघ मत दिखाओ, इनकी वजह से उनमें कई गंभीर शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं?

ये तो बहुत छोटी बातें हैं। अमेरिका की एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट मार्था हमारे यहां रिसर्च करने आई हैं। उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि सड़क चलते अधिकांश लड़कियां कंधा झुका कर चलती हैं, अपने ब्रेस्ट को ले कर असहज रहती हैं, मेट्रो हो या बस, अपने दोनों पांव समेट कर बैठती हैं। ये कंडीशनिंग उन्होंने किसी भी विकसित देश में नहीं देखा।

अब आते हैं इनकी वजह से हो रहे नुकसानों पर। आत्मविश्वास की ऐसी की तैसी हो जाती है। हमेशा एक असुरक्षा से घिरे रहने का आभास होता है। कंधे पर दर्द बना रहता है। ये छोटी-छोटी बंदिशें कब शरीर के भीतर रोग बन कर रच-बस जाती है, पता ही नहीं चलता। वे मजाक करना और खुद पर हंसना भूल जाती हैं।

औरतों ने लंबी कीमत चुकाई है। आज भी चुका रही हैं।  इसमें कौन किसकी मदद कर सकता है? आप… सिर्फ आप। और आने वाले कई सारे आप। अपने शरीर को आजाद बनाने की मुहिम समझाने के लिए हमें किसी मार्था की जरूरत नहीं है। 

input by : Jayanti Ranganathan