रूखसते जिंदगी

रूखसते जिंदगी

जिंदगी रुखसत होने लगी थी

लोग लेकर जाने लगे थे मुझे

शहर तमाशा फिर देखता रहा

अब लोग जलाने लगे थे मुझे

किसी ने चुनी लकड़ियां

किसी का उससे चूल्हा जला

किसी ने उठाई चादर वहा से

किसी ने उससे ठंड बुझाई

किसी को मिले पैसे वहा पर

किसी ने उससे पेट भरा

ऐ जिंदगी तमाशा बहुत दिखाया है तूने

मौत की उपर से चीजें उठाकर

लोगों का घर बसाया है तूने

उस श्मशान में हजारों का कारवां

 आग बुझ चुकी होती,तो कोई नहीं

आहिस्ता आहिस्ता लोग भूलने लगे थे, उस शायर को

गजलें उसकी आज भी कयामत ही ढा रही थी कहीं मोहब्बत,

कहीं वफाओं के चर्चे शायर इस दुनिया से रुखसत हो चला था

शायर की गजलें आज लोगों की दुनिया बसा रही थी

मधु तिवारी, राइटर, लखनऊ सिटी।