देश पढे़ देश बढ़े

कभी द्रोण को गुरु मानकर एकलव्य ने दे दिया था अंगूठा कभी पेड़ की छाँव में बुद्ध को मिल गया था ज्ञान । युग बदले नियम बदले बदली ज्ञान की परिभाषा और इस बदलते युग ने गुरु- शिष्य को मित्र बना दिया...

देश पढे़ देश बढ़े

बदल गया है जमाना
बदल गए सारे आयाम
बदल गए वो पैमाने
जो थे कभी गुरु - शिष्य का आधार।
कभी द्रोण को गुरु मानकर
एकलव्य ने दे दिया था अंगूठा
कभी पेड़ की छाँव में
बुद्ध को मिल गया था ज्ञान ।
युग बदले नियम बदले
बदली ज्ञान की परिभाषा
और इस बदलते युग ने
गुरु- शिष्य को मित्र बना दिया ।
अब ना कोई डर है
एकलव्य का अंगूठा छिन जाने का
अब ना कोई भय है
करण को अर्जुन से नीचा आंकने का 
इस बदलते युग ने सबको शिक्षा का
समान अधिकार दिलवा दिया
एक चाय बेचने वाले को भी
देश का प्रधानमंत्री बना दिया ।
शिक्षा केवल बेटों का ही नहीं
अब बेटियाँ भी इसके दम पर उड़ान भरने लगी 
अछूत जातियाँ भी अब शिक्षा के मंदिर में
अपनी आरती करने लगी ।
पहले  जो शिक्षा केवल पाठशाला में दी जाती थी
इस कोरोना काल ने उसे घर- घर पहुंचा दिया
देश - पढे़ , देश - बढ़े इस नारें को
भारतवासियों के आँखों का स्वपन बना दिया ।।

इनपुट सोर्स: पूनम चौधरी