प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट्स, पढ़िए क्यों

अल्ट्रासाउंड या मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट आजकल प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं ऐसे में कई बार जहन में ये सवाल आता है कि पहले तो इतने टेस्ट नहीं होते थे , आखिर ये टेस्ट क्या है और क्यों किए जाते हैं कई बार घर के बड़े बूढ़ों को ये समझाना और भी कठिन हो जाता है तो आइये आप की समस्या का समाधान करते हुए जानते हैं इस आर्टिकल में मैटरनल स्क्रीनिंग के बारे में विस्तार से...

प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट्स, पढ़िए  क्यों

फीचर्स डेस्क। अल्ट्रासाउंड या मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट आजकल प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं ऐसे में कई बार जहन में  ये सवाल आता है कि पहले तो इतने टेस्ट नहीं होते थे , आखिर ये टेस्ट क्या है और क्यों किए जाते हैं कई बार घर के  बड़े बूढ़ों को ये समझाना और भी कठिन हो जाता है तो आइये  आप की समस्या का समाधान करते हुए जानते हैं इस आर्टिकल में मैटरनल स्क्रीनिंग के बारे में विस्तार से। 

प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट्स बहुत जरूरी होते हैं।गर्भ में विकसित होते बच्चे में क्या क्या बदलाव आ रहे हैं क्या वो सही दिशा में हो रहे हैं ये सब जानकारी इकट्ठा करने में मैटरनल स्क्रीनिंग हेल्प करती है। एडवांस स्टेज के टेस्ट जो किसी खास अंग के विकास पैर फोकस करते हैं उन्हें मैटरनल मार्कर टेस्ट्स कहते हैं। इनसे विकसित होते बच्चे में जिनेटिक और जन्मजात विकार का पता लगाया जा सकता है। जनरली ये टेस्ट्स विकसित होते बच्चे में किसी तरह की क्रोमोसोमल अबनॉर्मलिटी  की संभावना को जांचने के लिए किए जाते हैं। क्रोमोसोमल अबनॉर्मलिटी बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर असर डाल सकती हैं। इसलिए ये जरूरी है कि रूटीन चेकअप और टेस्ट्स हर ट्राइमेस्टर में किए जाएं ताकि बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर निश्चिंत हुआ जा सके और अगर कोई समस्या आए तो उसका रास्ता ढूंढा जा सके। डुअल और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट दोनों ही इस कारण से किए जाते हैं।

डुअल मार्कर टेस्ट

ये एक ब्लड टेस्ट होता है जो आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 11वें से 13वें हफ्ते के बीच किया जाता है। ये टेस्ट एनटी स्कैन के साथ किया जाता है। एनटी स्कैन की मदद से बच्चे की गर्दन के नीचे की स्किन में मौजूद फ्लूइड का पता लगाया जाता है। इन दोनों ही टेस्ट्स से ये पता लगाने में मदद मिलती है कि पैदा होने वाले बच्चे में किसी तरह की क्रोमोसोमल असमानता तो नहीं है। ये दोनों ही फर्स्ट ट्रेमेस्टर के इम्पोर्टेन्ट टेस्ट्स हैं।  

क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट

क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट प्रेग्नेंसी के 15वें और 20वें हफ्ते के बीच किया जाता है ,ये भी एक तरह का ब्लड टेस्ट होता है। डुअल मार्कर टेस्ट की तरह क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट इस बात की जांच करता है और जानकारी देता है कि क्या प्रेग्नेंसी में बच्चा किसी जिनेटिक विकार के साथ तो पैदा नहीं हो रहा है। सभी गायनेकोलॉजिस्ट ये दोनों टेस्ट हर प्रेगनेंसी में करवाने की सलाह देते हैं। 

क्यों हैं ज़रूरी डुअल और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट्स

ये मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट्स सफलतापूर्वक कई परेशानियों का पता लगा सकते हैं ,उनमे से खास हैं

1. न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स -

न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स का पता इनसे आसानी से लगाया जा सकता है। अगर ये डिफेक्ट्स शिशु में है तो उसका दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पता और उसके बचने की उम्मीद भी काम रहती हैं। इन  डिफेक्ट्स के कारण  पैरों का लकवा, कमजोरी, ब्लैडर और मल त्याग पर संयम रखने की क्षमता नहीं रह जाती। इसके पॉजिटिव आने पैर मेटरनल सीरम टेस्ट प्रेग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में किया जाता है जो इस स्थिति का पता सार्थक तौर पर लगा सकता है।

2. डाउन सिंड्रोम -

डाउन सिंड्रोम का पता भी इन  लगाया जा सकता है। ये एक क्रोमोसोमल असमानता है जो महत्वपूर्ण बौद्धिक विकलांगता पैदा करती है। डाउन सिंड्रोम एक जिनेटिक समस्या है इससे कई डिफेक्ट्स हो सकते हैं जैसे दिल से जुड़ी समस्याएं, देखने और सुनने की समस्या।डाउन सिंड्रोम की बेहतर समझ और शुरुआती हस्तक्षेप इस विकार को कुछ हद तक ठीक सकता है और व्यक्ति अच्छा जीवन बिता सकता है। 

3. एडवर्ड सिंड्रोम -

एडवर्ड सिंड्रोम तब होता है जब क्रोमोसोम 18 से एक अतिरिक्त जिनेटिक मटेरियल आ जाता है। इस अतिरिक्त मटेरियल का बच्चे के विकास पर प्रभाव पड़ता है और बाहरी और आंतरिक शारीरिक विकार पैदा होते हैं। यह स्थिति शारीरिक अक्षमताओं जैसे दिल की बीमारी, पाचन तंत्र में विकार और विकास की कमी की ओर ले जाती है। एडवर्ड सिंड्रोम से पीड़ित अधिकांश बच्चे एक वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहते हैं। डुअल मार्कर टेस्ट और क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट दोनों ही टेस्ट्स आपको ये बताते हैं कि आपकी हाई रिस्क प्रेग्नेंसी है या फिर लो रिस्क प्रेग्नेंसी है। अगर नतीजों में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी आती है तो इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है की ये समस्याएं होंगी ही , इसके लिए आपको और ज्यादा डिटेल में बेहतर डायग्नोसिस करवाने होंगे।

इमेज सोर्स - गूगल इमेजेज