नेता बोले: कृषि कानून तो वापस होने ही थे, लेकिन हमारे अपने चले गए उनका क्या? टेनी के इस्तीफे की मांग बरकरार

नेता बोले: कृषि कानून तो वापस होने ही थे, लेकिन हमारे अपने चले गए उनका क्या? टेनी के इस्तीफे की मांग बरकरार

नई दिल्ली। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष और लखीमपुर में कृषि आंदोलन में शामिल रहे अमनदीप सिंह कहते हैं कि अगर यही फैसला कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेते तो शायद लखीमपुर में हमारे किसानों की हत्या न होती। इसलिए इस पूरी हत्या की जिम्मेदारी भाजपा सरकार की है। उन्होने कहा कि हमारे किसान तो उसी बिल को वापस लेने के लिए आंदोलन कर रहे थे, जिसे आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहते हुए वापस लेने की घोषणा की कि हम किसानों को समझा नहीं सके। सवाल तो यही है अगर आप किसानों को समझा नहीं पाए तो हमारे किसानों की इसी आंदोलन के विरोध में लखीमपुर में हुई हत्या की भरपाई कौन करेगा। ऐसे में अब जब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का इस्तीफा नहीं होगा, लखीमपुर में आंदोलन की चिंगारी धधकती रहेगी। लखीमपुर खीरी में किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं भारतीय किसान यूनियन और किसान संगठनों के नेताओं ने अमर उजाला डॉट कॉम से शुक्रवार को यह बातें कहीं।

लखीमपुर में धधकती रहेगी आंदोलन की चिंगारी

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष और लखीमपुर में कृषि आंदोलन में शामिल रहे अमनदीप सिंह कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री ने यह मान लिया कि किसानों को समझाने में वह नाकाम रहे। दरअसल वह नाकाम नहीं रहे क्योंकि यह बिल पूरी तरीके से गलत है और किसान विरोध में लगातार आंदोलन कर रहे थे। इसी बिल का विरोध कर रहे आंदोलन में लखीमपुर में हमारे किसानों की हत्या कर दी गई। अब जब यह बिल वापस हो रहा है तो लखीमपुर में किसानों की हत्या करने वालों को फांसी होनी चाहिए और अजय मिश्र का इस्तीफा हर हाल में होना चाहिए। वह कहते हैं कि अगर यही फैसला कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेते तो शायद लखीमपुर में हमारे किसानों की हत्या न होती। इसलिए इस पूरी हत्या की जिम्मेदारी भाजपा सरकार की है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे के ऊपर हत्या का आरोप है। ऐसे में अब जब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा नहीं होता है तब तक लखीमपुर में आंदोलन की चिंगारी धधकती रहेगी।