पिया मोरे आये : पद्मभूषण उस्ताद राशिद खान की गायकी पर झूमते रहे श्रोता

पिया मोरे आये : पद्मभूषण उस्ताद राशिद खान की गायकी पर झूमते रहे श्रोता

वाराणसी सिटी। माहौल में सर्वत्र हरी भरी वादियां। विशालकाय उद्यान में पेड़ों पर चहचहाती चिड़ियों का झुंड। मयूर भी अपनी मधुर आवाज से सभी को लुभा रहे थे। उद्यान में कुर्सियों के अलावा हरी-हरी घासों पर गद्दा लगा कर उस पर सफेद चांदनी भी बिछायी गई थी। उद्यान में कुर्सियों पर पहले से ही गायन के लिए इंतजार करते सुधि श्रोताजन। सामने गायन के लिए गेंदा व गुलाब के फूलों से भव्य सजा मंच। उद्यान में चारों तरफ तरह-तरह के फूलों के पौधे अपनी सुंदरता के साथ ही सुगंध भी बिखेर रहे थे। परिसर में चारों तरफ छोटे-ठोटे मिट्टी के पात्रों में पानी भर कर उसमें गुलाब व डहेलिया के फूलों से की गई सजावट यहां की भव्यता और भी बढ़ा रहे थे। वातावरण में इत्र-गुलाब-खस व केवड़े की खूशबू फिजां भी फैली हुई थी जो हर किसी को आकर्षित करने के लिए काफी था। परिसर के बगल में पतित पावनी मां गंगा का तट सुरम्य वातावरण को और भी चौगुना कर रहा था। अवसर था शनिवार को सायंकाल सामनेघाट स्थित ज्ञान प्रवाह एवं संगीत परिषद काशी के संयुक्त तत्वावधान में वासंतिकी कार्यक्रम का। इस कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण थे दिग्गज गायक कलाकार पद्मभूषण उस्ताद राशिद खान।

 उस्ताद के आने के पूर्व ही भर गया था कार्यक्रम स्थल

उस्ताद राशिद खान निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक सायंकाल पांच बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। लेकिन मंच पर सायंकाल 5.30 बजे पहुंचे। उस्ताद के आने के पूर्व ही कार्यक्रम स्थल पूरी तरह से खचाखच भर गया था। इनमें सुधिजन संगीत रसिकों के अलावा महिलाएं भी थीं। इनमें काफी संख्या में विदेशी भी रहे। कार्यक्रम प्रारंभ होने के पूर्व न्यासी युगल किशोर मिश्र व हर्षवर्धन नेवटिया ने गंगा पूजन किया। यह संगीत का आयोजन राधा-कृष्ण के सानिध्य में किया गया था। इसके बाद संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन नेवटिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें बहुत ही खुशी हो रही है कि आज ज्ञान प्रवाह 25 वर्ष पूरे कर रहा है। यहां पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। जिसमें संगोष्ठी, राष्ट्रीय संगोष्ठी, वर्कशाप व संगीत के आयोजन होते हैं। यहां पर अपना संग्रहालय भी है। मेरे ताऊजी सुरेश बाबू का यह सपना था। उन्होंने भारतीय इतिहास का अध्ययन किया। इसका संकलन यहां पर है जो कि गौरव का विषय है। मेरी बड़ी मां श्रीमती विमला पोद्दार कहती हैं कि सब मां गंगा की कृपा है। इस मौके पर न्यासी विक्रम नेवटिया ने पद्मभूषण उस्ताद राशिद खान समेत अन्य कलाकारों को अंगवस्त्रम ओढ़ा कर सम्मान किया। इसके बाद उस्ताद राशिद खान का गायन प्रारंभ हुआ। उस्ताद ने गायन के पूर्व साज को संवारा सजाया और संगत कलाकारों को इशारा किया। श्रोताओं की ओर मुखातिब होकर बोले- आप सब से इजाजत चाहता हूं। कहा कि राग मारवाह में बंदिश सुना रहा हूं। उन्होंने राग मारवा में बंदिश सुनायी। बंदिश के बोल थे- पिया मोरे आये। इसके बाद उन्होंने ख्याल गायकी के अलावा ठुमरी, भजन और तराना गायकी से सुर-ताल व लय की मंजुल सरिता बहा कर श्रोताओं की खूब वाहवाही लूटी। उनके साथ अरमान खान व नागनाथ अडगांवकर (गायन) डा. विनय कुमार मिश्र (हारमोनियम), पं. रामकुमार मिश्र (तबला) व मुराद अली खान (सारंगी) पर बखूबी संगत कर रहे थे। इस अवसर पर ज्ञान प्रवाह के गौरवपूर्ण 25वें वर्ष पर रजत जयंती स्मारिका का लोकार्पण किया गया। स्वागत संबोधन संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन नेवटिया तथा मुख्य कलाकारों का परिचय न्यासी प्रो. अंजन चक्रवर्ती ने दिया। संचालन सहायक निदेशक डा. नीरज कुमार पांडेय कर रहे थे। धन्यवाद ज्ञापन संगीत परिषद के अध्यक्ष विनय जैन ने दिया।

इन विशिष्टजनों की रही उपस्थिति

कार्यक्रम में वैसे तो भारी संख्या में लोग मौजूद थे। इनमें प्रमुख रूप से श्रीमती विमला पोद्दार, प्रो. युगल किशोर मिश्र, प्रो. अंजन चक्रवर्ती, मंजू सुंदरम, शशांक सिंह, प्रो. विदुला जायसवाल, प्रो. कमल गिरी, अशोक कपूर, राजेश जैन, प्रो. सुशीला सिंह, विनोद अग्निहोत्री, विनय जैन, डा. रूबी शाह, गोकुल शर्मा समेत काफी लोग मौजूद थे।

बेहद खास है उस्ताद की गायकी का अंदाज

उस्ताद राशिद खान ने वैसे तो महज ग्यारह साल की उम्र में दिल्ली में अपना पहला प्रोग्राम दिया था लेकिन वह संगीतकार नहीं बनना चाहते थे। दरअसल वे एक क्रिकेटर बनना चाहते थे। लेकिन अपने परिवार की परम्परा से वह दूर नहीं रह पाये। वहीं गजल और कुछ प्रोग्राम देखने के बाद संगीत के प्रति उनकी दिलचस्पी बढ़ गई। पद्मभूषण उस्ताद राशिद खान इनायत हुसैन खान के परपोते और गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे हैं। हालांकि संगीत की शिक्षा उन्होंने अपने मामा निसार हुसैन खान से ली थी। इसके अलावा उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान से भी गायन के गुर सीखे। यह शिक्षा-दीक्षा उस समय ही शुरू हो गई थी जब राशिद खान महज छह वर्ष के थे।

महज 11 वर्ष की उम्र से की करियर की शुरूआत

एक जुलाई 1966 को उत्तर प्रदेश के बदाऊं में जन्मे उस्ताद राशिद खान की करियर की शुरुआत महज 11 वर्ष की उम्र से की। रामपुर सहास्वन घराने के उस्ताद राशिद हुसैन भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक दिग्गज कलाकार हैं। उन्होंने अपना पहला कार्यक्रम महज 11 वर्ष की उम्र में दिया था। वह तराना में पूर्ण रूप से पारंगत है। वे हमेशा संगीत के साथ नये-नये प्रयोग करते रहते हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में बेहतरीन गानों में अपनी आवाज दी जिसे दर्शकों ने बेहद सराहा।

उस्ताद राशिद खान जब सुर छेड़ते हैं तो हर कोई दीवाना हो जाता है। वह संगीत की साधना कुछ इस तरह करते हैं कि श्रोता अपना सुधबुद खो देते हैं। वैसे तो उन्हें हिंदुस्तानी संगीत में ख्याल गायकी के लिए जाना जाता है लेकिन ठुमरी, भजन और तराना में भी उनसे टक्कर लेने वाला कोई नहीं हुआ। अपनी आवाज का लोहा मनवा चुके उस्ताद राशिद खान का जन्म उ.प्र. के बदाऊं जिले में हुआ। बाद में मुंबई और फिर कोलकाता चले गये। उस्ताद ने शुद्ध भारतीय संगीत को हल्की संगीत शैलियों के साथ संयोजित करने का भी प्रयोग किया। इनसे नीना पिया (अमीर खुसरो के गाने) के साथ सूफी फ्यूजन रिकार्ड करने से लेकर पश्चिमी वाद्य यंत्र लुई बैंक्स के साथ प्रयोगात्मक संगीत कार्यक्रम शामिल है। इसके अलावा वह सितारवादक शाहिद परवेज और अन्य के साथ भी अपने संगीत के करतब दिखा चुके हैं। उस्ताद राशिद खान बालीवुड फिल्मों में भी अपनी आवाज का जादू दिखा चुके हैं। हम दिल दे चुके सनम का अलबेलो साजन आयो रे और वी मेट का आयोगे जब तुम हो साजना उनके हुनर के चंद नगीनों में शामिल है।

पं. भीमसेन जोशी ने की थी उस्ताद की तारीफ

वर्तमान में कोलकाता में रहने वाले उस्ताद राशिद खान की तारीफ दिग्गज कलाकार पं. भीमसेन जोशी ने की। उन्होंने राशिद खान को भारतीय संगीत का भविष्य बताया था। उनकी गायकी रामपुर सहमवान गायकी (गायन की शैली) ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखती है। इसमें मध्यम गति, पूर्ण कंठ स्वर और जटिल लयबद्ध गायकी शामिल है। राशिद खान धीरे-धीरे अपने चाचा गुलाम मुस्तफा खान की शैलियों में अपने बिलंब विचारों में स्पष्टता जोड़ दी है। वह आमिर खान व पं. भीमसेन जोशी की शैली से प्रभावित है। वैसे उनके गायन का अंदाज कुछ अलग ही है।

कई पुरस्कारों से नवाजा गया

उस्ताद राशिद खान को कई पुरस्कार मिले। महज 14 वर्ष की उम्र में आईटीसी में शामिल हो गये। उन्हें स्कालरशिप भी मिला। राशिद खान पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे पद्म पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी, भारतीय संगीत अकादमी और महान संगीतकार आदि समेत न जाने कितने ही अनगिनत अवार्ड मिले हैं।