तांत्रिक ने कहा- "प्रेतात्मा पी रहा बच्चे के शरीर का खून' पढ़ें क्या है पूरा मामला

तांत्रिक ने कहा- "प्रेतात्मा पी रहा बच्चे के शरीर का खून' पढ़ें क्या है पूरा मामला

फीचर्स डेस्क। कुपोषण एक गंभीर समस्या हो चली है। सरकारें अक्सर इसे कम करने के प्रयास करती रहती हैं। समय-समय पर स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन के ओर से भी विभिन्न प्रकार के जागरूकता के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। बावजूद इसके लोग टोना-टोटका और तांत्रिकों का सहारा लेकर फंस रहे हैं। इनमें ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी लोग ओझा अथवा तांत्रिकों के चक्कर में लोग फंस रहे हैं।  कई स्थितियों में ऐसा हुआ है कि लोगों ने इनके चक्कर में पड़कर अपने बच्चों की सेहत ख़राब कर ली। स्वास्थ्य विभाग के ओर से एक सूचना जारी की गई है। जिसमें इन ढोंगियों और आडम्बरों के बारे में बताया गया है। साथ ही कुपोषण से बचाव के उपाय भी बताए गए हैं।

ओझा ने बच्चे को पहनाया ताबीज

वाराणसी के आराजीलाइन स्थित एक गांव में अभिषेक मौर्य नाम के शख्स के 7 महीने के बेटे ने लगभग खाना-पीना सबी छोड़ दिया। ऊपर से आहार लेते ही उसे पाचन की समस्या होने लगी। साथ ही दस्त शूरू हो गए। आहार नली में किसी भी प्रकार का आहार न लेने पर उसका शरीर सूखने लगा। टोटके की आशंका से परिजनों ने चंदौली के एक गांव में एक ओझा के यहां झाड़-फूंक कराना शूरू किया। ओझा ने बच्चे (ध्रुव) को एक ताबीज पहनाया और कहा कि जैसे-जैसे ताबीज पुराना होगा, बच्चा वैसे वैसे स्वस्थ होता जाएगा। मगर हुआ ठीक इसका उल्टा। जैसे जैसे ताबीज पुराना होता गया, बच्चे की हालत न खाने पीने से और बिगड़ती गई।

ध्रुव की मां का अनुसार, उसके घर एक आशा कार्यकर्ता ने आकर बताया कि बच्चे को कुपोषण है और उसे ईलाज की आवश्यकता है। आशा ने ध्रुव को पुनर्वास केंद्र (NRC) में 6 दिसंबर को भर्ती कराया। तब उसका वजन 7 . 88 किलोग्राम था। भर्ती होने के बाद 14 दिनों तक चले इलाज में ध्रुव का वजन बढ़कर 9 किलोग्राम हो गया।

तांत्रिक ने बताई प्रेत बाधा

महमूरगंज की पूजा की 8 महीने की बेटी संतोषी की भी हालत ध्रुव जैसी ही थी। वजन लगातार कम होने से उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी।  तब एक रिश्तेदार के बताने पर वह भेलूपुर में रहने वाले एक तांत्रिक के यहां पहुंची।  तांत्रिक ने बताया कि उसकी बेटी पर प्रेत बाधा है। यह प्रेत उसकी बेटी के शरीर का खून पी रहा है, इसी से वह कमजोर होती जा रही है। प्रेत बाधा को दूर करने के नाम पर, तांत्रिक उससे धन ऐठता रहा। लेकिन बेटी ठीक नहीं हुई। बेटी के बीमार होने की जानकारी होने पर आशा कार्यकर्ता मंजू उसके घर आई।  NRC में 8 दिसंबर को भर्ती कराया। उसका वजन 6 किलो 50 ग्राम था। 14 दिनों के बाद वजन बढ़कर 8 किलोग्राम हो चुका है।

वाराणसी के पं० दीनदयाल उपाध्याय गवर्नमेंट हॉस्पिटल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र की आहार सलाहकार विदिशा शर्मा के अनुसार, ये कहानी व्यक्तिगत किसी एक बच्चे की नहीं है। बल्कि, यहां भर्ती होने वाले उनके जैसे कई बच्चे हैं, जिनके अभिभावक पहले कहीं न कहीं भ्रमित होते हैं। फिर अंत में यहां पर आते हैं। आवश्यकता है, अभिभावकों को जागरूक होने की।  कुपोषण की समस्या से जूझ रहे बच्चों की बिगड़ती हालत का सबसे बड़ा कारण झाड़-फूंक और जादू टोना है। पहले अभिभावक इन ओझा और तांत्रिकों के चक्कर में पड़ते हैं। फिर स्थिति बिगड़ने पर उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। बच्चों में कुपोषण का लक्षण नजर आने पर उन्हें तुरंत अस्पताल और NRCले जाना चाहिए।

-    विदिशा शर्मा, NRC, पं० दीनदयाल हॉस्पिटल, वाराणसी।

आहार में पोषक तत्वों क का ठीक ढंग से न शामिल होना भी कुपोषण को जन्म देता है। कुपोषण के कारण बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।  इसके कारण बच्चों में एनीमिया, मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं।  समय रहते इसका ईलाज न कराने पर बच्चों की मृत्यु भी हो सकती है।

-    डॉ० आर० के० सिंह, मेडिकल सुप्रिटेंडेंट, पं० दीनदयाल हॉस्पिटल वाराणसी।

बच्चों को समय से पोषक तत्व देने से उन्हें कुपोषण जैसी बीमारी से दूर रखा जा सकता है। साथ ही इससे बचाव के लिए शिशुओं की उचित देखभाल की भी आवश्यकता है। शिशुओं को 6 महीने तक मां के दूध के अलावा कुछ न दिया जाय। 6 महीने से 2 साल तक के बच्चों को स्तनपान के साथ ऊपरी पोषक आहार दिया जाना चाहिए। शुरू में बच्चों को फलों का जूस, दाल का पानी या चावल का माड़ भी दिया जा सकता है। बच्चों में दांत नहीं निकला होता। लिहाजा उसे उबला या भांप में पकाया हुआ सेब, गाजर, लौकी, आलू या पालक आदि मसल कर दे सकते हैं। बाद में उसे दलिया, खिचड़ी, बेसन या आटे का हलुआ भी दिया जा सकता है।

-    डॉ० ओ० पी० सिंह, प्रदेश प्रवक्ता, नीमा।