शनि प्रदोष व्रत है 15 जनवरी को, व्रत करने से होगी पुत्रार्थियों की कामना पूर्ण, जानें पूर्ण विधि

शनि प्रदोष व्रत 15 जनवरी को होगा। भगवान आशुतोष की कृपा से मिलेगी सुख समृद्धि और खुशहाली। शनि प्रदोष व्रत से होगी हर किसी की मनोकामना पूर्ण । कैसे करें यह प्रदोष व्रत बता रहे हैं ज्योतिषविद विमल जैन....

शनि प्रदोष व्रत है 15 जनवरी को, व्रत करने से होगी पुत्रार्थियों की कामना पूर्ण, जानें पूर्ण विधि

फीचर्स डेस्क। भारतीय संस्कृति ने भगवान शिव जी देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शिव पुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है। कलयुग में भगवान शिव जी की प्रसन्नता के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत अत्यंत चमत्कारी कहा गया है। प्रदोष व्रत से दुख दरिद्रता का नाश होता है और जीवन में सुख समृद्धि आती है। जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही सुख समृद्धि का योग बनता है। सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को प्रदोष काल कहा जाता है ।यह व्रत कब रखा जाता है , आइए ज्योतिषविद विमल जैन से जानते हैं।

कब रखा जाता है ये व्रत

विमल जैन बताते हैं कि प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि की प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है । इस बार यह व्रत 15 जनवरी शनिवार को रखा जाएगा। पौष शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 14 जनवरी शुक्रवार को रात्रि 10:20 पर लगेगी जो कि 15 जनवरी शनिवार को अर्धरात्रि के बाद 12:58 तक रहेगी।  प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 15 जनवरी शनिवार को होने के कारण प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोष काल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है। इसी अवधि में भगवान शिव जी की पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। व्रत वाले संपूर्ण दिन निराहार और निर्जल रह जाता है और शाम को सूर्यास्त के पूर्व दोबारा स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष बेला में भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है।

ऐसे करें प्रदोष व्रत

विमल जैन कहते हैं कि व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान पूजा अर्चना के पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल पुष्प, फल, गंध और कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संपूर्ण दिन निराहार रहते हुए सांय काल में दोबारा स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोष काल में भगवान शिव जी की विधि विधान पूर्वक पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव जी का अभिषेक कर के श्रृंगार करने के पश्चात उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगंधित द्रव्य के साथ बेलपत्र कनेर धतूरा मदार रितु पुष्प और नैवेद्य अर्पित करके धूप दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। परंपरा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगत जननी पार्वती जी की भी पूजा अर्चना की जाती है। स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त यदि अपने मस्तक पर भस्म का तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करते हैं तो उसे शीघ्र फल मिलता है।

भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए क्या करें

भगवान शिव जी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्रोत का पाठ और स्कंद पुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन और श्रवण अवश्य करना चाहिए। वृत्त से संबंधित कथाएं सुननी चाहिए जिससे मनोरथ की पूर्ति होती है। व्रत के दिन नजदीक के शिव मंदिर में दर्शन पूजन करके लाभ उठाना चाहिए। यह प्रदोष व्रत समस्त जनों के लिए मान्य है। व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए। व्रत के दिन अपने परिवार के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए। प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है साथ ही सुख समृद्धि मिलती है। जिन्हें शनि ग्रह अढ़ैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो या जिनकी जन्म कुंडली में शनि ग्रह प्रतिकूल हो उन्हें देवाधि देव महादेव की कृपा प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। इससे शनि दोषों का शमन होता है।

अभीष्ट मनोकामना के लिए 11 प्रदोष व्रत या जब तक आपकी मनोकामना पूर्ण ना हो तब तक यह प्रदोष व्रत करना चाहिए। इससे उत्तम फल अवश्य मिलता है।