संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी आज , श्रीगणेश जी के दर्शन-पूजन एवं व्रत से होंगे सभी मनोकामना पूर्ण

प्रख्यात ज्योतिषविद्‌ श्री विमल जैन जी ने बताया कि कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार, 6 जून को अर्द्धरात्रि के पश्चात्‌ 12 बजकर 51 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन बुधवार, 7 जून को रात्रि 9 बजकर 51 मिनट तक रहेगी....

संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी  आज , श्रीगणेश जी के दर्शन-पूजन एवं व्रत से होंगे सभी मनोकामना पूर्ण

फीचर्स डेस्क। सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अनन्त है। गौरीपुत्र श्रीगणेशजी की आराधना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है, साथ ही जीवन के समस्त संकटों का निवारण भी होता है। समस्त शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम मंगलमूर्ति श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। चान्द्रमास के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश जी को समर्पित है। प्रख्यात ज्योतिषविद्‌ श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि को संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत तथा शुक्लपक्ष के मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी तिथि को वरदू विनायक श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। प्रख्यात ज्योतिषविद्‌ श्री विमल जैन जी ने बताया कि कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार, 6 जून को अर्द्धरात्रि के पश्चात्‌ 12 बजकर 51 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन बुधवार, 7 जून को रात्रि 9 बजकर 51 मिनट तक रहेगी।

जिसके फलस्वरूप संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत बुधवार, 7 जून को रखा जाएगा। चन्द्रोदय रात्रि 10 बजकर 22 मिनट पर होगा। बुधवार के दिन संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत होने से पूजा और भी फलदायी होगी। श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना रात्रि में चन्द्र 'उदय होने के पश्चात्‌ चन्द्रमा को अर्घ्य देकर किया जाएगा। पूजा का विधान--ज्योतिर्विद्‌ श्री विमल जैन ने बताया कि संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रात: काल ब्रह्मुूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।

तत्पश्चातू अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा- अर्चना करने के उपरान्त दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुन: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा घोडशोपचार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।  श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, इसलिए  की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए।

व्रत के दिन ब्राह्मण को यथासामर्थ्य दान 'दक्षिणा देनी चाहिए। ऐसे होगी मनोरथ की पूर्ति श्रीगणेशजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश, श्रीगणेश, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना विशेष लाभकारी रहता है। ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रात:काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश

होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो पूर्ति के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। ज्योतिषविद्‌ श्री विमल जैन जी ने बताया कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहजनित दोष हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। वर्तमान समय में जिन्हें अपने जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन श्रीगणेश जी का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष, विद्यार्थियों एवं अन्य जनों के लिए समानरूप से

'फलदायी है। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली एवं सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है।

इनपुट सोर्स : विमल जैन, ज्योतिष और वास्तु एक्सपर्ट, वाराणसी सिटी।