Valentines Day Special:आइये जाने अमर प्रेम कहानियों की असलियत

अमर प्रेम के सूत्रधार लैला मजनू , हीर राँझा, शीरीं फरहाद का नाम प्यार करने वालों के सूबे में बहुत ही अदब और इज़्ज़त से लिए जाता है। कहाँ से शुरू हुआ ये प्यार , कैसे परवान चढ़ा और क्यों हो गया इतना मशहूर ये सब जानने के लिए पढ़ें पूरा आर्टिकल

Valentines Day Special:आइये जाने अमर प्रेम कहानियों की असलियत

फीचर्स डेस्क। वैलेंटाइन्स के आने की दस्तक से ही पूरा माहौल रूमानी हो गया है। चारों तरफ प्यार ही प्यार है और प्यार का जिक्र आते ही बरबस दिमाग में लैला मजनू, शीरीं फरहाद, हीर राँझा का नाम आ जाता है।  प्यार करने वालों के सूबे में इनका नाम बहुत ही अदब और इज़्ज़त से लिए जाता है। ये नाम प्यार में कभी एक तो नहीं हुए मगर ये वो नाम हैं जो इश्क-व-जुनून में मर मिटने वाले रूमानियत के फरिश्तों की तरह हमेशा याद किए जाते हैं।आखिर ऐसा क्या था इनकी प्रेम कहानी में आइये जानते हैं

लैला-मजनू

ये कहानी 7वीं सदी की है जब अरब के रेगिस्तानों में अमीरों का बसेरा हुआ करता था. उन्हीं अमीरों में अरबपति शाह आमरी के बेटे क़ैस इब्न आमरी भी थे  जिसे लोग 'मजनूं' भी कहते थे. उसी क़ैस को एक लड़की लैला से मोहब्बत हो गई. इस प्रेम कहानी के बारे में बताने वाले कई लोगों बताया कि लैला एक सियाहफाम यानी एक काली लड़की थी. जिस पर एक गोरे नौजवान क़ैस का दिल आ गया था

मशूहर सूफी कवि बुल्लेशाह लिख गए हैं कि एक बार जब लोगों ने क़ैस से पूछा कि ऐ मजनूं तुमने इस लड़की में क्या देखकर मोहब्बत की? यह लड़की काली है और तुम गोरे! तब क़ैस यानी मजनूं ने यह कर जवाब दिया कि क़ुरान शरीफ के हर हर्फ काले रंग के अक्षर में ही लिखे गए हैं और जहां आशिक का दिल आता है वहां काले और गोरे का अंतर नहीं रह जाता है.

लैला भी क़ैस के प्यार में गिरफ्तार थी. मगर लैला के घर वालों को ये इश्क़ फरमाना नागवार गुजरा।इसके बाद उन्होंने लैला की शादी बख्त नाम के शख्स से कर दी। मगर वो इश्क़ ही क्या जिसमें बग़ावत न हो! लैला ने अपने शौहर से साफ-साफ कह दिया कि वो क़ैस  के अलावा किसी और की नहीं हो सकती।वह बीमार रहने लगी और मौत के कगार पर पहुंच गई।

लैला की ऐसी हालत सुन कर मजनूं उससे मिलने अरब के तपते रेगिस्तानों में गिरता-भागता गर्म धूल की थपेड़ों में मारा-मारा फिरता जब लैला के करीब पहुंचा, तब लोग उसकी हालत देख कर पागल समझ कर उसे पत्थर मार कर भगाने लगे।

ऐसा कहते हैं कि दोनों के प्यार में इतनी शिद्दत और ताक़त थी कि तकलीफ एक को होती तो दर्द दूसरे को होता। जब लोग मजनूं को भगाने के लिए पत्थर मारते तब मजनूं के जिस्म पर फेंका गया हर एक पत्थर लैला को जख्मी कर जाता था। मजनूं से न मिलने के गम में लैला की मौत हो जाती है। कहते हैं लैला की मौत के तुरंत बाद मजनूं की भी सांसें हमेशा के लिए थम गई।

हीर राँझा

पंजाब की सरजमीं पर पैदा हुए प्यार के ये दो पंछी थे, जिनमें एक थी हीर और दूसरा रांझा। पंजाब के झंग शहर में, जाट परिवार में जन्मीं हीर, अमीर, खानदानी और बेहद खूबसूरत थी। वहीं रांझा चनाब नदी के किनारे बसे गांव तख्त हजारा के जाट परिवार में जन्मा।

रांझे का मन खेतीबाड़ी के बजाये बासुरी बजने में लगता था एक दिन वो छोड़ कर आगे बढ़ गया। भटकते हुए वह हीर के गांव झंग पहुंचा, जहां हीर को उसने पहली बार देखा और देखता ही रह गया। वहां हीर के घर उसने गाय-भैंसों को चराने का काम करना शुरू कर दिया। और उन दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा , दोनों छुप छुप कर मिलते। एक दिन हीर के चाचा ने ये देख लिया , फिर रांझे को वह से मार पीट के भगा दिया गया और हीर की शादी जबरदस्ती एक सैदा खेड़ा नामक आदमी से कर दी गई। 

अब रांझे के लिए यहां कुछ बचा न था। वह जोग यानि संन्यास लेने बाबा गोरखनाथ के डेरे, टिल्ला जोगियां चला गया। वह अपना कान छिदाकर बाबा का चेला बन गया। अब वह अलख-निरंजन कहते हुए पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में घूमने लगा। एक दिन अचानक वह हीर के ससुराल पहुंच गया। दोनों एक दुसरे को देखकर अपने प्रेम को रोक नहीं पाए और भागकर हीर के गांव आ गए। हीर के मां-बाप का दिल पसीज गया और उन्हें  शादी करने की इजाजत तो दे दी, लेकिन हीर के चाचा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था। जलन के कारण ही हीर का वह ईर्ष्यालु चाचा कैदो, हीर को लड्डू में जहर डालकर खिला देता है। जब तक यह बात रांझा को पता चलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। और वो भी वो लड्डू खा कर अपने प्राण त्याग देता है इस चाह में इस जहान में तो ना मिल पाए शायद उस जहान में एक हो जाये। 

शीरीं फरहाद

अर्मेनिया के बादशाह की बेटी शीरीं की खूबसूरती पर पर्शिया के बादशाह खुसरो का दिल आ गया था। खुसरो ने शीरीं से शादी करने की मंशा ज़ाहिर की तो शीरीं ने शादी के लिए शर्त रखी कि वह पर्शिया के लोगों और उसके लिए दूध का दरिया (नहर) लाकर दे दे।

शीरीं की शर्त को खुसरो ने स्वीकार ली इसके बाद शीरीं और खुसरो की शादी हो गई। खुसरो ने नहर खोदने का काम फरहाद को दिया। फरहाद शीरीं को देखते ही अपना दिल दे बैठा। वह शीरीं के प्यार में इस क़दर पड़ गया था कि वह उसे अपना पीर मानने लगा। फरहाद शीरीं की रट लगाने के साथ नहर को खोदने लगा। एक दिन जब शीरीं, फरहाद के रू-ब-रू हुई तो फरहाद ने उसके कदमों पर झुक कर अपने प्यार का इजहार किया। फरहाद का ऐसा करना शीरीं को अच्छा नहीं लगा और शीरीं ने उसे झिड़क दिया। फरहाद ने शीरीं का नाम लेकर पूरी नहर खोद डाली।

जब खुसरो को फरहाद के इस इश्किया जुनून के बारे में पता चला तो उसने अपना आपा खो दिया। फरहाद को जान से मारने के लिए खुसरो ने योजना बनाई। खुसरो के वजीर ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और वजीर ने खुसरो के माध्यम से एक ऐसे नामुमकिन काम को पूरा करने की शर्त फरहाद को दी, जिसे पूरा करने के बाद वह शीरीं को अपना बना पाएगा। शर्त यह थी कि फरहाद को पहाड़ियों के आर-पार सड़क बनानी होगी। वजीर जानता था कि फरहाद यह नहीं कर पाएगा। दीवाने फरहाद ने यह शर्त कबूल कर ली और सड़क बनाते-बनाते उसने खाना-पीना छोड़ दिया और दिन रात  शीरीं की रट लगाता सड़क बनाने का काम पूरा करने लगा।

मोहब्बत के इस पुजारी के ऊपर आखिर में शीरीं का दिल पसीज गया और वह भी फरहाद को चहाने लगी। फरहाद के इश्क़-व-जुनून ने सड़क बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया था। जिसे देख खुसरो घबरा गया और फरहाद को झूठी खबर पहुंचा दी कि शीरीं ने खुदकुशी कर ली है।  जिसे सुन कर फरहाद दीवारों पर सिर पटक-पटक अपनी जान दे दी। जब शीरीं को फरहाद की मौत और खुसरो के इस धोखे के बारे में पता चला तो उसने भी फरहाद के कदमों में अपनी जान दे दी.

है ना दिल को झकझोर देने वाली ये प्रेम कहानिया। रूमानियत, मोहब्बत, इश्क, जूनून और साथ साथ मर कर ये सभी किसी के प्रति प्यार की ऐसी परिभाषाएं देकर गए, जिसके एक नहीं अनेक मायने हैं। इनने हमेशा हमेशा  रखा जायेगा।

अगर आप का दिल भी इसे पढ़ कर अपने प्रेमी के लिए धड़का हो तो, इसे अपनी फ्रेंड्स , फॅमिली और  फेसबुक वाल पर शेयर ज़रूर करें।