Navratri Special: बाबा विश्वनाथ की नगरी में मां आदिशक्ति के विभिन्न स्वरूप

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के पावन भूमि पर मां आदिशक्ति विभिन्न स्वरूपों में विराजमान हैं। नवरात्र मान जगदम्बा की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है।

Navratri Special: बाबा विश्वनाथ की नगरी में मां आदिशक्ति के विभिन्न स्वरूप

फीचर्स डेस्क। धर्मग्रंथों और पुराणों के अनुसार भगवती आदिशक्ति की पूजा अर्चना का श्रेष्ठ समय शारदीय नवरात्र को माना जाता है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली मां जगदम्बा की नौ कलाएं ( विभूतियां) नव दुर्गा कहलाती हैं।जो अपने भक्तों की सात्विकता से प्रसन्न होकर उन्हें सुख, समृद्धि,सौभाग्य,ज्ञान ,आरोग्य एवं शक्ति प्रदान करती हैं। वाराणसी की परम पुनीत धरती पर अनेक देवी मंदिर हैं। यहां पर कुछ प्रमुख देवी मंदिर भी है।
वाराणसी में काशी विश्वनाथ से कुछ दूरी पर मां अन्नपूर्णा का मंदिर स्थित है।त्रिभुवन की मां के रूप में माता जगदम्बा के अन्नपूर्णा रूप से संसार का भरण पोषण होता है । स्कंदपुराण के 'काशी खण्ड' में लिखा है कि भगवान शिव गृहस्थ हैं और मां भवानी गृहस्थी की संचालिका हैं। यह मान्यता है कि मां अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कोई भी भूखा नहीं रहता। इस मंदिर के दीवाल पर बने चित्रों में बाबा विश्वनाथ स्वयं काशी नगरी के पालन पोषण के लिए भोजन मांगते हुए दर्शाए गए हैं।धनतेरस के पर्व पर मां अन्नपूर्णा के स्वर्णिम रूप का दर्शन भक्त जन पाते हैं और मां अपने भक्तों पर अन्न धन का खजाना लुटाती हैं।
अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्तोत्र रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। यथा।." अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती।"
वाराणसी के प्रमुख मंदिर में मां कुष्मांडा का  स्वरूप दुर्गाकुंड के पास स्थित दुर्गा मंदिर है।मान्यता है की शुम्भ,निशुंभ के वध के पश्चात मां दुर्गा ने यहां विश्राम किया था। मां आदिशक्ति अदृश्य रूप में दुर्गामंदिर में विराजमान रहती हैं। इस मंदिर में देवी की मूर्ति में अलौकिक तेज है,जिसके दर्शन मात्र से भक्तों के समस्त पाप जल जाते हैं।
इसी क्रम में"विशालाक्षी शक्तिपीठ" 51शक्तिपीठों में से एक है।काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित मोक्षदायिनी गंगा के तट पर स्थित  मीरघाट पर यह मंदिर है। मान्यता है कि यहां पर माता सती का कर्ण कुंडल और नेत्र गिरा था। दक्षिण भारतीय शैली में मदुरै के मीनाक्षी मंदिर के सदृश भव्य विशाल नेत्रों वाली मूर्ति है।शास्त्र के अनुसार बाबा विश्वनाथ मां विशालाक्षी के मंदिर में विश्राम करते हैं।भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने वाली मां विशालाक्षी के दर्शन से सुख,सौभाग्य,समृद्धि और यश में वृद्धि होती है।
मंदिरों के नगर काशी में मां संकठा का मंदिर ,पवित्र गंगा के तट पर स्थित सिंधिया घाट पर है।माता संकठा अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती हैं और उनके दुखों का समूल नाश करती हैं। कहा जाता है कि माता सती के आत्मदाह के पश्चात भगवान शिव ने अपनी व्याकुलता शांत करने के लिए स्वयं मां संकठा की आराधना की थी,और उन्हें मां पार्वती का पुनः साथ प्राप्त हुआ था।
अज्ञातवास के दौरान पांडव जब आनंदवन (प्राचीन समय में काशी को आनंदवन भी कहा जाता था) आए तो मां संकठा की भव्य प्रतिमा स्थापित कर एक पैर पर खड़े होकर पांचों भाइयों  ने पूजा की। देवी ने उन्हें आशीर्वाद दिया की गो माता की सेवा करने पर उन्हें लक्ष्मी और वैभव की प्राप्ति होगी।तेज़,ओज से परिपूर्ण,सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने वाली मां संकठा भक्तों के कार्यों का हरण कर लेती हैं। "नमो काशी वासिनी सदा गंग तीरे
सदा अरचितम चंदनम रक्त पुष्पम
नमो संकटा कष्ट हरनी भवानी"।
वाराणसी में मंगला गौरी का मंदिर परम पूज्य है। पतित पावनी मां गंगा के पंचगंगा घाट पर स्थित मां मंगला गौरी । अखंड सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं और नित्य पूजित देव विग्रह है।कहा जाता है की सूर्य देव ने यही पर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था तो गभस्तेश्वर महादेव के रूप में शिव और उनके साथ माता जगदम्बा मंगला गौरी के रूप में प्रकट हुई और वहीं पर कल्याणमयी रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
देवी मंदिरों में चौसट्टी माता का अपार महत्व है।यह मंदिर कलकल निनादिनी मां गंगा के तट पर स्थित चौसट्टी घाट पर स्थित है। चौसट्टी देवी को जागृत पीठ के रूप में मान्यता मिली है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने चौसठ योगिनियों को काशी भेजा था।उन्हें काशी नगरी इतनी प्रिय लगी कि वे यहीं रह गई।इन्हीं योगिनियों को चौसट्टी माता के रूप में पूजा जाता है।
मंदिरों की अलौकिक नगरी काशी में मां आदिशक्ति के अनेक मंदिर हैं। यहां अस्सी से लगे भदैनी क्षेत्र में लोलार्क कुंड के पास मां महिषासुरमर्दिनी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की विशेषता है कि यहां देवी का स्वरूप दिन में तीन बार बदलता है।स्थानीय भक्तों ने इस बात का स्वयं अनुभव किया है। मां का दर्शन जो भी भक्त पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण से करता है,देवी उसके सारे समस्याओं का हरण कर लेती हैं।
वाराणसी में मां दुर्गा के नौ शक्ति रूपों का अलग अलग मंदिर है।नवरात्र में जनमानस पूरी श्रद्धा के साथ इनके दर्शन का पुण्य लाभ उठाता है।
प्रथम माता शैलपुत्री का मंदिर अलईपुरा में शक्कर तलब के पास स्थित है।
द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर गंगा तट पर स्थित ब्रह्मा घाट पर है।
तृतीय देवी चंद्रघंटा का मंदिर चौक थाने के सामने चंद्रघंटा गली में है।
चतुर्थ कुष्मांडा देवी का मंदिर दुर्गाकुंड पर स्थित है।
पंचम स्कंदमाता का मंदिर जैतपुरा में स्थित है जो बागेश्वरी देवी के रूप में पूजित हैं।
देवी के छठें रूप में कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है।जो सिंधिया घाट के ऊपर हैं।
नवरात्रि में सप्तम रूप में कालरात्रि की पूजा की जाती है।माता कालरात्रि का मंदिर कालका गली दशाश्वमेध पर स्थित है।
देवी के अष्टम स्वरूप में मां अन्नपूर्णा हैं,जो विश्वनाथ गली में है।
नवरात्रि का अंतिम नवां रूप माता सिद्धिदात्री का है,जो वाराणसी में गोलघर स्थित सिद्धमाता गली में विराजमान हैं।
काशी धार्मिक नगरी है।यहां बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती विराजते हैं। यहां गंगा के प्रत्येक घाट और प्रत्येक गली में मां। पार्वती का स्वरूप विराजमान है।घंटा और शंख ध्वनि से गुंजित  पवित्र नगरी के कण कण में आस्था और विश्वास  समाहित है।

इनपुट सोर्स: मंजुला चौधरी
(गूगल)
स्पेशल थैंक्स आचार्य अखिलेश पाठक( जैसा इन्होंने फोकस 24 न्यूज टीम को बताया)