लघुकथा: रॉन्ग नंबर, कभी कभी सही जगह भी लग जाता है

मनजीत जी की निगाहें अपनी पत्नी उर्मिला के चेहरे पर टिकी रही लेकिन उर्मिला आगे बताने लगी..

लघुकथा: रॉन्ग नंबर, कभी कभी सही जगह भी लग जाता है

फीचर्स डेस्क। अभी-अभी अपनी नई चमचमाती कार से कहीं बाहर से घूम कर आए मनजीत जी अपनी पत्नी उर्मिला के साथ ड्राइंग रूम के सोफे पर बैठे चाय का लुत्फ़ उठा रहे थे कि तभी लैंडलाइन फोन की घंटी बज उठी..

"उर्मिला!.जरा फोन उठाना।"

मनजीत जी ने अपनी पत्नी की ओर देखा और उनकी पत्नी उर्मिला अपनी चाय की प्याली वहीं सेंटर टेबल पर रख कर फोन रिसीव करने भीतर स्टडी रूम में चली गई।

जब से मनजीत जी के दफ्तर में वर्क फ्रॉम होम शुरू हुआ था मनजीत जी ने अपना लैंडलाइन फोन स्टडी रूम में ही लगवा रखा था।

"किसका फोन था?"

स्टडी रूम से बाहर आती उर्मिला को देख मनजीत जी पूछ बैठे।

"रॉन्ग नंबर था!"

उर्मिला सोफे पर मनजीत जी के बगल में आ बैठी और फिर से अपनी चाय की प्याली हाथ में ले चाय की घूंट गले से नीचे उतारने लगी।

चाय ठंडी हो चुकी थी लेकिन उर्मिला ने अपने बातों की गर्माहट से मनजीत जी का ध्यान आकृष्ट किया..

"आपने अपना पुराना स्कूटर बेचने के लिए ऑनलाइन विज्ञापन दे दिया है क्या?"

"हांँ!.अभी दो दिन पहले ही मैंने ऑनलाइन विज्ञापन दिया है।" 

नई कार खरीदने के बाद मनजीत जी का स्कूटर उनके गेराज में बेकार पड़ा था इसलिए उन्होंने स्कूटर को बेचने का मन बहुत पहले ही बना लिया था।

"कीमत कितनी तय की है आपने?" उर्मिला अचानक पूछ बैठी।

"चौदह हजार रुपए!"

"कीमत थोड़ी ज्यादा रखी है आपने!"

पत्नी की बात सुनकर मनजीत जी मुस्कुराए..

"मात्र दो साल चलाया हुआ स्कूटर है!. वह भी बिल्कुल कंडीशन में,.दाम तो मैंने बिल्कुल कम ही रखा है मात्र चौदह हजार रुपए।"

मनजीत जी की बात सुनकर थोड़ी देर के लिए उर्मिला चुप हो गई कुछ बोल ना सकी लेकिन मनजीत जी आगे बताने लगे..

"पता है!.जैसे ही मैंने विज्ञापन डाला एक ग्राहक ने फौरन मुझे कॉल किया,.उसे हमारे स्कूटर की कीमत ज्यादा नहीं लगी लेकिन उसके पास उस वक्त मात्र दस हजार रुपए ही थे इसलिए उसने दो दिन की मोहलत मांँगी है!. देखता हूंँ तब तक कोई और ग्राहक आ गया तो".. 

"मैं एक बात कहूं!"

उर्मिला ने मंजीत जी की बात बीच में ही काट दी।

"हांँ!.कहो।"

"आप स्कूटर की कीमत दस हजार रुपए कर दीजिए!" उर्मिला की बात सुनकर मनजीत जी हंस पड़े..

"भाग्यवान!.आजकल दस हजार रुपए में साइकिल आती है!. स्कूटर नहीं।"

अपने समझ पर सवाल उठता देख उर्मिला ने मनजीत जी के सामने अपनी बात रखी..

"देखिए जी!. हम कोई दुकानदार तो है नहीं कि सामान की कीमत नफा-नुकसान देखकर लगाएं।"

"मैं कुछ समझा नहीं?"

उर्मिला की बातें सुनकर मनजीत जी को आश्चर्य हुआ लेकिन उर्मिला आगे बताने लगी..

"आजकल छोटे-मोटे काम-धंधा करने वालों की आमदनी कम हो गई है और उनके लिए दो-चार हजार रुपए जुगाड़ करना भी कभी-कभी मुश्किल हो जाता है।"

"तुम साफ-साफ कहो!.कहना क्या चाहती हो?" 

मनजीत जी की निगाहें अपनी पत्नी उर्मिला के चेहरे पर टिक गई..

"यही कि,. स्कूटर की कीमत चार हजार रुपए कम कर देने से हमारा कुछ आता-जाता नहीं है।"

मनजीत जी की निगाहें अपनी पत्नी उर्मिला के चेहरे पर टिकी रही लेकिन उर्मिला आगे बताने लगी..

"वह ग्राहक जिसने आपको कल कॉल किया था वह हमारा बेकार पड़ा स्कूटर अपने बेटे के लिए खरीदना चाहता है,.लेकिन चौबीस घंटे बीत जाने के बावजूद वह बाकी रुपयों का इंतजाम नहीं कर पाया है और कल तक रुपयों का इंतजाम हो जाएगा इस बात की उसे कोई उम्मीद भी नहीं है इसलिए वह और दो दिनों की मोहलत चाहता है।"

"यह बात तुम्हें कैसे मालूम?"

उर्मिला की पूरी बात सुनकर मनजीत जी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा लेकिन उर्मिला मुस्कुराई.

"अभी-अभी लैंडलाइन पर जो रॉन्ग नंबर आया था ना!. वह उसी ग्राहक का कॉल था।"

पूरा माजरा समझ मनजीत जी थोड़ी देर के लिए गहरी सोच में पड़ गए लेकिन अधिक सोच-विचार ना कर उन्होंने अपने मोबाइल से उस ग्राहक को फोन लगा दिया..

दूसरी तरफ घंटी बजते ही फोन रिसीव हो गया था। 

उस ग्राहक का अभिवादन स्वीकार करते मनजीत जी ने अपने स्कूटर की कीमत से कहीं अधिक उससे जुड़ी अपनी भावनाओं को विस्तार दिया..

"आप आकर स्कूटर ले जाइए!.मैंने कीमत चार हजार रुपए कम कर दिया है।"

इनपुट सोर्स: पुष्पा कुमारी "पुष्प" 

   पुणे (महाराष्ट्र)