शयन कक्ष में भूलकर भी कभी न करें मदिरापान, नहीं तो होगा ये बड़ा नुकसान, पढ़ें क्या कहती हैं वस्तु एक्सपर्ट

शक्ति उपासक आचार्य सविता पटवाल बताती हैं कि व्यवसाय स्थल तथा निवास में वास्तु का बहुत अधिक महत्व है जिस व्यवसाय स्थल अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान का वास्तु बिगड़ा होगा तो वहां आप किसी भी प्रकार के लाभ की आशा नहीं कर सकते हैं….

शयन कक्ष में भूलकर भी कभी न करें मदिरापान, नहीं तो होगा ये बड़ा नुकसान, पढ़ें क्या कहती हैं वस्तु एक्सपर्ट

फीचर्स डेस्क। वास्तु से संबंधित कुछ सामान्य नियम जिनको अपनाकर आप अपने जीवन में सुख परिवर्तन ला सकते हैं। व्यवसाय स्थल तथा निवास में वास्तु का बहुत अधिक महत्व है जिस व्यवसाय स्थल अथवा व्यापारिक  प्रतिष्ठान का वास्तु बिगड़ा होगा तो वहां आप किसी भी प्रकार के लाभ की आशा नहीं कर सकते हैं। यदि किसी पर निवास का वास्तु बिगड़ा होगा तो उस भवन में रहने वाले सदस्यों पर समय-समय पर अनेक समस्याएं आती रहेगी। वहां कभी रोग की छाया रहेगी कभी कोई आर्थिक हानि होगी अथवा कभी किसी अन्य प्रकार से कुछ अप्रिय घटित होगा। किसी भवन का वास्तु अगर बहुत अधिक बिगड़ा है तो इसके प्रभाव से उस भवन में रहने वालों में से किसी सदस्य हमेशा बिमारी में रहेगा।

यदि किसी व्यवसाय स्थल का वास्तु बिगड़ा है तो उस व्यवसाय से आप किसी भी प्रकार के लाभ की आशा नहीं कर सकते हैं। बिगड़े वास्तु के कारण उस व्यवसाय के स्वामी को बहुत अधिक परेशान होना पड़ता है और विवश होकर अपना व्यवसाय ही बेचना पड़ जाता है। अनेक बार ऐसा होता है कि किसी निवास अथवा व्यवसाय स्थल में किसी समय तक तो कोई समस्या नहीं होती है किंतु कुछ समय के बाद वहां अनेक प्रकार की समस्या उत्पन्न होने लगती है।

 वास्तु से संबंधित अन्य अनेक ऐसी बातें हैं जिस पर सामान्यता ध्यान नहीं दिया जाता और फिर बाद में व्यक्ति को अनेक प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर अनेक ऐसी भी बातें हैं जिनका महत्व हमें मालूम नहीं होता किंतु वास्तव में उनका बहुत महत्व होता है। इसलिए उन बातों के बारे में बता रही हूं जिन पर सभी लोग ध्यान रखना चाहिए अगर हम कुछ गलत करते हैं तो उसमें सुधार करके लाभ ले सकते हैं। वैसे तो वास्तु का विषय बहुत बड़ा है जिसकी संपूर्ण विवेचना में एक ग्रंथ का निर्माण हो जाएगा ।

इसलिए यहां पर आम स्थितियों के बारे में कुछ बातों को बताने जा रही  हूं कि क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है। आप जिस स्थान पर पूजा आदि करते हैं तो प्रयास करें की पूजा करते समय आपका मुंह ईशान की ओर हो। अगर आप भवन निर्माण कर रहे हैं तो आप ध्यान रखें कि उस भवन की ऊंचाई नेतृत्व कोण में अधिक हो और धीरे-धीरे घटते हुए ईशान कोण की औरा आये । अर्थात नेतृत्व कोण सर्वाधिक ऊंचा हो और ईशान कोण सर्वाधिक नीचा हो

जिस भवन का ईशान कोण नेतृत्व कोण से नीचे हो तो उस भवन में रहने वालों की समृद्धि में ईश्वर मदद करता है। यदि ईशान कोण ऊंचा हो तो उस भवन में रहने वालों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। निवास एवं व्यवसाय स्थल का ईशान कोण (पुर्व- उत्तर का कोण ) उसके स्वामी के मुख्य एवं मस्तिष्क के समान होता है। भवन का यह क्षेत्र जैसा होगा भवन स्वामी का भाग्य इन स्वास्थ्य भी सदैव ऐसा ही रहेगा। अर्थात यह क्षेत्र सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। किसी भी भवन का मुख्य द्वार उत्तर- पूर्व में सर्वाधिक शुभ होता है।

यदि आपका प्लॉट इस स्थिति में नहीं है तो आप वास्तुशास्त्री से परामर्श कर मुख्य द्वार की दिशा निश्चित कर सकते हैं ।

परंतु कभी भी आप मुख्य द्वार मध्य में न बनवाएं,

वास्तुशास्त्र में इस प्रकार के घरों को कुल नाश का द्वार कहते हैं।

आप जब भी भवन का निर्माण करवाएं तो उस प्लॉट पर चारों ओर से ही विस्तार करवाएं । आप यह अवश्य ध्यान रखें कि भवन का विस्तार आप कहीं भी कभी भी दक्षिण पश्चिम अथवा पूर्व दक्षिण से न करवाएं।

यह स्थिति अधिक अशुभ मानी जाती है इस स्थिति में भवन में स्वामी को आर्थिक हानि चोरी डकैती रोग अग्नि दुर्घटना वाहन दुर्घटना मानसिक क्लेश अथवा किसी अन्य प्रकारों से कष्ट होने का पूर्ण योग होता है। शयन कक्ष में कभी भी मदिरापान ना करें अथवा कोई ऐसी तस्वीर न लगाइए जिससे आपके मन पर अशुभ विचार का प्रभाव आए शयनकक्ष में सदैव हल्के रंग व हल्की रोशनी का प्रयोग करें जितना कम समान हो उतना अच्छा होता है।

उत्तर-पूर्व दिशा में भूमिगत जल स्रोत धनदायक होते हैं एवं संतान को भी सुंदर निरोगी बनाते हैं। यहाँ निवास करने वाले सदस्यों के चेहरे पर कांति बनी रहती है। इन स्थानों पर जल की स्थिति रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है।

इनपुट सोर्स : शक्ति उपासक आचार्य सविता पटवाल।