सपनो का ब्याज

सच में पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी बेटियाँ बेटो से किसी मायने में कम नहीं है।एक वो भी समय था जब बेटी के लालन पालन से ज़्यादा फ़िक्र उसके विवाह की होती थी।छोटे से शहर में पली बढ़ी भईया को ट्यूशन पढाने जो मास्टर साहब आते थे.......

सपनो का ब्याज

फीचर्स डेस्क। अम्मां अगले महीने पिहू आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जा रही है । पिहू ने आपसे मिलने जाना था पर इतनी सारी फौरमैल्टी पूरी करनी है कि समय नहीं निकाल पा रही है।आपका टिकट भाभी को व्हाट्स एप कर दिया है आप  आ जाओ ।अरे लीला हम खुद ही टिकट करा लेती बहू से कह के तुम काहे को परेशान हुई । अम्मां ये टिकट पिहू ने अपनी कमाई  से करवाया है ।पिहू के जाने के बाद मैं आपको जल्दी जाने नहीं दूँगी सो लम्बा रहने का मन बनाकर आइएगा हां ज़्यादा सामान मत करिएगा।
                                   

सच में पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी बेटियाँ बेटो से किसी मायने में कम नहीं है।एक वो भी समय था जब बेटी के लालन पालन से ज़्यादा फ़िक्र उसके विवाह की होती थी।छोटे से शहर में पली बढ़ी भईया को ट्यूशन पढाने जो मास्टर साहब आते थे किसी तरह हिंदी जोड़ जाड पढ़ना सीख ही रही थी कि एक बड़े खेतिहर परिवार में ब्याह दी गई कि अच्छा परिवार है लडका वकालत पढ़ रहा है दो चार साल की बात है उसके बाद कौन गाँव देहात में रहता है।


बहू की उमर चाहे जो हो लेकिन उसे व्यवहारिक रूप से परिपक्व होना ही चाहिए ।दिन भर चक्कर घिन्नी सी घर में घूमते बात बात पर झिड़की सुनते दो बच्चों की माँ बन गई।पति की वकालत अच्छे से जम गई तो गाँव से फिर शहर आ गई। सोचती समझती तब तक दो बच्चे और हो गए।अब चार बच्चों को अकेले सम्भालते  सम्भालते कब सुबह होती कब शाम हो जाती पता ही नहीं चलता । वक़ील साहब को वो जाहिल अनपढ़ गँवार लगती।बात बात पर ताना देते अपनी पढ़ी लिखी भाभी से सीखो कैसे रहते हैं अपनी क़िस्मत में तुम्हीं लिखी थी। चुपचाप सुन मन मसोस कर रह जाती।कभी दादाजी और पिता पर क्रोध आता कि उसे बिन पढ़ाए लिखाए बोझ की गठरी सी एक चौखट से उठा दूसरे  चौखट पर पटक मुक्त हो गए। 


एक दिन पति के ऐसे ही तानो से बिंधी ईश्वर को साक्षात अपने आप से वादा कर लिया -जब तक दोनों बेटियाँ पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती उनके विवाह को सोचूँगी भी नहीं । 


बेटियाँ कालेज में थी तो घर में शादी ब्याह की चर्चा भी होने लगी लेकिन वो टस से मस ना हुई। यहाँ भी पति और घरवालों के कोप को सहती रही कोई अड़ियल समझता तो कोई बेवकूफ बददिमाग।लेकिन खुद से किए वादे से उन्हें कोई भी डिगा नहीं सका।बड़ी बेटी शीला आज हाई स्कूल में प्रिंसिपल है और छोटी लीला बैंक मैनेजर।अब उनकी नातिन बाहर पढ़ने जा रही है। पढ़ी लिखी आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी स्वाभिमान से भरी बेटियों को देख उनका कलेजा जुड़ा जाता है।

अम्मां कहाँ खोई है पर्स टेबल पर रखती बहू ने कहा।पिहू बेटा ने आपके लिए कोलकत्ता का टिकट भेजा है ।फटाफट चाय पी मार्केट चलते हैं पिहू और दीदी के लिए गिफ़्ट भी लेकर आना है ।उसे आपके हाथों के बने लड्डू पसंद है संडे को दोनो मिलकर लड्डू बना लेंगे।


 हाँ बेटा पहले मंदिर में माथा टेक आऊँ बरसों पहले आपके माथा टिका जो खुद से वादा किया था वो पूरा हुआ। अब किसी भी बेटी के शिक्षा के लिए जो भी बन पाएगा वो करूँगी ईश्वर को साक्षी मान आज दुबारा ये मेरा खुद से वादा रहा।


इनपुट सोर्स - कनक एस , मेंबर फोकस साहित्य 

Photo Credit- Google