Brand Talk : नीम वाला के नाम से फेमस मार्गो साबुन की पढ़ें क्या है 100 साल पुरानी कहानी…  

Brand Talk : नीम वाला के नाम से फेमस मार्गो साबुन की पढ़ें क्या है 100 साल पुरानी कहानी…  

फीचर्स डेस्क। 'स्वदेशी अपनाओ', 'वोकल फॉर लोकल', 'मेक इन इंडिया'...  ये टर्म या यूं कहें कि नारे मौजूदा वक्त में आपने कई बार सुने होंगे। देश में बने सामान और उन्हें बनाने वालों को सम्मान, तवज्जो और बढ़ावा मिलना ही चाहिए। स्वदेशी की लहर भारत में आजकल से नहीं चल रही है, बल्कि यह तो वर्षों, दशकों पुरानी है। स्वदेशी की एक पुरजोर लहर देश में ब्रिटिश शासनकाल में 'बंग-भंग' यानी 1905 के बंगाल विभाजन के बाद भी देखने को मिली थी, जिसने कई कंपनियों और ब्रांड्स को जन्म दिया।  कुछ ब्रांड्स ऐसे भी हुए, जो आज भी अस्तित्व में हैं। जैसे कि कि मार्गो साबुन (Margo Soap)।  मार्गो साबुन का मुख्य इन्ग्रीडिएंट नीम है। इस साबुन को क्रिएट करने का श्रेय कलकत्ता केमिकल कंपनी ( Calcutta Chemical Company) को जाता है। इस कंपनी के फाउंडर्स में से एक थे खगेन्द्र चंद्र दास उर्फ केसी दास (K.  C.  Das)।  खून में थी क्रांति केसी दास का जन्म एक नामी बैद्य परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि केसी दास का सरनेम दासगुप्ता था, जो उन्हें बैद्य समुदाय से जोड़ता था। लेकिन उनके पिता जाति व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे।  इसलिए उन्होंने अपने सरनेम से गुप्ता हटा दिया। केसी दास के पिता राय बहादुर तारक चंद्र दास एक जज थे और मां मोहिनी देवी एक गांधीवादी और एक क्रांतिकारी थीं।  वह महिला आत्म रक्षा समिति की पूर्व प्रेसिडेंट भी रह चुकी थीं।  केसी दास पर पिता से ज्यादा उनकी मां का प्रभाव था। यही वजह थी कि उनके अंदर भी एक क्रांतिकारी भावना हमेशा से थी।  कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद केसी दास शिबपुर कॉलेज में लेक्चरर बन गए। आज यह कॉलेज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी, शिबपुर के नाम से जाना जाता है। उस वक्त बंगाल में ब्रिटिश शासन के विरोध में क्रांतिकारी गतिविधियां काफी बढ़ चुकी थीं। अंग्रेजी सरकार ने बंगाल विभाजन कर दिया था। बंगाल में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रोष चरम पर था। इस बीच दास भी कई अन्य युवाओं के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए। दास के जज पिता, ब्रिटिश इंडियन गवर्मेंट के कुछ अधिकारियों के करीबी थे।  उन्हें पता चला कि अगर उन्होंने कुछ नहीं किया तो उनके बेटे को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। लिहाजा उन्होंने केसी दास को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने की सोची। उन्होंने दास को लंदन में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश छोड़कर जाने को कहा। दास, भारत पर राज कर रहे ब्रिटेन नहीं जाना चाहते थे लेकिन पिता के आदेश को मना भी नहीं कर सकते थे।

ब्रिटेन के बजाय चले गए अमेरिका केसी दास ने बीच का रास्ता निकाला।  वह इंडियन सोसायटी फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंटिफिक इंडस्ट्री से मिली स्कॉलरशिप पर अमेरिका चले गए और वहां यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एडमिशन ले लिया।  1907 में इस यूनिवर्सिटी ने दास और उनके एक अन्य भारतीय क्लासमेट सुरेन्द्र मोहन बोस को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी शिफ्ट कर दिया। केसी दास ने अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से 1910 में केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन पूरी की थी। लेकिन इस दौरान भी वह भारत की आजादी की लड़ाई से दूर नहीं हुए।  वह अमेरिका में भी आजादी की गतिविधियों से जुड़े रहे और इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के कैलिफोर्निया चैप्टर का गठन किया। साथ ही लाला हर दयाल के साथ मिलकर काम करते रहे। जब केसी दास और उनके साथी बोस, भारत लौट रहे थे, तो केवल जापान का चक्कर लगाने की मंशा से दोनों जापान चले गए। इस दौरे में उन्हें नई टेक्नोलॉजी और बिजनेस में इसके स्कोप के बारे में काफी कुछ जानने-समझने को मिला।  जापान में प्राप्त ज्ञान और विशेषज्ञता ने दास की फार्मास्युटिकल्स में वेंचर शुरू करने में मदद की।

1916 में शुरू की कंपनी इसके बाद साल 1916 में केसी दास ने अपने दो साथियों बीएन मैत्रा, और आरएन सेन के साथ मिलकर कलकत्ता केमिकल कंपनी को शुरू किया। इस कंपनी की शुरुआत उस वक्त हुई, जब बंगाल में स्वदेशी आंदोलन चल रहा था।  ब्रिटिश शासनकाल के उस वक्त में ​​स्वदेशी आंदोलन के तहत ब्रिटेन में बने सामान का विरोध हो रहा था भारत में उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जा रहा था।  कलकत्ता केमिकल कंपनी की स्थापना भी उसी स्वदेशी लहर के तहत हुई थी।  मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट रहे काफी हिट कलकत्ता केमिकल कंपनी अपने टॉयलेट प्रॉडक्ट्स के कारण अत्यधिक सफल हुई। दास ने नीम के पौधे के अर्क यानी एसेंस से मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट का निर्माण किया। साल 1920 में मार्गो साबुन को लॉन्च किया गया था।  उन्होंने इनकी कीमत भी कम रखी ताकि समाज का हर वर्ग इन्हें खरीद सके।  उन्होंने अधिक समृ​द्ध आबादी के लिए लैवेंडर ड्यू नाम का टैल्कम पाउडर भी बनाया।  इसके अलावा कुछ अन्य उत्पादों का भी निर्माण किया।

बढ़ती मांग के साथ, कंपनी ने देश के सभी प्रमुख शहरों में डिस्ट्रीब्यूशन कार्यालय बनाकर विस्तार किया। वर्तमान तमिलनाडु में अतिरिक्त मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाए। कंपनी का मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट वक्त के साथ घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गए।  इतना ही नहीं भारत के साथ-साथ विदेश में भी इनकी चर्चा होने लगी।  तब कंपनी ने सिंगापुर में एक डिस्ट्रीब्यूशन चेन स्थापित करते हुए दक्षिण पूर्व एशिया में इंटरनेशनल डिस्ट्रीब्यूशन शुरू किया।  आज ज्योति लैब्स का ब्रांड है मार्गो 1960 के दशक में दास की मृत्यु के समय तक, कंपनी दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध व्यवसायों में से एक बन चुकी थी।  इस कंपनी को तब तक मुख्य रूप से केसी दास के वंशजों ने चलाया, जब तक शॉ वैलेस ने इसका अधिग्रहण नहीं कर लिया। बाद में इसे जर्मनी की कंज्यूमर गुड्स कंपनी हेनकेल को बेच दिया गया।  साल 1988 में भारतीय बाजार में मार्गो की हिस्सेदारी 8। 9% थी और यह भारत में बिकने वाले टॉप 5 सोप ब्रांड्स में से एक था।  साल 2001 तक मार्गो, Henkel-SPIC का ब्रांड था।  2003 तक, मार्गो ब्रांड की भारत में प्रीमियम-साबुन सेगमेंट में बाजार हिस्सेदारी करीब 2% थी।  

साल 2011 में ज्योति लैबोरेटरीज ने हेनकेल इंडिया में कंट्रोलिंग स्टेक खरीद लिया और इसके बाद मार्गो ब्रांड के राइट्स ज्योति लैब्स के पास चले गए।  वर्तमान में मार्गो को ज्योति लैब्स की बेच रही है।  दास पूरी जिंदगी रहे स्वदेशी के पक्षधर केसी दास, ने पूरी जिंदगी स्वदेशी में विश्वास रखा।  कहा जाता है कि वह स्वतंत्रता के बाद भी कट्टर ब्रिटिश विरोधी बने रहे।  अमेरिका से भारत लौटने के बाद भी वह खादी ही पहनते थे।  दास, बैद्य समुदाय में भी काफी लोकप्रिय रहे।  उन्होंने शिक्षा के लिए कलकत्ता आने वाले कई युवा लड़कों को छात्रवृत्ति प्रदान की।  वह उद्यमशीलता के आदर्शों के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध थे, और 'सर्विस' के विचार को नापसंद करने के लिए जाने जाते थे।  वह युवाओं को किसी की नौकरी के बजाय खुद को कुछ शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे, फिर भले ही वह व्यवसाय छोटा ही हो।  इतना ही नहीं वह वेंचर्स को सीड कैपिटल भी दे दिया करते थे और कभी पैसे वापस नहीं मांगते थे।