भविष्य पर प्रश्न चिन्ह

मैं किताबों का क्रेता नहीं बल्कि अपनी किताबों का विक्रेता बनकर आया हूँ। खबर लगी थी कि शहर में बस आप ही की दुकान ठीक-ठाक चल रही है, तो अपनी मैगज़ीन कॉर्नर की किताबें बेचना चाहता था। पर यहाँ मेरी किताबों का कोई.......

भविष्य पर प्रश्न चिन्ह

फीचर्स डेस्क। "बताइए भैया! कौन सी किताब चाहिए? यहाँ कक्षा तीन से लेकर स्कूल-कॉलेज एवं प्रतियोगी पुस्तकें मिलती हैं। विदेशी प्रकाशन के भी रखता हूँ", व्यवसायिक तरीके से सुखलाल ने हाँक लगाई।

"नहीं भाई! मैं किताबों का क्रेता नहीं बल्कि अपनी किताबों का विक्रेता बनकर आया हूँ। खबर लगी थी कि शहर में बस आप ही की दुकान ठीक-ठाक चल रही है, तो अपनी मैगज़ीन कॉर्नर की किताबें बेचना चाहता था। पर यहाँ मेरी किताबों का कोई काम नहीं दिखता।"

"ऐसा क्यों भैया?"

"क्या कहूँ भाई? आप भी इसी व्यवसाय में हैं, आपसे कुछ छुपा नहीं है।"

"सब जानता हूँ भैया! हाल में दुकान खोली है, पहले एक फुटपाथी दुकानदार था। कोर्स एवं प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित किताबों में संभावना नजर आई तो वही रखने लगा। इधर-उधर से किताबों की हालत के हिसाब से आधे से चौथाई दाम देकर किताबें खरीदकर कुछ अधिक में विद्यार्थियों को बेच दिया करता हूँ। यहाँ पुराने सत्र की किताबें लौटाकर कुछ पैसे मिलाकर नए सत्र की भी मिल जाती है। व्यवसाय शिक्षा एवं रोजी-रोटी से जुड़ा है, तभी जिंदा है। अब किस्से-कहानियाँ कौन पढ़ता है?"

" यह कहना भी गलत होगा भाई कि पढ़ने की आदत छूट गई है। पढ़ते लोग अभी भी हैं पर स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर। इन तकनीकों ने दुनिया भर की खबरें एवं किस्से-कहानियाँ मुफ्त उपलब्ध करा दी हैं तो ऐसी किताबें खरीद कर कौन पढे़ भला? कुछ खरीदार थे, पर कोरोना के खौफ से आए नहीं। ऑनलाइन मँगाया होगा,वही आदत बन गई। इस धंधे का अब कोई भविष्य नहीं रहा।"

"चलता हूँ भाई! दुकान खाली कर केक-पेस्ट्री की दुकान खोलना चाहता हूँ। दुकान का किराया देकर, पत्रिका, कथा-कहानी बेचकर घर के खर्चे नहीं चलेंगे। कबाड़ी की मदद लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा", थके हुए निराश कदम वापसी को मुड़ गए।

इनपुट सोर्स- नीना सिन्हा, मेंबर फोकस साहित्य