Women's Day Special:महिलाओं के जीवन को किया रोशन पैथोलोजिस्ट और समाज सेविका अर्पिता गुप्ता ने

विमेंस डे के अवसर पर हम लेकर आए है ऐसी प्रतिभाशाली महिला के जीवन की कहानी जिन्हे कठिनाइयां भी न रोक पाई अपनी मंजिल को पाने के लिए। आइए जानते है उनके जीवन के बारे में उन्ही की जुबानी।

Women's Day Special:महिलाओं के जीवन को किया रोशन पैथोलोजिस्ट और समाज सेविका अर्पिता गुप्ता ने

फीचर्स डेस्क। कहते है नारी शक्ति का रूप है। नारी सम्मान की अधिकारी है । नारी ही गौरव है नारी ही इस समाज का अभिमान है। ऐसी ही सशक्त नारी है डॉक्टर अर्पिता गुप्ता जो हर एक नारी के लिए प्रेरणा है। जिन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के अपना एन जी ओ  खोला और हजारों महिलाओं को ,बालिकाओं को शिक्षित कर रही है वो भी निःशुल्क।जिनका जीवन का लक्ष्य बन गया औरते और बालिकाओं के व्यक्तित्व को निखार कर उनको अपने पैरों पर खड़े करना । जीवन के उतार चढ़ाव से जिसने हार न मानी सुनते है उन्ही की जुबानी उनके शानदार व्यक्तित्व की कहानी।

शॉर्ट इंट्रोडक्शन

आपका जन्म 13 अगस्त 1982 राजस्थान के बीकानेर शहर के मध्यमवर्गीय  रावत परिवार में हुआ। आप अपने परिवार की पहली बेटी थी तो आपको परिवार मे सबका प्यार मिला।आपके दादा जी रेलवे में थे और दादी अध्यापिका थी । आपके पापा डॉक्टर है और मम्मी हाउस वाइफ यानी होम मेकर है । आप शुरू से किस्मत वाली रही कि सब आपको बहुत प्यार करते थे परिवार में। आपके जीवन के बारे में जब हमने पूछा तो इन्होंने बताया कि जब मैं हुई थी तब लोगो ने बोला कि 13 नंबर शुभ नहीं होता और ऊपर से लड़की हुई है पर मेरे परिवार ने इन सब बातो पर यकीन नही किया और मेरे जन्म पर बहुत अच्छा आयोजन कर समाज मे एक मिसाल कायम करी की बेटी- बेटा सब एक सामान होते ।सब कुछ अच्छा चल रहा था लाइफ में की दो साल की जब मैं हुई तब मेरे पैरो में दर्द होने लगा और चलने में प्रॉब्लम होने लगी। जब मेरी फैमिली ने डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने बोला की इन्हे पोलियो हो गया है शायद ये चल न पाए आगे। सब उदास हो गए पर वो कहते है ना की हर मैजिक के पीछे कोई लॉजिक होना ज़रूरी नहीं  होता  है। मेरी दादी की प्राथनाओ में असर था मैं 6 महीने में वापस चलने लगी। ऐसे ही समय गुजरता रहा मैं पढ़ाई के साथ डांस और खेल दोनो में हिस्सा लेती रही। मैने टेबल टेनिस में भी स्टेट लेवल तक खेला हुआ है। पर लाइफ में सब कुछ नॉर्मल कैसे हो सकता था। जब मैं 11th क्लास में थी तब मैं स्कूटी से ट्यूशन जा रही थी और ट्रक ने मुझे टक्कर मार दी। एक्सीडेंट इतना बड़ा हुआ था की सात दिन तक मैं बेहोश रही।मेरे चेहरे की स्किन इतनी खराब हुई कि साल भर उसे ठीक होने में लगा। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही इसके साथ मैंने सिलाई कढ़ाई डांस इन सबको भी सीखा क्यूंकि मेरे पापा कहते सर्वांगीण विकास के लिए पढ़ाई के साथ सभी तरह की हस्तकला भी आनी चाहिए । 12th के बाद जब मैं पीएमटी का एग्जाम देने का निश्चय किया और तैयारी भी की तब एग्जाम के एक महीने पहले फिर मेरी तबियत खराब हुई और पता चला की पेट में ट्यूमर  है। ट्यूमर को ऑपरेशन करके निकाल तो लिया पर पता चला की वो कैंसर का रूप ले चुकी थी। अब इसका इलाज चला पर कीमोथेरेपी का जो ट्रीटमेंट चला वो वाकई काफी पेनफुल रहा। पर ईश्वर कृपा से मैं आप सबके सामने हूँ । आगे की पढ़ाई के लिए मुझे मेरे नाना नानी के पास जयपुर भेज दिया, घर से बाहर मेट्रो सिटी मे रहकर मैंने बहुत कुछ सीखा |

एनजिओ की शुरुवात करने का कारण

डॉक्टर अर्पिता की जयपुर से  पढ़ाई पूरी होने के बाद बीकानेर मे अपना लैब शुरू किया और राजेश गुप्ता से विवाह हुआ| कुछ समय अंतराल के बाद ईश्वर की कृपा से उनके एक प्यारी बेटी और उसके कुछ साल बाद बेटा हुआ | जिसके बाद  उनके जीवन में अब  कुछ स्थिरता आई । लेकिन जब डॉक्टर अर्पिता छोटी बच्चियों को सड़क से कचरा उठाते हुए देखती तो इनको बहुत दर्द होता था। लैब के द्वारा गांवो व बस्तियों मे महिलाओं व बच्चियों के लिए स्वास्थ्य कैंप लगाती तो उनकी स्थिति देख दुःख होता |फिर आपने निश्चय किया कि ऐसी महिलाओं व बच्चियों के लिए कुछ करने का ।डॉक्टर अर्पिता महिलाओ और बच्चियों के लिए यूं तो 10,12 साल से काम कर रही थी पर अन्य संस्थाओं से जुड़ कर कर रही थी वहां की कुछ सीमाएं थी तो कई बार वो जो करना चाहती थी वो कर नही पा रही थी तो इसी दिशा में कुछ करने के लिए आपने 'आर एल गुप्ता बालिका सशक्तिकरण संस्थान ' की शुरुवात की।अब इस संस्थान में वो गरीब बच्चो को पढ़ाते है और कई एक्टिविटीज से भी जोड़ते है।

इसका उद्देश्य एक ही है कि उन बच्चो में आत्मविश्वास पैदा हो। अगर आपके मन में कुछ अच्छा करने की चाह है तो आपके रास्ते में कोई मुश्किल आपको रोक नहीं सकती ऐसा डॉक्टर अर्पिता का मानना है क्यूंकि इस बीच उनके छः बार फ्रैक्चर भी हुआ कभी बैक, कभी दोनों पैर, कभी हाथ पर उन्होंने हर परेशानी को चैलेंज की तरह लिया और आगे बढ़ती गयी |आप मानती है कि अगर हम समाज में,देश में बदलाव लाना चाहते है तो हम महिलाओं को ही आगे आना होगा। क्यों कि महिलाए दूरदर्शी तो है ही साथ ही उनमें परिवर्तन लाने का जज्बा भी है। जब सारा देश कोरोना से डर कर घर पर बैठा था तब डॉक्टर अर्पिता ने समाज को सशक्त बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए इसी कारण डॉ. अर्पिता गुप्ता को नेशनल चीफ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया गया। बीकानेर शहर की समाज सेविका डॉ.अर्पिता गुप्ता को ह्यूमन राइट इंटरनेशनल फेडरेशन द्वारा नेशनल चीफ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया गया| डॉ. गुप्ता को यह पद महामारी के समय पर भी महिलाओं व बच्चों को सशक्त बनाने को लगातार किए जा रहे उनके प्रयासों को देखते हुए दिया गया है| 

अपने दम पर चला रही एनजीओ

कहते है न जहां चाह है वहा राह है। लोग कहते है कि हम सबकी मदद तो करना चाहते है पर हमारे पास साधन नही है। ऐसे ही लोगो के सामने एक उदाहरण पेश किया है डॉक्टर अर्पिता गुप्ता ने। उनका एनजीओ एक प्राइवेट संस्था है। उन्होंने सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं ली है। उनकी बीकानेर शहर में खुद की लैब है और एक आर्ट क्राफ्ट की शॉप है । उससे जो भी आमदनी होती है वो उससे घर भी चलाती है और अपनी संस्था भी। क्यों कि संस्था को वो अपना घर मानती है। किसी से भी किसी प्रकार की मदद नहीं लेती है। अपनी संस्था में वो बच्चो को निःशुल्क शिक्षा देती है। जो शिक्षक बच्चो को शिक्षित करते है उनको उपहार भी देती है। बच्चियों को सदा करती है प्रोत्साहित ।

ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल फेडरेशन द्वारा अनाथ आश्रम के बच्चों  के लिए भी डॉ.अर्पिता गुप्ता जी ने अनेक कार्यक्रम किये । डॉक्टर अर्पिता जी का मानना है की इस तरह के प्रोग्राम होते रहने चाहिए ताकि बच्चो को अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिले। कई बच्चो में प्रतिभा तो होती है पर उन्हें मौका नहीं मिल पाता । कई बार पैसे का अभाव होता है तो कई बच्चो के साथ और कोई और  समस्या होती है। ऐसे ही बच्चो के टैलेंट को निखारने का काम हम अपनी संस्था के द्वारा करते है। बच्चो का हौसला बढ़ाने के लिए हम अपने संस्थान द्वारा हमेशा  बच्चों को प्रमाण पत्र, कपड़े , वाटर बॉटल,स्कूल बैग, स्टेशनरी, बिस्किट्स, मिठाई जैसी चीज भी  देते है। कोरोना काल में जब आपने ऑनलाइन बच्चो और महिलाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था की थी उसमे भी आपने कई प्रतियोगिताएं करवाई थी और उनको भी कई बच्चों को गिफ्ट्स से सम्मानित किया। ऐसा करने से बच्चे तो खुश होते ही है पर बच्चो के चेहरे पर मुस्कान देखकर अर्पिता जी ज्यादा खुश होती है।

मिले ढेरो इनाम और कई पद

अर्पिता जी के द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें ह्यूमन राइट इंटरनेशनल फेडरेशन की तरफ से पहले उन्हें  राजस्थान का स्टेट डायरेक्टर नियुक्त किया गया फिर उनके काम को देख नेशनल चीफ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया गया |अर्पिता जी ने कभी भी अवार्ड के लिए काम नही किया। वो लोगो को जागरूक करना चाहती थी इसलिए जब भी वो किसी महिला के लिए या बच्चो के लिए कुछ करती तो वो सोशल मीडिया में पोस्ट जरूर करती ।

ताकि लोग उनको देख कर कुछ प्रेरणा ले और अपने आस पास के लोगो की मदद करने के लिये आगे आए या फिर जिनको मदद की जरूरत है वो उनसे संपर्क करें । इन्ही कार्यों को देखते हुए आपको राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 90 से भी ज्यादा अवार्ड मिल चुके है और सभी अवार्ड का आपके जीवन में  और अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित करने में बहुत बड़ा योगदान है ।

आपको गणतंत्र दिवस पर कलेक्टर द्वारा सम्मानित किया गया,यूथ आइकॉन ऑफ़ इंडिया अवार्ड से नई दिल्ली में सम्मानित किया गया। वीमेन ऑफ़ द फ्यूचर अवार्ड 2018 में जयपुर में दिया गया।चंडीगढ़ मे वुमन ऑफ़ द ईयर से, ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल फेडरेशन द्वारा सुपरस्टार लीडर अवार्ड से नवाजा गया।

एमपावरएड वीमेन अवार्ड करनाल हरियाणा में दिया गया।इस महामारी के समय में आपको एंटी करप्शन फाउंडर ऑफ इंडिया की तरफ से डायमंड अचीवर अवार्ड दिया गया। आसाम बुक ऑफ रिकॉर्ड में जिम्मेदार नागरिक के रूप में आपका नाम दर्ज किया गया है क्यों कि आपने महामारी के समय में सभी गाइडलाइंस का पालन करते हुए घर में रहते हुए 5 हजार से भी ज्यादा महिलाओ को शिक्षित किया।

अर्पिता जी कहती है कि इन सभी इनामों से ज्यादा बड़ा इनाम मुझे जो मिला वो है लोगो का प्यार और सम्मान। जहां मैं जाती हूं मुझे बहुत स्नेह और आशीष लोगो से मिलती है ।इस बात की मुझे बहुत खुशी होती है।

लेखन का भी है शौक

डॉक्टर अर्पिता जी को समाज सेवा में रुचि तो है ही साथ ही वो खाली समय में अपने मन की भावनाएं कागज में भी उतारती है। लघु कथा व कविताओं के द्वारा सामाजिक मुद्दे को उजागर करने मे उनकी रूचि  है |  उनके द्वारा लिखे लेख कई मैगजीन और न्यूज पेपर में भी छप चुके है। 

महिलाओ और बच्चियों के लिए इतना सराहनीय कार्य करने का आभार देने के लिए हमारी फोकस हर लाइफ की टीम डॉक्टर अर्पिता गुप्ता जी के पास गई और कई सवाल भी किए जिनके जवाब भी हमे मिले आप भी जाने उन सवालों के उत्तर।

फोकस हर लाइफ..आप एक पैथोलॉजिस्ट है ,फिर आप को समाजसेवा करने की प्रेरणा कैसे हुई?

डॉक्टर अर्पिता..सच कहूं तो सेवा करने का गुण तो मुझे अपने परिवार से विरासत में मिला है। मैं चिकित्सा क्षेत्र में जब थी पूरी तरह से तब भी मैं महिलाओ,बच्चो,वरिष्ठ नागरिकों के लिए फ्री चिकित्सा शिविर लगती थी। इसी सिलसिले में जब मुझे गांव जाने का मौका मिला तब मैने वहा पर औरतों की दयनीय स्थिति देखी। औरते अभी भी पुरानी रीति रिवाजों के बंधन में बंधी थी वो स्वयं पर ध्यान ही नही दे पा रही थी क्योंकि उनमें शिक्षा का अभाव था। मुझसे उनकी ये स्थिति देखी नही गई । मुझे उनके लिए कुछ करना था और सिर्फ चिकित्सा से जुड़ कर उनके लिए कुछ कर पाना संभव नहीं था। इसीलिए मैंने निजी स्तर पर अपना एनजीओ खोला ताकि महिलाओं ,बालिकाओं को शिक्षित कर सकूं।

फोकस हर लाइफ..हमने सुना है कि जब कोरोना काल चल रहा था ,सब कुछ बंद था तब आपने लगातार ऑनलाइन क्लास दी तो वो किस तरह की क्लासेज थी ,उनसे बच्चो को क्या फायदा मिला?

डॉक्टर अर्पिता.. यहां मै एक बात कहना चाहूंगी की लोग कहते है कि सोशल साइट्स में कुछ अच्छा नहीं होता । समय का दुरुपयोग है, गलत यूज होता है । पर मेरा मानना है कि हर चीज के दो पहलू होते है । आप सोशल साइट्स से जुड़ कर कुछ अच्छा भी कर सकती है। जैसा कि हमारी टीम ने किया। आप देख सकती है कि हर एक घर में चाहे राशन हो न हो पर एंड्राइड फोन जरूर मिलेंगे। बस इसी का फायदा हमने उठाया और देश भर से महिलाओं,बच्चियों को जोड़ा इन्ही फोन और सोशल साइट्स के जरिए।हमने उनको शिक्षित किया और पांच तरह के कोर्स भी चलाए। जिनमे पहला कोर्स था माइंड वॉर क्विज। जिसमे हम अपनी भारतीय संस्कृति,इतिहास, सामान्य ज्ञान  के बारे में उनको शिक्षा देते थे क्योंकि आज के समय में ये सब ज्ञान होना बहुत जरूरी है। दूसरा कोर्स था हस्त कला का जिसमे हम महिलाओं बच्चियों को कई तरह के हस्त कार्य में पारंगत करते थे ताकि वो आगे चलकर इसको व्यवसाय बनाए। जैसे  हमने पार्लर का कोर्स ऑनलाइन सिखाया, कपड़े और कागज से बैग बनाना बताया और अब कोरोना खत्म होने के बाद उन्होंने इसे अपना रोजगार भी बनाया है। तीसरा कोर्स था ज्ञानोदय कक्षा जिसमे हम बेसिक सब्जेक्ट इंग्लिश,हिंदी,और मैथ्स की क्लास लगाते थे। चौथा कोर्स था लॉकडाउन यूटिलिटी कोर्स जिसमे हम वेस्ट चीजों से नई चीजों को बनाना सिखाया। घर में ही रखी वस्तुओ से नई नई डिश बनानी बताई।जिससे वो इस समय को भी एंजॉय करे। वो ये समझे कि खुशी हमे किसी बड़ी चीज से नहीं मिलेगी हमे छोटी सी चीज में भी खुश होना आना चाहिए।पांचवा कोर्स था प्रेरणा जिसमे हमने उनमें स्वच्छता,संस्कार,सहयोग और समर्पण के गुण विकसित करने की कोशिश की। उनको ये समझाया कि अपने दिन की शुरुवात अपने बड़ो के आशीर्वाद से करना चाहिए। इससे दिन भर आप ऊर्जावान रहती है।दूसरा हमने ये समझाया कि आप अपने घर में जो सब्जी आती है उसके ही बीज निकाल कर अपने घर में बो सकती है और उसे संभाले तो थोड़े दिन की मेहनत से आपके घर में हरियाली भी हो जाएगी और छोटा किचन गार्डन भी तैयार हो जाएगा। इस तरह से देश भर से 5 हजार से भी ज्यादा महिलाओ और बालिकाओं को हमने कोरोना की महामारी के समय सभी गाइडलाइंस का पालन करते हुए शिक्षित करने की एक सकारात्मक पहल की और अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला।

फोकस हर लाइफ..आप ये बताइए कि आप जो कार्य कर रही है उसमे निम्न वर्ग की महिलाओ और बच्चो को आपने कैसे जोड़ा, उन्हे किस तरह से आप शिक्षित कर रही है?

डॉक्टर अर्पिता गुप्ता..सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगी की मैने महिलाओ के मन में ये भावना पैदा की कि शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती। आप किसी भी उम्र में कुछ भी सीख सकती है और किसी से भी सीख सकती है। आजकल के तो बच्चे ही हमे बहुत कुछ सिखा देते है। हमने उनके मन से ये डर निकाला। क्यों कि शिक्षा से उन्हे अच्छे बुरे की समझ भी आएगी। हमने उनके हुनर को तराशा क्यों कि सभी में कुछ न कुछ हुनर जरूर होता है।

बस जरूरत है अपने हुनर को पहचानने की और अपने मन से हिचक मिटाने की। हमने उनको समझाया कि आप अपने हुनर से अपनी पहचान बना सकती है।अगर आपको खाना अच्छा बनाना आता है तो आप अपना टिफिन सेंटर खोल सकती है। और अगर आप पढ़ी लिखी है तो आप कुछ भी कर सकती है। हमने महिलाओं के घर घर जाकर उन्हें जागरूक किया साथ में उनको घर जाकर पढ़ाया भी क्युकी उनके परिवार उनको भेजते नही थे।सारी पठन सामग्री भी उपलब्ध कराई उनको। एक ये अच्छा रिस्पॉन्स हमे मिला की बुजुर्ग महिला तक पढ़ती थी और वो ये कहती की तुमने हमारा सपना पूरा कर दिया। इन दुआओं से बढ़कर कुछ नही। बहुत अच्छा लगता है बुजुर्गो की दुआएं पाकर।

फोकस हर लाइफ.. आप महिलाओ बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए जो इतना प्रयास कर रही है,उसके लिए आप फंड कहा से मैनेज करती है?

डॉक्टर अर्पिता गुप्ता.. आप फंड की बात कर रही है तो मैं यहां ये बताना चाहूंगी की मेरी संस्था के फाइनेंस मिनिस्टर है मेरे जीवन साथी यानी मेरे हसबैंड। सबसे पहले मैं उनको धन्यवाद देना चाहूंगी। जब उनको ये पता चला कि मुझे भौतिक चीजों से ज्यादा दूसरो की मदद करने में खुशी मिलती है तो उन्होंने मेरा पूरा साथ दिया। वो कभी मना नहीं करते मै जब भी किसी की मदद के लिए कुछ लेकर आती हू। उनके सहयोग के साथ मेरे दोनों बच्चे महक, तनय, माता-पिता, दादा-दादी सभी ने पूरी मदद की । तो परिवार का मुझे फुल सपोर्ट मिला कही बाहर से मदद की जरूरत ही नही पड़ी कभी।

फोकस हर लाइफ.. महिलाओ को शिक्षित करना घर घर जाकर अपने आप में एक चुनौती है। आपको किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा महिलाओ को शिक्षित करने में?

डॉक्टर अर्पिता गुप्ता..ये आपने बहुत अच्छा सवाल किया। महिलाओ को शिक्षित करने में ये बड़ी दिक्कत आई कि उनके घर वालो की सोच ये थी कि महिलाओ को शिक्षा की क्या जरूरत। अगर महिलाए शिक्षित हो जाएंगी तो कहीं बाहर जाकर काम न करने लग जाए तो घर का काम कौन करेगा। फिर उनको ये भी लगा कि कही उनके घर की महिला शिक्षित होकर अपना काम न शुरू कर दे, कमाने ना लगे और उनको दबाने न लग जाए। जबकि महिला कभी भी अपने पति को दबाती नही है वो उसको सपोर्ट करना चाहती है। इन्ही सब बातो को लेकर मुझे संघर्ष करना पड़ा। महिलाओ को घर से निकालना आसान नहीं था। उनको शिक्षा के बारे में अपने स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना एक चैलेंज रहा मेरे लिए। क्यों कि लेडीज कभी भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखती सबसे आखिर में वो खुद को देखती है। उनको ये समझाया कि आप स्वस्थ रहेंगी तो आप अपने परिवार को भी स्वस्थ रख पाएंगी। 

फोकस हर लाइफ..अंत में आप महिला दिवस के अवसर में महिलाओ को क्या संदेश देना चाहेंगी?

डॉक्टर अर्पिता गुप्ता.. मैं सभी महिलाओं को और पूरे देश को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई देना चाहूंगी सबसे पहले तो। फिर सभी महिलाओं से मैं ये कहना चाहूंगी कि सिर्फ संपन्नता से ही बदलाव संभव नहीं है आप शारीरिक रूप से भी अपने आस पास समाज में बदलाव ला सकती है। अपने आस पास देखिए जरूरत मंद लोगो की मदद कीजिए । आपको एक अनूठी खुशी मिलेगी जो आपको लाखो रुपए कमा कर भी नहीं मिलेगी। इसके साथ ही मैं सभी माताओं से ये निवेदन भी करना चाहूंगी कि वो अपने बच्चो में मार्क्स को लेकर प्रतिस्पर्धा न रखकर अच्छे कार्य करने की प्रतिस्पर्धा रखे ताकि बच्चो में समाज के लिए कुछ अच्छा करने की भावना जागेगी। जब सब एक दूसरे की मदद करेंगे तो आगे हमे कोई संस्थान खोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

बच्चियों का व्यक्तित्व को निखारने के लिए डॉक्टर अर्पिता गुप्ता जी की ये पहल वाकई काबिले तारीफ है। क्यों कि औरतों का सम्मान है जहां समाज का उत्थान है वहा। औरते को अपने पैरो पर खड़ा करने के लिए जो कदम आपने उठाए उसके लिए फोकस हर लाइफ की पूरी टीम की तरफ से आपको धन्यवाद। किसी ने क्या खूब कहा है अपने हौसले से दुनिया को बदल दू दुनिया जान लो हां मैं औरत हूं।