अंधेरे का उजला पक्ष

पिछले कुछ वर्षों से जो घटित हो रहा है , उसका प्रभाव हम सब के जीवन पर बहुत गहरा पड़ा है..... अब तो सब छोड़ दिया है आगे की सोच ना....

अंधेरे का उजला पक्ष

फीचर्स डेस्क।  इस महामारी ने तो चेतना शून्य कर दिया है। हर व्यक्ति ने अपने अजींजो को खोया है ,डर के साए में जिंदगी जी है ।हर समय घर में रहने से अवसाद बढ़ रहा है।
फिर एक नई ऊर्जा, एक नई मुस्कान,एक नई उम्मीद से शुरुआत करती हूं।
परंतु कहीं ना कहीं ऐसा लगता है जैसे जिंदगी थम गई है। अभी पिछले घाव सूख भी नहीं पाते कि नए जख्म मिलने शुरू हो जाते हैं। इंसान कैसे संभाले खुद को...
सच में ,मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है एक दूसरे से मिलना, परस्पर इंटरेक्शन बहुत जरूरी है। परंतु इस महामारी ने तो हमारी जिंदगी की यही छोटी-छोटी खुशियां छीन ली।
पर जो सच है, जिंदा रहेंगे तो खुशियों के बारे में सोचेंगे ना.. अतः अब दूरियां ही दवा बन गई है।
तो दोस्तों ,इस मुश्किल समय में कुछ ऐसा करते हैं जो जिंदगी को खुशगवार बना दे। वह करें, जो अभी तक कर नहीं पाए, जिंदगी की आपा धापी में बहुत कुछ छूट जाता है।
मिल नहीं सकते तो फोन पर  बात करें, कुछ अपनी कहे ,कुछ उनकी सुने।
तलाशते हैं कुछ कॉलेज के दोस्त और सखियां, आजकल तो सोशल मीडिया बहुत सहायता कर देता है ।कुछ सेकेंड में ही सारी जानकारी उपलब्ध करा देता है।
कुछ नया लिखें ,कुछ चित्रकारी करें इस समय का भरपूर प्रयोग करें।
परिवार के सदस्य जो जीवन की दौड़ में साथ बैठ नहीं पाते थे ,उनके साथ बेहतरीन समय बिताएं। नकारात्मकता को छोड़ ,नई ऊर्जा ,नई कल्पना की उड़ान भरें।
मैंने तो इस समय मैं अपने कॉलेज और यूनिवर्सिटी के पुराने दोस्तों को ढूंढ लिया और अक्सर फोन पर बतियाते हैं!! 
सच में यही सुकून है यही खुशी है।
चलिए ,इस कठिन समय में कुछ सकारात्मक कार्य कर खुद भी खुश रहें औरों को भी खुश रखे।
 

इनपुट सोर्स: रेखा मित्तल