ज़िम्मेदार कौन...

अरे ऐसी औलाद भगवान किसीको ना दे। यहाँ बीमार माँ पड़ोसियों,रिश्तेदारो और नर्स के भरोसे छोड़ सब प्रदेश में गुलछर्रे उड़ा रहे है। हर महीने माँ के बैंक खाते में अच्छी रक़म डाल डाक्टर से बात कर बस हो गई फ़र्ज़ निभाने की रस्म अदायगी ।सुधा की हालत देख कलेजा फट जाता है....

ज़िम्मेदार कौन...

फीचर्स डेस्क। क्या हुआ ताईजी आज कुछ अनमनी सी दिख रही हो तबीयत तो ठीक है ना आपकी ताऊजी कहाँ है। हां सुधा सब ठीक है और तेरे ताऊजी बैंक गए हैं आते ही होंगे। फिर हमेशा जोश से भरी रहने वाली हमारी ताईजी कुछ विचारों में उउलझी  लग रहीं है ।हम भी आपको जानते हैं बताइये ना क्या बात है ।

मेरी बड़ी भाभी सुधा तुझे याद है।हाँ वही ना ताईजी जिनके तीनों बच्चे बाहर विदेश में सेटल्ड है क्या हुआ उन्हें । अरे ऐसी औलाद भगवान किसीको ना दे। यहाँ बीमार माँ पड़ोसियों,रिश्तेदारो और नर्स के भरोसे छोड़ सब प्रदेश में गुलछर्रे उड़ा रहे है। हर महीने माँ के बैंक खाते में अच्छी रक़म डाल डाक्टर से बात कर बस हो गई फ़र्ज़ निभाने की रस्म अदायगी ।सुधा की हालत देख कलेजा फट जाता है बाल बच्चों के होते हुए भी ऐसा अकेलापन जिसमें कोई टूट जाए फिर सुधा भाभी की क्या कहूँ।
                                             

ये वही सुधा मामी है जिनकी क़िस्मत से पूरी रिश्तेदारी को रश्क होता था ।बच्चे हो तो सुधा जैसे तीनों पर साक्षात् सरस्वती का वरद्हस्त। बड़े ने अमेरिका जा पीएचडी कर वही शादीब्याह कर सैटल हो गया।दूसरा इंजीनियरिंग कर जर्मनी की बड़ी कम्पनी को ज्वाइन कर लिया।छोटे ने लॉ की पढ़ाई की और यही एल एल एम करना चाहता था पर ये सुधा मामी और उनके पति को कहाँ मंज़ूर था। हिन्दुस्तान में उच्च शिक्षा की विश्व में वैल्यू नहीं यहाँ रह उसे कुछ हासिल नहीं होगा ।हिन्दुस्तान में टैलेंट की कद्र नहीं पूरी ज़िंदगी बेकार हो जाएगी। जिस दिन उसका दाख़िला ब्रिटेन के प्रख्यात कालेज में हुआ। मामी ने मनौती पूरी होने की ख़ुशी में हनुमानजी को सवा मन लड्डू चढ़वाया। पूरे रिश्तेदारी और शहर में सुधा मामी और उनके बच्चे मिसाल थे ।बच्चे हो तो सुधा जैसे हमारी क़िस्मत ऐसी कहाँ यही सुनते सुनते हम बड़े हुए ।

कई बार तो सुधा मामी के बच्चों के चर्चे सुन उन्हें देखने की इच्छा बलवती हो उठती। बच्चे तो कभी कभार ही इंडिया आए हाँ सुधा मामी और उनके पति हरसाल विदेश जाते दुनिया भर की सैर कर वहाँ के लाए समान की क्वालिटी विदेशों की चमक दमक के क़िस्से सुनाते वक्त मज़े से बीत रहा था।

एक रात सुधा मामी के पति ऐसी नींद सोए कि उठे ही नहीं ।तीनों बेटे भागते भागते इंडिया पहुँचे पिता को अंतिम विदाई भी बहुत शानदार हुई बच्चों ने खूब खर्च किया माँ को कुछ बोलने की ज़रूरत ना पड़ी जिसे देख सुधा मौसी का दुःख थोड़ा कम हो जाता । जाते समय बच्चे सुधाजी को भी साथ ही ले गए। 

साल गुजरते ना गुजरते सुधाजी वहाँ के अकेलेपन से ऊब अपने शहर आ गई।जब पति थे बच्चों के पास गई घूमी फिरी वापस आ गई अब वहाँ तो समय का रूटीन घड़ी की सूई के साथ बंधा है ना कोई आस पड़ोस ना अपनी सोसायटी अकेले समय ही नहीं कटता।बच्चे वहाँ की लाइफ़स्टाइल और मेहनत से जो मुक़ाम बनाया उसे छोड़ आने में अपनी असमर्थता जता दी।

 तुम्हीं बताओ भला ऐसी पढ़ी लिखी लायक़ औलाद किस काम की जो बुढ़ापे में काम ना आ सके । इससे भले तो हमारे बच्चे भले उन जै्से रूपए से नहीं लाद सकते पर कम से कम माँ बाप के साथ तो है।


मैं अवाक् सी सोचती रह गई कल तक जो सुधा मामी को भाग्यशाली मान उनसे रश्क खाते थे आज उन्हें उनकी हालत से सहानुभूति हो रही है।लेकिन इस हालात के ज़िम्मेदार कौन है खुद सुधा मामी और उनके पति की सोच या उनकी औलाद या हमारा समाज और हमारे पूर्वाग्रह ।


इनपुट सोर्स - कनक एस, मेंबर फोकस साहित्य