बुढ़ापा...
मेहमानों के बीच बैठ वे मुस्कुराते रहे,
अपने दर्द को बस छुपाते रहे।
बात करने की कोशिश नाकाम हो गई
उनकी बात सदैव अनसुनी की गई।
कमरे में बैठना- बैठाना दोनोंकी मजबूरी थी।
दुनिया दारी की खातिर बात माननी जरुरी थी
नये कपड़ों में लिपटकर सिकुड़े बैठे रहे।
बात तो थी पर होंठ बन्द ही रहे
कुछ कहना था,पर किसी का चेहरा देख
होंठों को सी लिया।
बुढ़ापे में कम सुनाई देता है
मेहमानों को बता दिया गया।
खाने की मेज नाना प्रकार से सज गये
डाक्टर की हिदायत फिर बीच में आ गई
हर चाहत को बुढ़ापे की आड़ में कुचल दिया गया
बुढ़ापे ने भी मुस्कुराते हुए हर बात को समझ लिया
उनके चेहरे में छिपे लकीरों के
मुस्कुराने की बारीके जो हमने देखी
जैसे कह रही हो_मुस्कुराते हुए दर्द को
छिपाने की कला बुढ़ापे से है हमने सीखी।
इनपुट सोर्स : सुमन झा, मेम्बर फोकस साहित्य ग्रुप।