आखिरी ख़त...

आखिरी ख़त...

फीचर्स डेस्क। अस्पताल के आगे बहुत चहल-पहल थी।हर घण्टे कभी एम्बुलेंस, कभी कोई गाड़ी तेजी के साथ अस्पताल के सामने रूकती और अस्पताल शोर से भर जाता।

"नर्स, डॉक्टर मेरी दादी की तबीयत बहुत खराब है,प्लीज़ उन्हें बचा लीजिये।"

कोरोना की वजह से हर अस्पताल का यही हाल था।जिंदगी कभी ऐसा रूप भी दिखाएगी कभी सोचा न था।मनोज और पुनीत वही अस्पताल के बाहर बने पार्क में सो रहे थे।डॉक्टर,नर्स और वार्ड बॉय की ड्यूटी बदल रही थी। तभी सामने से मुन्नी नाश्ता लेकर आती दिखी।

"माँ!कैसी है?"

" कल रात तबीयत काफी खराब हो गई थी,रात में ही दवा का इंतजाम करना पड़ा था।एक मिनट रुको…लगता है ड्यूटी बदल रही।तेरे पास कागज-पेन होगा।"

"होना तो चाहिए मैं पर्स में हमेशा रखती हूँ।"

 मुन्नी ने पर्स को टटोला,मनोज ने जल्दी-जल्दी कुछ लिखा और पी पी किट पहनते हुए वार्ड बॉय के पास पहुँचा।

 "भैया! मेरी मदद कर दीजिए,मेरी माँ तीसरी मंजिल पर वार्ड नंबर पाँच में भर्ती है। उन्हें ये चिट्ठी दे दीजिएगा। शकुंतला नाम है उनका शकुंतला देवी उम्र लगभग पचपन साल।"

 मनोज ने चिट्ठी के साथ सौ रुपए का एक नोट भी वार्ड बॉय की कमीज की ऊपरी जेब मे सरका दिया।

 "बहुत काम है हमें, हम कोई डाकिया थोड़ी हैं।"

 "भैया प्लीज़ आपका बहुत उपकार होगा।"

तब तक पुनीत भी चला आया था। उसने सौ का नोट वार्ड बॉय की मुट्ठी में पकड़ा दिया। वार्ड बॉय अस्पताल के अंदर घुस गया और भीड़ में खो गया। वार्ड बॉय ईमानदार निकला आखिर एक खत को पहुँचाने के लिए दो सौ रुपये मिले थे। आठ-दस मरीज रोज ऐसे मिल जाये तो मजा आ जाये। वह मन ही मन सोच रहा था। वह शकुंतला देवी को ढूंढते-ढूंढते वार्ड नम्बर पाँच तक पहुँच गया पर वह तो वहाँ थी ही नहीं कहाँ गई वो…वार्ड बॉय ने सारे वार्ड खंखाल डाले। तभी सामने से मोहन आता हुआ नजर आया।

'मोहन! तुम्हारी ड्यूटी तो वार्ड नम्बर पाँच में लगी थी न…तू अभी यही है।"

 "हाँ वही है,बस घर जा ही रहा था,क्या हुआ?"

 " तेरे वार्ड में कोई शकुंतला देवी नाम की मरीज थी? उनके घर वालों ने ये चिट्ठी दी है, उन्हें पहुँचाने के लिए…कहीं और शिफ्ट कर दिया क्या?"

"अरे यार मुझे भी शकुंतला देवी ने कल रात चिट्ठी दी थी।  कल रात उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी। कहाँ है उनके बच्चे?"

 "वह हैं कहाँ?"

 "शकुंतला देवी आज थोड़ी देर पहले ही इस दुनिया से कूचकर गई।अभी उन की बॉडी पीछे वाले गेट पर पहुँचाकर आ रहा हूँ,पता नहीं ये कोरोना कितनों की जान लेगा।"

वार्ड बॉय के माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहा गई,

"जरा अपनी चिट्ठी तो दिखा?"

"मनोज,पुनीत,मुन्नी मैं ठीक हूँ, तुम लोग मेरी चिंता मत करना।जल्दी ही घर साथ चलते हैं।तुम्हारी माँ…"

वार्ड बॉय ने काँपते हाथों से वो ख़त भी खोला जिस को पहुँचाने के लिए उसने दो सौ रुपये मिले थे।

"माँ आप चिंता न करो हम नीचे ही हैं। जल्दी से ठीक होकर  आ जाओ।फिर हम सब साथ घर चलते हैं। तुम्हारे मनोज,पुनीत और मुन्नी।"

 "साथ चलते हैं?"

वार्ड बॉय सोच रहा था।

इनपुट सोर्स : डॉ. रंजना जायसवाल, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश।