वैशाखी पूर्णिमा पर व्रत रखने से होती है सुख सौभाग्य में अभिवृद्धि

वैशाखी पूर्णिमा पर व्रत रखने से होती है सुख सौभाग्य में अभिवृद्धि

फीचर्स डेस्क। भारतीय संस्कृति के हिंदू सनातन धर्म में वैशाखी पूर्णिमा का पर्व वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाये जाने की पौराणिक व धार्मिक मान्यता है। वैशाखी पूर्णिमा को सिद्ध विनायक पूर्णिमा, सत्य विनायक पूर्णिमा व धर्मराज पूर्णिमा भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने वैशाख पूर्णिमा का महत्व अपने परम मित्र सुदामा को उस समय बताया था,जब वे द्वारिका पहुंचे थे। भगवान श्रीकृष्ण के बताने के अनुसार सुदामा ने वैशाख पूर्णिमा का व्रत किया था। इससे उनकी दरिद्रता और दु:ख दूर हो गये थे। इससे वैशाख का महत्व और भी अधिक बढ़ गया। वैशाख पूर्णिमा पर भगवान विष्णु तेइसवां अवतार महात्मा बुद्ध के रूप में हुआ था। वैशाख पूर्णिमा को ही बुद्ध परिनिर्वाण दिवस भी मनाया जाता है। बौद्ध धर्मावलंबी अपनी मान्यता व रीति रिवाज के मुताबिक आज के दिन बौद्ध विहार में विविध प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

पूर्णिमा पर रहेगा स्वाति नक्षत्र व सिद्धि योग का अनुपम संयोग

प्रख्यात ज्योतिषीविद् पं. विमल जैन के मुताबिक इस बार वैशाखी पूर्णिमा का पर्व 5 मई शुक्रवार को मनाया जायेगा। वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 4 मई गुरुवार की रात्रि 11.45 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 5 मई शुक्रवार की रात्रि 11,04 मिनट तक रहेगी। इस दिन स्वाति नक्षत्र व सिद्धि योग का अनुपम संयोग बन रहा है। स्वाति नक्षत्र 4 मई गुरुवार की रात्रि 9.35 मिनट पर लग रहा है जो कि 5 मई शुक्रवार की रात्रि 9.40 मिनट तक रहेगा। सिद्धियोग 4 मई गुरुवार को दिन में 10.36 मिनट पर लगेगा जो 5 मई को दिन में 9.16 मिनट तक रहेगा। ग्रहों के अनुपम संयोगपर वैशाखी पूर्णिमा पर धार्मिक अनुष्ठान, दानपुण्य आदि करना शुभफलदायी रहेगा। स्नान-दान व व्रत की पूर्णिमा इसी दिन मनायी जायेगी। पूर्णिमा तिथि चन्द्रमा को समर्पित है जिनको चन्द्रमा की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा विपरीत हो, उन्हें आज के दिनव्रत-उपवास रख कर चन्द्रमा की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

धर्मराज की पूजा से अकाल मृत्यु के भय का निवारण

वैशाखी पूर्णिमा पर धर्मराज की पूजा-अर्चना से अकाल मृत्यु के भय का निवारण तथा सुख समृद्धि में अभिवृद्धि होती है। इस दिन धर्मराज की मूर्ति स्थापित कर उनका शृंगार करके ऋतुफल, नैवेद्य व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा अर्चना करनी चाहिए। धर्मराज की प्रसन्नता के लिए जल से भरा कलश, विविध प्रकार के पकवान व मिष्ठान्न ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। समस्त पापों के श्मन तथाा क्षय के लिए पांच या सात ब्राह्मणों को शर्करा (चीनी) सहित तिलदान भी किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान करके दान-पुण्य करने की परम्परा है। इस दिन सत्यनारायन भगवान व भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है।