प्रेम दिवस...

प्रेम दिवस...

फीचर्स डेस्क। सरसों के फूल अब बीज का रूप ले रहे थे। देख देख दुलारी अघा रही थी। हे भोला बाबा! इस साल बढ़िया सरसो हो जाए। साल भर घर का तेल खाएंगे। नन्हकू को भी जीभर के मालिश करेंगे। पिछले साल जाड़ा में कितना पानी पड़ा था।बीज भर भी सरसो नही बचा। कुछ बेचा भी जाएगा ,बंधकी खेत छूट जाएगा। सबसे बढ़िया खेत बंधक लगाना पड़ा। मटर की छिमियाँ भी धीरे धीरे भर रही थी।दिन भर निकल कर खेत देखना पड़ता है। आते जाते जिसके हाथ लगे निकाल लेते है। मना करो तो उल्टे लड़ने लगेंगे।

दुलारी माथा पर सरकते आँचल खींच कर वहीँ धूप में नारियल तेल पिघलाने बैठ गयी। राजकिशोर नल चलाकर पानी भर रहा था। बथुआ साग में लहसुन मिर्च मिलाकर गरम गरम उसना चावल का भात और मूली देकर  अपना खाना भी लेकर बैठ गयी।

" ई साग भात के आगे तो छप्पन प्रकार भी फेल है,है न दुलारी!" राजकिशोर ने कहा।

पीतल के लोटे से पानी देते दुलारी ने हाँ में गर्दन हिलाया।

दुलारी! फगुआ बाद सब निकल रहे हैं बाहर। अब सब कल कारखाना खुल गया है। चलोगी।"

दुलारी सोच में पड़ गयी। पहले उसे लगता था जो बाहर कमाने जाता है बहुत पैसा कमाकर लाता है। महीना दो महीने ये लोग गांव में रहते।खूब पान खाते, हीरो बनकर निकलते। इनकी औरतें सुनार के पास जाकर कभी पायल बनवाती ,कभी नया बाली पहनती।ये लोग बूढ़े सास ससुर के चलते नही जाते।

थोड़ी सी जमीन थी,खाने भर हो जाता था,पर शहर वालो के जैसे कहाँ रह पाते। उसी के गांव की झुनकी ,जब से आदमी बाहर गया ,हाथ मे दिन रात फोन लिए घूमती है।

बहुत मना कर राजकिशोर को भी उसने झुनकी के पति साथ लगाया। सूरत में कहीं कपड़ा मिल में काम था।

छ महीने बाद लौटा तो गले के पास की एक एक हड्डी बाहर निकल गयी थी। खाना कितना कम खाने लगा था।यहां की हरी साग सब्जियों को देख आंख से पानी बहने लगा।आंगन में बंधी गाय का दूध रोटी के साथ मसल कर खाया तो कहने लगा " ई अमृत वहाँ कहां।

इस बार दुलारी ने भी पायल बनवाया। राजस्थानी बांधनी की जरी लगी सारी पहन खूब मटक रही थी। छुट्टी खत्म हुई तो राजकिशोर चला गया। दुलारी ने सोचा इस बार तो पक्का झुमका बनवाऊंगी।

 खेत का काम तो भोजू को बटाई पर दे दिया। खाने बैठी तो राजकिशोर की याद आ गयी।कैसे कहा उसने ये सब वहाँ नसीब कहां।

जाने कैसा जगह है साग सब्जी सोना चांदी के भाव मिलता है । दूध दही पर भी आफत। यहाँ तो खेत मे ही निकल आता सब।देशी गाय सेर भर दूध देती है लेकिन मीठा इतना की चीनी भी न मिलाओ।

जाते समय जितना घी था सब  दे दी। कुछ नही तो इसी से भात रोटी खा लेना। मना किया राजकिशोर ने।

एक कमरे से आठ दस लोग रहते है कितने दिन चलेगा घी।छुपा के थोड़े कोई खाता है। फिर भी दे दी।

जाते समय दुलारी को भी एक फोन खरीद कर दे गया।हाल चाल बताता रहता।

इस बार आने में साल लग गया। मालिक का काम बढ़ गया है। ज्यादा काम करो तो ऊपरी आमदनी भी। फोन पर थोड़ा ही बात करता।

आया तो वही गाल धंसे,आंख बाहर ,उंगलियों में घट्टे पड़े थे।बालो को कंधे तक बढाकर बार बार उंगलिया फिराता। दुलारी ने झुमके भी बनवा लिए। एक कोठरी ढलाई करा ली।अब छत पर बैठ कर वह भी सड़क पर आते जाते गाड़ी देखेगी।

एक धूप का चश्मा उसके लिए भी लाया था।

"चलेगी दुलारी तू भी,वहां औरते भी काम करती है।"राजकिशोर ने पूछा।

हाँ हां हम भी जाएंगे।झट अपनी तैयारी भी कर ली। बूढ़े सास ससुर पहले तैयार नही थे।पर बेटे ने खाने का कष्ट बताया।

यहाँ आकर अब नया कमरा लेना पड़ा। खाने का आराम हुआ पर खर्च बहुत बढ़ गया। औरत के आने पर अनेक इंतजाम करने पड़ते है। कपड़ो को रँगाई से पहले बांधने का काम दुलारी को भी मिला। दोनो पूरे दिन काम करते रहते। राजकिशोर बंधे कपड़ो को खौलते पानी मे डालता। उलट पलट कर निकालता। उसके गांव के बहुत लोग इधर थे।

कुछ दिनों से बीमारी की खबर आने लगी। कल कारखाने बन्द होने लगे। कच्चा माल कम पड़ने लगा।मालिक ने पैसे देकर सबको घर जाने कहा। ट्रेनें बन्द हो गयी। जैसे तैसे ट्रकों में लटक कर सब आये।

इधर भी बीमारी का हल्ला था।एक दूसरे से मिलना जुलना बन्द ।घर से बाहर निकलना बंद। गांव में पुलिस घूमती। दो से तीन महीने बीत गए। इस बार बारिश खूब अच्छी हुई। राजकिशोर ने अपनी खेती की तरफ ध्यान दिया। आदत छूट चुकी थी पर भुला नही था। खूब बढ़िया धान हुआ।

अगली बार सब्जी के साथ गेंहू भी। बीमारी फिर एक बार बढ़ने लगी। मालिक को फोन करता तो यही जवाब आता काम नही है।

इधर अपने हाथ लगने से खेत लहलहा गए। गाय ने भी बछिया को जन्म दिया। दुलारी भी नन्हकू को पाकर निहाल। अब तो जाने का मन ही नही होता। " इधर ही कोई छोटा मोटा काम करते है जी। अपने घर मे रहेंगे तो घर का खाएंगे और राजा बनकर रहेंगे।"दुलारी ने कहा।

सही कह रही हो दुलारी।हमको भी जाने का मन नही है।

राजकिशोर ने पीले गेंदा के फूल दुलारी के हाथ रख दिया।

ये क्या है?"

हम इसकी खेती करेंगे।

यह भी अच्छी आमदनी देता है।"

राज किशोर ने कहा

हां दुलारी के गाल भी फूल जैसे खिल उठे।

इनपुट सोर्स : भारती सिंह, वरिष्ठ लेखिका, घाना पश्चिमी अफ्रीका।