एक नेह भरी पाती अनुज के नाम
फीचर्स डेस्क। कैसे हो!... शैतानियाँ कुछ कम हुई कि अभी भी अनवरत रूप से सबको सताना जारी है....
वैसे तुमसे रोज़ फोन पर बात होती है... विडियो कॉल की सुविधा के चलते हमें एक दूसरे के बारे में सब मालूमात हासिल रहते है!....
किन्तु जैसा हर साल की तरह राखी के त्योहार आने के 15-20 दिन पहले से मैं फोन पर बात करना बंद कर देती हूँ!.....क्योंकि खत लिखने और पढ़ने का मज़ा जो मुझे दोगुना करना रहता है!...
माना स्मार्ट फोन का जमाना है...वीडियो कॉल के जरिये चुटकियों में हम सब एक दूसरे से रुबरू हो जाते है। पर जैसा कि तुम जानते हो कि खत लिखना मेरी बरसों पुरानी आदतों में शुमार है।
साल में एक बार मैं हमेशा राखी के साथ एक नेह भरी पाती जरूर से लिख भेजती हूँ....उस पाती को राखी के दिन वीडियो कॉल कर तुम मुझे ही पढ़कर सुनाते हो, खूब हँसते- हँसाते हो!...फिर हँसते- हँसते न जाने कब हम दोनों की आँखे नम हो जाती हैं... फिर बड़ी ही चतुराई से हम दोनों अपने अहसासों को दबा एक-दूसरे की टाँग खिंचाई में लग जाते है...शुरू हो जाती है हम दोनों की मीठी नोंक- झोंक!....
तुम्हें भी तो मेरी स्नेह से लबरेज़, आत्मीयता भरे शब्दों से सजी नेह पाती का बेसब्री से इंतजार रहता है। मेरा मनोभावों को कलम के सहारे कागज़ पर उतरना और तुम्हारा उसे पढ़- पढ़कर चहकना, जोर- जोर से पढ़ सबको सुनना ...तुम्हारे मन को भी खूब भाता है।
इस बार #कोरोना_ महामारी के चलते सोचा कि राखी और खत तुमको नही भेजती!...
फिर सोचा जब सब काम हो रहे है तो फिर ये क्यों नही!...covid19 जिंदगी को रोकना चाहता है!..पर खुद नही थम रहा तो हम भी क्यों थमे क्यों रुके... ये हार नही मान रहा तो हम भी क्यों हार माने... बस जरूरत है तो थोड़ी सी सावधानी की, समझदारी की!...
और मुझे माँ की एक बात भी याद आ गई...
माँ हमेशा मुझसे यही कहती है कि मेरी चिट्ठी मिलने पर उसे तुम्हारे अलावा कोई नही खोल सकता।तुम उसे सबसे पहले कई- कई बार पढ़ते हो..... पढ़कर हृदय खोल मुस्कुराते हो!... मुझे भी एक बार का वाक्या याद है..
किसी कारणवश एक बार राखी पर तुम्हें सिर्फ राखी भेजी नेह पाती नही लिख भेजी!..
तुम बेचैन हो गये थे राखी के साथ पत्र न पाकर.... तुमने तुरंत फोन लगाया और मुझसे कहा था....
दिदु!... आपकी नेह पाती पढ़कर दिल की बगिया में प्यार, अपनत्व,ममत्व, आदि अहसासों के पुष्प हमेशा तरोताजा रहते है....
तुम्हारा खत पूरे घर में हर्षोल्लास बिखेर देता है.. त्योहार का मज़ा दुगुना हो जाता है...
तुम अपनी पारिवारिक व्यस्तता के चलते हर साल मायके नही आ पाती हो ....तुम्हारा खत ही तुम्हारा प्रतिनिधित्व करता है.... तुम्हारी कमी को पूरा करता है... उस दिन मैंने वादा किया था चाहे कुछ भी हो जाये मेरा खत लिखना अनवरत जारी रहेगा।
पर इस साल covid 19 का डर भी मन को सता रहा था....
किन्तु फोकस_साहित्य के इस सुंदर आयोजन ने हृदय के भावों को फिर झकझोर दिया... मैं धन्यवाद करती हूँ #फोकस_साहित्य का..... इसने मुझे एहसास करा दिया कि ...मैं क्यों हारूँ?.... मैं क्यों साल में एक बार आने वाले भाई-बहन के आत्मीयता भरे त्योहार को रूखा- सूखा, उदासी से बीत जाने दूँ!... डर के आगे ही जीत है!.... आज फोकस_साहित्य ने यह सुनहरा अवसर दिया है तो चलो इसके माध्यम से ही सही हमारा खत लिखने और पढ़ने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी रहेगा...जब तक हम-तुम और ये दुनिया हैं!....
मम्मी- पापा को सादर चरण- स्पर्श कहना... काव्या और तुम्हें ढ़ेर सारा स्नेहाशीष....
ढ़ेर सारा प्यार....
--सदा खुश रहो!...
इनपुट सोर्स : सारिका विजयवर्गीय "वीणा", नागपुर ( महाराष्ट्र)
