Biography : कौन हैं डॉ शिप्रा मिश्रा ? क्यों लोग इनको कहते हैं "चम्पारण की काव्य वीणा"

छात्र- छात्राओं के बीच इनकी छवि अत्यंत भावुक एवं दयालु शिक्षिका के रूप में है। इनके क्षेत्र के लोग इन्हें "चम्पारण की काव्य वीणा" के रूप में सम्मान देते हैं...

Biography : कौन हैं डॉ शिप्रा मिश्रा ? क्यों लोग इनको कहते हैं "चम्पारण की काव्य वीणा"

फीचर्स डेस्क। साहित्यिक रचनाधर्मिता को समर्पित एक चिर परिचित नाम डॉ शिप्रा मिश्रा का जन्म 26 जून 1969 को बिहार के प०चम्पारण जिले के बेतिया शहर में हुआ था। हिन्दी साहित्य जगत के लब्ध प्रतिष्ठित भाषाविद डॉ बलराम मिश्र एवं डॉ सुशीला ओझा की सुपुत्री डॉ शिप्रा की प्रारम्भिक शिक्षा इनकी दादी धार्मिक विचारों वाली राजधारी देवी की देखरेख में घर पर ही शुरू हुई। डॉ शिप्रा मिश्रा कौन हैं यह तो हमने बता ही दिया। लेकिन इसके साथ ही डॉ शिप्रा मिश्रा के बारे में अब भी कई ऐसी बातें हैं जो हमे जानना चाहिए। जैसे डॉ शिप्रा मिश्रा की बायोग्राफी (Biography of Dr Shipra Mishra), डॉ शिप्रा मिश्रा का करियर(Career of Dr Shipra Mishra), डॉ शिप्रा मिश्रा की लाइफ स्टोरी(Life Story of Dr Shipra Mishra), डॉ शिप्रा मिश्रा का शिक्षा (Dr Shipra Mishra education)  आदि। तो चलिए जानते हैं शिप्रा मिश्रा के बारे में...

डॉ शिप्रा मिश्रा की बायोग्राफी Biography of Dr Shipra Mishra

डॉ शिप्रा मिश्रा का जन्म 26 जून 1969 को बिहार के प०चम्पारण जिले के बेतिया शहर में हुआ था। डॉ शिप्रा के पिता का नाम डॉ बलराम मिश्र और माता का नाम डॉ सुशीला ओझा है। शिप्रा मिश्रा चार भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं। 

डॉ शिप्रा मिश्रा का शिक्षा : Dr Shipra Mishra education

डॉ शिप्रा मिश्रा का प्रारम्भिक शिक्षा बेतिया शहर के सुप्रसिद्ध विद्यालय आलोक भारती शिक्षण संस्थान से और आगे की पढ़ाई संत तरेसा उच्च विद्यालय से प्राप्त की। सन् 1985 में मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के बाद इन्होंने वहाँ के ऐतिहासिक महारानी जानकी कुँवर महाविद्यालय में दाखिला लिया। शुरुआत में ये विज्ञान की छात्रा रहीं। सन् 1987 में इंटरमीडिएट, 1990-91 में स्नातक हिन्दी प्रतिष्ठा एवं 1993-94 में स्नातकोत्तर हिन्दी की परीक्षाएंँ पास कीं। डॉ शिप्रा बिहार विश्वविद्यालय के डॉ सतीश राय 'अनजान' के निर्देशन में 1999 में पीएचडी भी किया है।

डॉ शिप्रा मिश्रा का करियर : Career of Dr Shipra Mishra

डॉ शिप्रा मिश्रा अपने शिक्षा के कुछ साल बाद 'चिल्ड्रेन डिलाइट' स्कूल जॉइन किया जहां सारें बच्चों की प्रिय रहीं। इसके बाद 2003 में इन्होंने बेतिया शहर के आलोक भारती शिक्षण संस्थान में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। यह स्कूल और यहाँ के छात्र- छात्राओं को शिक्षा और संस्कार देना इनके जीवन का उद्देश्य बन गया।

डॉ शिप्रा मिश्रा की लाइफ स्टोरी : Life Story of Dr Shipra Mishra

डॉ शिप्रा मिश्रा विवाह 28 फरवरी 1993 में छपरा निवासी उज्ज्वल कुमार पांडे से संपन्न हुआ है। जो जीकेवीके बैंगलोर से हॉर्टिकल्चर में शिक्षा प्राप्त की थी और बैंगलोर कॉफी बोर्ड में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत थे। डॉ शिप्रा मिश्रा की एक बेटी यवा उर्वशी और एक बेटा प्रवीश प्रांजल है।

डॉ शिप्रा का साहित्यिक सफर Dr. shipra literary journey

डॉ शिप्रा पति के साथ बैंगलोर प्रवास में भी रहीं। अध्ययन और अध्यापन में गहरी रुचि रखने वाली डॉ शिप्रा वहाँ भी अपने पति के पूर्ण समर्थन से अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत की और साहित्यिक गतिविधियों में शामिल होने लगीं। धीरे-धीरे इनकी साहित्य धर्मिता अपना रंग लाने लगी। 1996-97 में इनकी कविता 'परिधि' उस समय के राष्ट्रीय स्तर की हिन्दी पत्रिका 'कादम्बिनी' में प्रकाशित हो चुकी थी और देश भर से इसकी बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएँ भी आने लगीं। डॉ शिप्रा का मनोबल बढ़ा और जो कविताएँ, कहानियाँ ये छठी- सातवीं कक्षा से लिखती आ रहीं थी उन्हें अब एक बड़ा आकाश मिल गया था। शिप्रा मिश्रा का पूरा परिवार ही आजीवन साहित्य को समर्पित है। इनकी छोटी बहन शुभ्रा मिश्रा और भाई कुमार अनुपम और कुमार अनुभव एक अच्छे रचनाकार हैं। वही तकनीक हेल्प इनकी बहू करती हैं जो इनके लिए बेहतर साबित होगा।

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सशक्त नारी के रूप : as a strong woman

लज्जाशील और अत्यंत संकोची स्वभाव की डॉ शिप्रा बचपन से स्कूल, कॉलेज के दिनों तक, यहाँ तक कि ससुराल में कई वर्ष गुजारने के बाद भी एक सशक्त नारी के स्वाभाविक गुणों से रुबरु नहीं हो सकीं थीं। तब तक उन्हें सिर्फ इतना ही मालूम था कि महिलाओं के लिए पुरुषों के बिना सहयोग के जिन्दगी का एक पल गुजार पाना भी असंभव है। कई मौके ऐसे आए और गए जिस में वे अपने आप को निर्बल और असहाय समझतीं रहीं। इसी अंतर्द्वन्द में एक दिन पराधीन नारी का पिंजरा टूट गया और ये अपने पंखों की ताकत पर उड़ान भरना सीख गईं।

डॉ शिप्रा मिश्रा की प्रकाशित रचनाएँ : Published Works of Dr. Shipra Mishra

डॉ शिप्रा मिश्रा को विरासत में मिला साहित्य और स्वयं की रचनाशीलता दोनों कदम से कदम मिलाकर चलने लगे। इनकी रचनाधर्मिता और सशक्त होकर पटरी पर आने लगी। पहली रचना 'कादम्बिनी' में प्रकाशित हुई थीथी जिस पर पाठकों की प्रतिक्रियाओं ने न सिर्फ इनके भीतर के रचनाकार के कद को ऊँचा किया बल्कि साहित्यिक समाज में पूर्ण व्यापकता भी दी। उसके बाद तो इन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कादम्बिनी, विचार मीमांसा, बूँद बूँद सागर, लोक चिन्तन, चम्पारण चंद्रिका इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं से जो साहित्यिक यात्रा शुरू हुई थी वह अनवरत चलती हुई अब तक 100 से भी अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में 500 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं इनकी प्रथम प्रकाशित कहानी 'बाबुल की देहरी' ने साहित्य जगत में इनकी लेखकीय क्षमता का लोहा मनवा दिया। एक प्रतिष्ठित स्थापित रचनाकार के रूप में इन्होंने हर विषमताओं पर अपनी लेखनी उठाई है। अनेक मंचों से उद्घोषिका की भूमिका में इन्होंने जन मानस पर अमिट छाप छोड़ी है। विभिन्न मंचों से इनकी प्रभावशाली कविताएँ सुनी जाती रहीं हैं। अपने छात्र- छात्राओं के बीच इनकी छवि अत्यंत भावुक एवं दयालु शिक्षिका के रूप में है। इनके क्षेत्र के लोग इन्हें "चम्पारण की काव्य वीणा" के रूप में सम्मान देते हैं। समाज के महत्वपूर्ण दायित्वों को भी इन्होंने बखूबी निभाया है। इनकी बहुत सारी रचनाओं को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई।

डॉ मिश्रा को 50 से अधिक सम्मान : More than 50 honors to Dr. Mishra

डॉ शिप्रा मिश्रा को साहित्यिक एवं सामाजिक क्षेत्र की उपलब्धियों के लिए लगभग 50 से अधिक सम्मान अभी तक मिल चुके हैं जिनमें अपने जिले में नारी शक्ति सम्मान, महादेवी वर्मा शक्ति सम्मान, महिला रत्न पुरस्कार, एमिनेन्ट फेस ऑफ चम्पारण अवार्ड, वाराही इन्द्रधनुष सम्मान, पद्मनाभ साहित्य साधक सम्मान, लोक चिन्तन विशिष्ट सेवा सम्मान,पर्यावरण संरक्षक सम्मान, साहित्य त्रिवेणी सारस्वत सम्मान इत्यादि।

डॉ शिप्रा मिश्रा भविष्य प्लान : Dr Shipra Mishra Future Plan

डॉ शिप्रा को अपने गाँव से बहुत लगाव है और भविष्य में वे गाँव, प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करना चाहती हैं। वे ऐसे छात्रों के लिए भी कुछ करना चाहतीं हैं जो शिक्षा से अब तक वंचित हैं।