तुम बोलोगी नहीं कुछ !

तुम बोलोगी नहीं कुछ !

फीचर्स डेस्क। शादी के बाद पहली बार ससुराल वो एक दिन की छुट्टी ले कर उससे मिलने आया था। आते वक़्त पहली बस छूट गई थी तो रात आठ के बदले सवा दस बजे पहुँचा ही था। दामाद पहली बार घर आए तो खाना गरम ही परोसा जाना था। अम्माँ ने खीर साँझ में ही बना लिया पूरी सिर्फ़ खाते वक़्त तला जाना था। पूरी तलने और खाते-पीते आधी रात बीत गयी।

फिर सालियाँ और साले घेरे बैठे पटना शहर के बारे में अंतरंगी सवाल पूछते रहें। वो भी बिना चिढ़े और उकताए प्यार से सब बता रहा था मगर नज़रें अपनी दुल्हन के अलता लगे पाँव तो कभी सुर्ख़ लाल चूड़ियों तो पाज़ेब से जा उलझ रही थी।

अम्माँ ने नीचे से कोई रात के दो बजे हार कर आवाज़ लगाई तब सब नीचे उतरने लगे मगर वो रुक गया और उसको भी इशारे में रोक लिया।

अब चारपाई पर उसकी गोद में लेटे हुए वो अपनी नौकरी की व्यस्तताएँ बता रहा था और वो चुपचाप सुन रही थी।

"तुम बोलोगी नहीं कुछ!

  कहो न कुछ!" इसने इसरार किया मगर अब भी वो ख़ामोश ही रही। उसकी हथेली को चूम कर अपने गाल पर रख और उसकी गर्दन को अपनी तरफ़ हल्का झुकाया,

"अरे तुम रो रही हो? क्यूँ रो रही हो? बाप रे इत्ता दुःखी किया मैंने तुम्हें!"

"नहीं!"

"हाँ!"

"नहीं, बस आप वहाँ जाकर भूल जाते हैं। न हम को फ़ोन करते हैं न कुछ" बोलते हुए फिर सुबकने लगी।

"पगली हो तुम। समझो ज़रा मेरी व्यस्तओं को। सब मैं हमदोनों के लिए कर रहा। बस थोड़े पैसे इकट्ठा हो जाएँगे तो तुम्हें भी साथ लिए चलूँगा।" कहते हुए उसने उसके आँसू को होंठों से पोंछ दिया।

पता नहीं फिर रात कैसे निकली और कैसे सुबह हो गयी। उसकी नींद खुली तो वो चारपाई पर अकेले था आस-पास कोई न था।

दस बजे वाली बस पकड़नी थी तो जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा। आलू के पराँठे और दही सासु माँ ने खिलाया।

 ससुर जी अपनी स्कूटर से बस स्टॉप छोड़ने के लिए जाने वाले थे। दरवाज़े पर साले-सालियों के साथ बग़ल की कुछ औरतें आ कर खड़ी हो गयी थी दामाद जी को देखने के लिए।

किवाड़ का पल्ला पकड़े नम आँख लिए उसकी दुल्हन भी खड़ी थी। जी में आया की जा कर उसको एक बार गले से लगा ले, उसका माथा चूम ले मगर ससुराल और बड़े-छोटों का लिहाज़ उसे ऐसा करने न दिया।

एक हूक लिए नज़रों में उसे क़ैद करके ससुर जी के साथ स्कूटर पर बैठ वो निकल गया मगर मन से मन ने वादा किया कि अगली बार वो अपनी स्कूटर ले कर आएगा और उसे अपने साथ पटना लिए जाएगा।

input by : Anu Roy