गुलाबों का एहसास

गुलाबों का एहसास

फीचर्स डेस्क। मैं बगीचे में टहलते हुए गुलाबों को निहार रही थी। फरवरी का मौसम और गुलाबों की बहार!! यह गुलाब के पौधे मेरे लिए केवल पौधे ही नहीं किसी खास का खूबसूरत एहसास है!!!!!

"श्रेया दीदी",! कहां हो? कब से आवाज लगा रही हूं?"पता नहीं कहां खो जाती हो तुम"

निम्मी की आवाज से में अतीत से लौटी। शायद मुझे समय का पता ही नहीं चला शाम के 5:00 बजने वाले थे और निम्मी काम करने आ गई थी। मैं और सुहास दोनों एक दूसरे के साथ खुश थे । सुहास को गुलाब के फूल बहुत पसंद थे। उसने पूरे आंगन में गुलाब के अनेक पौधे लगा दिए।

" इतने सारे गुलाब!!, क्या गुलाब की दुकान लगानी है?"मैंने अचंभित होते हुए पूछा।

सुहास शरारत से मेरी आंखों में झांकते हुए बोले,"मेरी श्रेया के लिए कभी गुलाब कम नहीं होने चाहिए, रोज तुम्हारे लिए एक नया गुलाब!!"

मैं शरमा गई ,इतना प्यार करने वाला पति और क्या चाहिए जिंदगी में!! सुहास एक जिंदादिल इंसान थे ।खुद भी खुश रहते थे और अपने आसपास के वातावरण को खुशनुमा बना कर रखते थे। शायद आर्मी में होने की वजह!! क्योंकि उन्हें नहीं पता होता ,कौन सा दिन उनका आखिरी हो और कब उनकी तस्वीर अखबार में आ जाए।

याद है मुझे पिछले साल की वह मनहूस सुबह। उस सुबह ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया।

गलवान घाटी में लड़ाई के दौरान मैंने अपने सुहास को खो दिया। मरणोपरांत सुहास को वीरता के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। जब मैं यह सम्मान ले रही थी ,तो मेरे हाथ कांप रहे थे ।गर्व हो रहा था सुहास के साहस पर, पर साथ ही हमेशा के लिए खो देने का दर्द भी। समझ ही नहीं पा रही थी इतनी छोटी उम्र में सुहास के साथ यह क्या हुआ?

समय के साथ मैं भी जीवन में आगे बढ़ गई। परंतु सुहास की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता। शायद इन गुलाबों में उसके होने का एहसास हमेशा मेरे साथ है।

इनपुट सोर्स : रेखा मित्तल, चंडीगढ़ सिटी।