बिहार के बाद गुजरात और हिमाचल पर चिराग पासवान की नजर, विधानसभा चुनावों में उतारेंगे अपने उम्मीदवार

बिहार के बाद गुजरात और हिमाचल पर चिराग पासवान की नजर, विधानसभा चुनावों में उतारेंगे अपने उम्मीदवार

नई दिल्ली। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा फैसला लिया है। बिहार की राजनीति में एक अच्छी पकड़ रखने वाले चिराग पासवान गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतारेंगे। फिलहाल इस बात का फैसला नहीं हो सका है कि दोनों ही राज्यों में उनकी पार्टी कितनी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। लेकिन चिराग पासवान ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दोनों ही राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला लिया है। आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। 12 नवंबर को हिमाचल में वोट डाले जाएंगे जब के नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे। गुजरात के लिए अभी तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। 

पार्टी की बैठक समाप्त होने के बाद चिराग पासवान ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि पार्टी ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। दोनों ही राज्यों में हम कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, इसका फैसला जल्दी कर लिया जाएगा। इसके साथ ही नीतीश सरकार के खिलाफ भी चिराग पासवान ने जबरदस्त तरीके से निशाना साधा। लोजपा रामविलास की बैठक के में बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए आम सहमति से एक प्रस्ताव पारित किया गया। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए कहा कि राज्य में अपराध तथा भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। 

चिराग ने कहा कि नीतीश कुमार की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और गलत नीतियों से बिहार और बिहारियों को बहुत नुकसान हुआ है। इसके परिणामस्वरूप, अपराध और भ्रष्टाचार राज्य में चरम पर हैं। उन्होंने आगे कहा कि लोजपा(रामविलास) ने यह प्रस्ताव पारित किया और मांग की है कि केंद्र बिहार सरकार को बर्खास्त करे तथा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करे। सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने बिहार में मोकामा और गोपालगंज विधानसभा सीट पर तीन नवंबर को होने जा रहे उपचुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इस फैसले को राज्य में(राजद)-नीत ‘महागठबंधन’ को समर्थन देने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।