फर्ज या बेबसी...

फर्ज या बेबसी...

फीचर्स डेस्क। लावण्या आज अपनी माँ से बोल रही है कि एकलव्य की नौकरी चली गई है , आईटी कंपनी/ प्रौद्योगिकी कंपनी बहुत से कर्मचारियों का छंटनी कर रहा है , इसी क्रम में  एमबीए की डिग्री ना होने के कारण हटा दिया गया है जिससे ये डिप्रेशन में चला गया है ।कह रहा कि किसी तरह एमबीए करना ही है ,तभी कोई कंपनी जाॅब देगा । बीस पच्चीस लाख कहाँ से लाऊं , सास कहती हैं कि हमने एक पैसा दहेज नहीं लिया था कि मेरा बेटा सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और बहू भी इंजीनियर है ,उस समय की परिस्थिती जैसी रही  वैसा ही किया गया था । अब शादी के दो साल बाद ऐसी विकट स्थिती में  बेटा के ससुराल वाले ही सबल बने ताकि उनकी बेटी दामाद खुशहाल जिंदगी हो । लावण्या की बातों से लग रहा कि उसके ससुराल वाले उसके घर से अब दहेज की मांग कर रहे । देख बेटा , जैसे तेरी पढ़ाई लिखाई में हमने कुछ खास खर्च नहीं किया है ,स्कॉलरशिप से पढ़ा है तुमने और तू खुद भी कमाती है , एकलव्य से ज्यादा प्रैक्टिकल है तू , इंजीनियरिंग + एमबीए की डिग्री है तेरे पास,  हाई एडूकेटेड बेटी को सौंपा है हमने !फिर कैसी डिमांड कर रहे वो लोग ? बल्कि तू उनलोगों के बेटा से  ज्यादा एडूकेटेड व समझदार हो ,आईआईटी रूड़की से पढ़ी हो , तब तुमसे ऐसी ओछी बातें करते हैं वो लोग , लावण्या की माँ तनिक गुस्सा दिखाते हुए बोलीं , नहीं माँ ऐसी बात नहीं है , उसकी नौकरी छूट गई है इसलिए फ्रस्ट्रेशन में है , एकलव्य चाहता है एमबीए करना तो मेरा फर्ज है कि पत्नी होने के नाते उसका साथ दूँ । हमारा प्रेम विवाह है इसलिए उसे ऐसे में अकेले नहीं छोड़ सकती , तब ठीक है , तेरे पापा आते हैं तो बात करती हूँ , कोई ना कोई उपाय निकलेगा , ज्यादा स्ट्रेस ना ले , चाय बनाकर लाती हूँ दोनों साथ बैठकर पीते हैं , कहकर लावण्या की माँ किचन में चली गई।

पापा आप चुके थे , बेटी की बात से आहत हो गए हैं , बेटा ये तो तेरे समक्ष कंडीशन्श रखा जा रहा है , एकलव्य स्वंय को प्रूफ नहीं कर पा रहा , यदि कंपनी ने निकाल दिया है तो इंडिया में सैकड़ों कंपनीज भरी पड़ी हैं ऐसे में साहस को खो देना अनुचित है । तुम्हारे समकक्ष खड़ा होना चाहता है एकलव्य,  अच्छी बात है लेकिन अपने दम पर कुछ करे ना , तेरा कंधा क्यों चाहिए उसे , पापा भी खिन्न हो बोल पड़े हैं । अब छोड़ इस बात को  , चल बाजार से कुछ खाने को मंगाते हैं , बोल क्या खाएगी , पापा ने पुछा ,

नहीं पापा भूख नहीं है कहकर लावण्या निकल गई।

लावण्या को देख उसकी सास बोल पड़ी , कुछ निदान निकला , तुम्हारे माँ पापा एकलव्य के लिए पैसा देंगे ना ! जी मम्मी जी , आप चिंतित ना हो कुछ ना कुछ तो समाधान तो निकल जाएगा और पापा ने थोड़ा समय माँगा है इसलिए अभी कोई निर्णय नहीं ले सकते , भारी रकम है , कहकर लावण्या अपने कमरे में चली जाती है , बिस्तर पर एकलव्य बेसुध सोया है ना कल की फिक्र ना आज की चिंता । लावण्या की आँखें नम है , सब कुछ जानते हुए भी एकलव्य से शादी की थी लेकिन एकलव्य का फ्रस्ट्रेशन उस पे निकलती, हर समय ताना मारता , तुम तो काबिल हो ना , हमसे ज्यादा एडूकेटेड और मैं केवल इंजीनियरिंग भर कर पाया और तुम आज कुशाग्र बुद्धि की वजह से  स्वावलंबन हो । एकलव्य की आवाज उसके कानों को शोर करती, आज उसे एहसास हो रहा है एक पुरुष अपनी पत्नी के समकक्ष होना चाहता है या ज्यादा , कम नहीं । असहाय तो बिल्कुल नहीं , चाहता तो दूसरी नौकरी ढूँढ सकता है किंतु इगो के आगे सब कुछ बेमानी है । सोचते सोचते उसकी आँखें लग गई, सुबह उठी तो  एकलव्य  कमरे में नहीं था , लावण्या उठी और सीधे बाथरूम में घुस गई, ऑफिस जाने का  समय हो रहा है , जल्दी से तैयार हो हाॅल में आती है , सासू माँ ने नाश्ता बना रखा था , खा पीकर निकलने को हुई कि एकलव्य की आवाज आई,  तुम आज से ऑफिस नहीं जाओगी , जब तक मेरे लिए पैसे का जुगाड़ नहीं होता , तब तकसतुम घर में रहोगी । ये क्या कह रहे हो , इतना भारी भरकम  पैसा कहाँ से  आएगा,तुम अपने पापा से बोलो देने के लिए    ,

लेकिन पापा  के पास नहीं है , मेरी पढ़ाई में उनके पैसे नहीं लगे तो तुम्हे कहाँ से देंगे वो  , पापा मामूली सा किरानी / क्लर्क थे अब रिटायर हो गए हैं और छोटा भाई भी अपने स्कॉलरशिप के बदौलत इंजीनियरिंग पढ़ रहा है । मैं कुछ नहीं जानता , तुम चुपचाप घर में बैठो , मुझे जलाने के लिए ऑफिस जा रही हो ना , नकारा पति समझती हो तभी तो दिखाने के लिए जा रही हो । जो समझना है समझो पर अब मेरा धैर्य जवाब दे रहा है । तुम्हारे लिए फूटी कौड़ी भी नहीं देंगे पापा , और मैं बैंक से लोन लेने के लिए जा रही थी , एक दो दिन सेक्सन भी हो जाता और पाँच साल में चुकता भी हो जाता , लेकिन अब नहीं कर सकती , जो भी करना है अपने बल पर करो , हावी होने की कोशिश मत करो । लावण्या की बात से एकलव्य चकरा गया और माफी माँगने लगा लेकिन लावण्या को अपने पति का पुरूत्व दिखाना अनुचित लगा इसलिए चार बातें सुना ऑफिस चली गई।

इनपुट सोर्स : अंजू ओझा, वरिष्ठ लेखिका, पटना।