women's day special : शादी के बाद 7 साल में छोड़ दिया ससुराल, पेंटिंग्स बना कर पूर्व राष्ट्रपति से पाई तारीफ 

बिहार के मधुबनी जिले की रांटी गांव की दुलारी देवी का काम ही आज उनकी पहचान है।इसके लिए दुलारी देवी को पद्मश्री भी मिल चुका है।

women's day special : शादी के बाद 7 साल में छोड़ दिया ससुराल, पेंटिंग्स बना कर पूर्व राष्ट्रपति से पाई तारीफ 

फीचर्स डेस्क। इसी सप्ताह में इंटरनेशनल वोमेंस डे है तो आज बात भी वोमेंस की ही होगी। आप वोमेंस की स्टोरी पढ़ रही हैं “ वोमेंस की बात हरलाइफ के साथ” सीरीज में । इस कड़ी में आज आप बिहार की एक वोमेंस के बारें में पढ़ेंगीं जिनको अपने लाइफ में हर एक मुश्किलों का सामना करना पड़ा जो आम लोगों के बस की बिलकुल नहीं है। जी, हाँ मैं आज बात करुगी बिहार के मधुबनी जिले की रांटी गांव की दुलारी देवी की। बता दें की उनका काम ही आज उनकी पहचान है। यही नहीं बल्कि इसके लिए दुलारी देवी को पद्मश्री भी मिल चुका है। तो चलिए जानते हैं दुलारी के बारे में विस्तार से-  

दुलारी के बारें बता देते हैं की इनका जन्म एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था।  जिसके कारण दुलारी का लाइफ को कई अभावों और गरीबी के बीच रहना पड़ा। दुलारी की शादी केवल 12 साल की छोटी उम्र में ही उनके माता-पिता ने करवा दी। लेकिन दुलारी ने अपने ससुराल में ज्यादा समय नहीं बिता सकी और शादी के महज सात सालों के बाद ही अपने ससुराल से मायके वापस लौट आईं। मुसीबत इनका यही पीछा नहीं छोड़ा। हालात अच्छी नहीं होने के कारण दुलारी को कुछ घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने का काम करना पड़ा। इस काम से उन्हें कुछ पैसा मिल जाता था और उनका जीवन यापन होने लगा। लेकिन शायद दुलारी के नसीब में कुछ और ही लिखा था। इसके बाद दुलारी ने अपने संघर्ष को जारी रखा और उन्हें पोछे की जगह कूची को थाम लिया। इसके बाद दुलारी ने पेंटिंग बनाना शुरू किया और अच्छी पेंटिंग्स बनाने लगीं। बस यही से इनके अच्छे दिनों की शुरुआत हुई लोगों को दुलारी की पेटिंग्स पसंद आने लगीं। आपको बता दें कि दुलारी ने एक बार जो पेंटिंग्स बनाई वह इतनी अच्छी थी कि दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी की तारीफ किया था।

कैसे आई दुलारी के हाथों में पोछे की जगह कूची ?

दरअसल, यह बात तक कि है जब दुलारी को अपने ही गाँव में एक मिथिला पेंटिंग आर्टिस्ट के घर पर काम करने का मौका मिला। इनका नाम कर्पूरी देवी था और ये मिथिला पेंटिंग के सेक्टर में एक जाना-माना नाम थीं। इनके घर पर झाड़ू-पोछे का काम मिलना दुलारी के लिए काफी अच्छा साबित हुआ। दुलारी जब यहाँ काम कर रही थीं तब वे अपने खाली समय में घर के आंगन को माती से पोत देती थीं और साथ ही लकड़ी का ब्रश बनाकर उन पर मधुबनी पेंटिंग करती थीं। उनके इस काम को देखकर कर्पूरी देवी ने उनका साथ दिया और उन्हें इस काम को सिखने में मदद की।

दुलारी को मिले सम्मान 

आपको बता दें कि दुलारी का नाम गीता वुल्फ की पुस्तक ‘फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश’ और मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच बुक मिथिला में लिया गया था। इसमें उनकी लाइफ के साथ उनकी कलाकृतियो को भी स्थान दिया गया है। इसके साथ ही उनकी पेंटिंग ने सतरंगी नामक पुस्तक में भी जगह बनाई है। इसके अलावा मैथिलि भाषा में इग्नू के लिए बने पाठ्यक्रम के मैंन पेज के लिए भी उनकी पेंटिंग का चयन हुआ है।

साथ ही यह भी बता दें कि पटना में बिहार संग्रहालय के उद्घाटन पर भी वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा दुलारी को खास तौर से बुलाया गया था। यहाँ हुई कमला नदी की पूजा के दौरान भी दुलारी की एक पेंटिंग का उपयोग किया गया था। दुलारी को साल 2012-13 में राज्य पुरस्कार ने सम्मानित किया था।

दुलारी के बारे में कुछ और खास 

दुलारी देवी अब तक करीब सात हजार मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं। दुलारी को पद्मश्री भी मिल चुका है जिसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष भी किया है।