'सीता बनी दुलही, दुलहा बने रघुनाथ' चार बहुओं के चरण पावन हुई अवध नगरी, रामनगर में समाप्त हुई बालकांड की लीला

एक ओर दशरथ, जिनके चार बेटों का एक साथ विवाह, और लक्ष्मी स्वरूपा चार बहुओं का अयोध्या के आंगन में आगमन। दूसरी ओर, जनक जो अपनी चार बेटियों की विदाई कर रहे थे। वैसे तो जंक बड़े व्याकुल थे, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि राम कोई साधारण मानव नहीं हैं....

'सीता बनी दुलही, दुलहा बने रघुनाथ' चार बहुओं के चरण पावन हुई अवध नगरी, रामनगर में समाप्त हुई बालकांड की लीला

वाराणसी। आज अयोध्या की नजरें बस अपने राजकुमार और उनकी पत्नियों को ही निहारने में लगी हुई थी। वह दृश्य ही ऐसा मनोरम की राम की नगरी आज अयोध्या बन गई। जिसे देखने के लिए देवता भी स्वर्ग से वेश बदलकर अयोध्या आ पहुंचे। मौका था श्री राम और उनके चारों भाइयों के विवाह का। अयोध्या में चारों ओर खुशियां ही खुशियां छाई हुई थी। सभी बस एकटक सुकुमारों को ही देखने में लगे हुए थे। एक ओर दशरथ, जिनके चार बेटों का एक साथ विवाह, और लक्ष्मी स्वरूपा चार बहुओं का अयोध्या के आंगन में आगमन। दूसरी ओर, जनक जो अपनी चार बेटियों की विदाई कर रहे थे। वैसे तो जंक बड़े व्याकुल थे, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि राम कोई साधारण मानव नहीं हैं। 

ऐसा सुहाना दृश्य वैसे तो लाखों वर्ष बीतने पर भी नजर नहीं आता है, लेकिन आज बाबा विश्वनाथ की नगरी में हजारों की भीड़ बस इसी पल का आनंद ले रही थी। डिजिटल ज़माने में भी इस एक पल को देखने के लिए विश्व भर से लोग आए हुए थे। अयोध्या बनी रामनगरी आज जगमग हो गई। चारों ओर खुशियां ही खुशियां, स्वर्ग से देवता भी अयोध्या की इस ख़ुशी में शामिल हो रहे थे। आज अयोध्या के घर के आंगन में चारा बहुओं के एक साथ चरण पड़े थे। उनमें से एक थी जनकनंदनी वैदेही ‘सीता’। जिनका मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ मिलन ही एक दैवीय कार्य संपन्न करने के लिए हुआ था। राजा जनक को पुत्री विदा करने का स्वाभाविक दुःख था, लेकिन एक संतोष भी था कि सीता जिसकी अर्धांगिनी बनी है, वह साधारण मनुष्य नही है। रामलीला के आठवें दिन बेहद भावुक प्रसंगों का मंचन हुआ, तो अयोध्या के द्वार पर पालकी में बैठे श्रीराम सीता की भव्य झांकी लोगों को सम्मोहित कर गई।

आठवें दिन के प्रसंग में राजा जनक विदाई से पूर्व दशरथ को जेवनार के लिए बुलाते हैं। सभी को भोजन परोसा जाता है। उसी समय जनकपुर की स्त्रियां परंपरानुसार गारी गाने लगती है। इसे सुनकर दशरथ बहुत प्रसन्न हुए। दहेज का सारा सामान आदि देकर जनक अपनी पुत्री और बरात की विदाई करते हैं। विदाई के दौरान राजा जनक, सुनयना और श्रीराम जानकी के मार्मिक संवाद लोगों की आंखे भिंगो गये। बारात विदा हो कर अयोध्या पहुँचती है। द्वार पर ही पालकी की अप्रतिम झांकी होती है। माताएं राम सीता का परिछन करके उनकी आरती उतार कर महल ले कर आती हैं। राजकुमारों और उनकी बहूओं को सिंहासन पर बैठाया जाता है। माताएं उन्हें आशीर्वाद देती है। दशरथ पुत्रों सहित स्नान आदि करके कुटुम्बियों को भोजन कराते हैं। उनको विदा करने के बाद रानियों को बुलाकर कहते हैं कि बहूएं अभी लरिका (बच्ची) हैं, तिस पर पराये घर से आईं हैं। उन्हें पलकों पर बिठा कर रखना। वह सब को शयन कराने के लिए कहते हैं। शयन की झांकी होती है। मुनि विश्वामित्र आश्रम जाने के राजा दशरथ से विदा मांगते है। दशरथ उनसे सदैव कृपा बनाए रखने का आशीर्वाद मांगते हुए उन्हें विदाई देते हैं। इसके बाद चारों भाइयों की आरती होती है और इसी के साथ ही आठवें दिन की लीला ‘जय श्रीराम’ और ‘हर-हर महादेव’ के गगनचुंबी उद्घोष के साथ समाप्त होती है।