शिक्षक दिवस विशेष : अंगूठे से अक्षर तक का सफर !

शिक्षक दिवस विशेष : अंगूठे से अक्षर तक का सफर !

फीचर्स डेस्क। अगर आप अंगूठे और हस्ताक्षर के बीच का फर्क समझ पा रहे हैं तो आज अपने गुरुजनों को इस काबिल बनाने के लिए धन्यवाद कीजिए। डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता हमारी जिंदगी में शिक्षक का होना बहुत जरूरी है ताकि हम उनसे कुछ सीख सके ।उनकी शिक्षा से हमारे जीवन को सही दिशा मिल सके और हम सही रास्ता चुन सके। संत कबीर जी ने भी गुरु की महत्ता का वर्णन करते हुए बोला-

"गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने जो गोविंद दियो बताए । "

भारत में गुरु शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी है भगवान कृष्ण के प्राचीन कथाओं से लेकर आज के हाईटेक जीवन में हमें हर तरफ शिक्षकों की महत्ता दिखाई देती है । गुरु द्रोणाचार्य के बिना अर्जुन को धनुष विद्या का ऐसा ज्ञान नहीं हो पाता तो वहीं अगर रामकृष्ण परमहंस न होते तो भारतीय संस्कृति का वैश्विक महानाद करने वाले विवेकानंद को सही दिशा कौन देता ?अतः शिक्षकों का आदर सत्कार करना चाहिए। शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन के वास्तविक कुम्हार की तरह होते हैं जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं, बलिक हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहे । इसी वजह से हमारा राष्ट्र ढेर सारे प्रकाश के साथ प्रबुद्ध हो सकता है ।

 "गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि-गढि काढै खोट।

अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।"

कबीरदास ने उपर्युक्त दोहे में गुरू का महत्व समझाया है।

 कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घडे के समान है। गुरू भीतर से हाथ का सहारा देकर बाहर से चोट मार मारकर साथ ही शिष्यों की बुराई को निकालते है। गुरु ही शिष्य के चरित्र का निर्माण करता है।

 जीवन की आधारभूत जरूरतों के बाद मानव को मानव कहलाने के लिए जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है वह शिक्षा। शिक्षा देश के विकास के प्रमुख तत्व है। लेकिन शिक्षक के बगैर यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती । शिक्षक अक्षरों  व मात्राओं का जोड़ सिखाकर ऐसे इंसान की रक्षा करता है जो देश को एक नई दिशा देते हैं ।

    चलिए दोस्तों अपने जीवन में आए सभी गुरुओं को सादर वंदन कर आज उनको स्मरण करते हैं ।

     इनपुट : रेखा मित्तल, एडमिन फोकस साहित्य।