चैत्र नवरात्रि 2022 : नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ देता है अदभुत फल, जानिए इसकी महिमा
मां की तो महिमा अपार है वो जो भी देती है कभी भी तोल कर नहीं देती है ना कभी हिसाब करती जिसको देती। मां हमेशा दिल खोलकर देती है इसलिए मां का दरबार सच्चा है। आप लोग भी नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ विधि जरूर करें। जानिए इसका महत्व…...
फीचर्स डेस्क। मां दुर्गा को खुश करने के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ बहुत ही फलदायी कहा गया है। नवरात्र के दिनों में तो इनका पाठ बड़ा ही उत्तम माना गया है इसलिए मां के भक्त दुर्गासप्तशती का पाठ जरूर करते हैं।
कुछ अध्यायों में उच्च स्वर, कुछ में मंद और कुछ में शांत मुद्रा में बैठकर पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है।
जैसे कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है।
देवी कवच उच्च स्वर में और श्रीअर्गला स्तोत्र का प्रारम्भ उच्च स्वर और समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए।
देवी भगवती के कुछ मंत्र यंत्र, मंत्र और तंत्र क्रिया के हैं। संपूर्ण दुर्गा सप्तशती स्वर विज्ञान का एक हिस्सा है।
पढ़ने की विधि
- प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय,
- दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय,
- तृतीय अध्याय, तीसरे दिन
- एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ
- पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन
- दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।
संपुट पाठ विधि
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है।
लेकिन यह अतिफलदायी है। अच्छा यह होगा कि आप संपुट के रूप में अर्गला स्तोत्र का कोई मंत्र ले लीजिए। या कोई बीज मंत्र जैसे ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नम: ले लें या ऊं दुर्गायै नम: से भी पाठ कर सकते हैं।
नवरात्र पूजा विधि
सर्वप्रथम- देवी भगवती को प्रतिष्ठापित करें। कलश स्थापना करें। दीप प्रज्ज्जवलन करें। ( अखंड ज्योति जलाएं यदि आप जलाते हों या जलाना चाहते हों)
ध्यान- सर्वप्रथम अपने गुरू का ध्यान करिए। उसके बाद गणपति, शंकर जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और नवग्रह का।
पाठ विधि
संकल्प- श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले भगवान गणपति, शंकर जी का ध्यान करिए। उसके बाद हाथ में जौ, चावल और दक्षिणा रखकर देवी भगवती का ध्यान करिए और संकल्प लीजिए...हे भगवती मैं.....( अमुक नाम)....सपरिवार...( अपने परिवार के नाम ले लीजिए...)...गोत्र.( अमुक गोत्र)....स्थान ( जहां रह रहे हैं)... पूरी निष्ठा, समर्पण और भक्ति के साथ आपका ध्यान कर रहा हूं।
हे भगवती आप हमारे घर में आगमन करिए और हमारी इस मनोकामना... ( मनोकामना बोलें लेकिन मन ही मन) को पूरा करिए।
श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ, जप ( माला का उतना ही संकल्प करें जितनी नौ दिन कर सकें) और यज्ञादि को मेरे स्वीकार करिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेज्ञ के साथ भगवती की पूजा प्रारम्भ करें।
मां दुर्गा को खुश करने के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ बहुत ही फलदायी कहा गया है।
सप्तशती में कुल तेरह अध्याय हैं जिन्हें तीन चरित्र यानी हिस्सों में बांटा गया है
प्रथम चरित्र जिसमें मधु कैटभ वध की कथा है।
मध्यम चरित्र में सेना सहित महिषासुर के वध की कथा है और उत्तर चरित्र में शुम्भ निशुम्भ वध और सुरथ एवं वैश्य को मिले देवी के वरदान की कथा है।
ऐसी मान्यता है कि हर अध्याय के पाठ का अलग-अलग फल मिलता है। इसलिए आपकी जैसी मनोकामना है उस अनुसार दुर्गासप्तशती के अध्याय का नियमित पाठ करें।
दुर्गा सप्तशती में हर अध्याय में का क्या फल मिलता है
प्रथम अध्याय के नियिमित पाठ से चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
दूसरे अध्याय के पाठ से कोर्ट केस और विवादों में विजय प्राप्त होती है। लेकिन ध्यान रखें कि देवी उन्हीं की सहायता करते हैं जो सच्चे और ईमानदार होते हैं।
शत्रु और विरोधियों से परेशान हैं तो नियमित तीसरे अध्याय का पाठ करें।
मां दुर्गा की भक्ति और कृपा दृष्टि के लिए चतुर्थ अध्याय का पाठ करें।
पांचवें अध्याय के पाठ से देवी की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है। मां भक्तों की समस्या दूर करती है।
छठे अध्याय के पाठ से भय, शंका, ऊपरी बाधा से मुक्ति मिलती है।
विशेष मनोकामना पूर्ण करने के लिए सातवें अध्याय का पाठ करें। इस अध्याय में देवी द्वार चंड मुंड के वध की कथा है।
वशीकरण और मनचाहा साथी पाने के लिए आठवें अध्याय का पाठ करें। इस अध्याय में रक्तबीज के वध की कथा है।
नवमें अध्याय का पाठ खोए हुए व्यक्ति को वापस लाने के लिए और संतान सुख के लिए कारगर माना गया है। इस अध्याय में निशुंभ के वध की कथा है।
दसवें अध्याय में शुंभ वध की कथा है। इस अध्याय के पाठ से रोग, शोक का नाश होता है। मनोकामना पूर्ति के लिए भी इस अध्याय का पाठ कर सकते हैं।
ग्यारहवें अध्याय के पाठ से व्यापार में लाभ एवं सुख शांति की प्राप्ति होती है।
बारहवें अध्याय के पाठ से मान-सम्मान एवं सुख संपत्ति का लाभ मिलता है।
तेरहवें अध्याय के पाठ से देवी की भक्ति एवं कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
इनपुट सोर्स: आचार्य पटवाल (शक्ति उपासक)