अपने ही बच्चे को दुश्मन क्यों समझने लगतीं हैं प्रसूताएं, डिलेवरी के बाद के बदलावों से जुड़ी समस्याएं समझिए
मनोचिकित्सक रश्मि मोघे आज महिलाओं को डिलिवरी के पश्चात होने वाली तीन प्रमुख मानसिक समस्याओं के बारे में जानकारी देंगी....
फीचर्स डेस्क। गर्भ को बनाए रखने के लिए गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के कुछ हार्मोन्स का स्तर उच्च अवस्था में रहता है, डिलिवरी के तुरंत बाद ये हार्मोन्स अचानक बहुत कम होकर इनका स्तर बहुत नीचे गिर जाता है। अचानक होने वाले हार्मोनल और शारीरिक बदलाव, बच्चे की जिम्मेदारी, बहुत से सामाजिक, पारिवारिक कारण महिला की मनोदशा को प्रभावित करते हैं।
लगभग 50 से 80 फीसदी नई माताएं बेबी ब्लूज या पोस्ट पार्टम ब्लूज नामक अवस्था से गुजरती हैं, इसके लक्षण डिलिवरी के बाद जल्दी ही दिखने लगते हैं जिसमे रोना आना, चिड़चिड, घबराहट, नींद में दिक्कत, भावनात्मक उतार चढाव, उदासी आदि होते हैं, किंतु ये लक्षण 10,12 दिनो में अपने आप समाप्त हो जाते हैं, बस माता को अच्छी देखभाल और सहयोग मिलता रहे।
100 में से लगभग 10 से 15 माताओं को डिलिवरी के बाद इस से अधिक गंभीर समस्या होती है जिसे पोस्ट पार्टम डिप्रेशन कहते हैं, जिसमे, भूख और नींद में गड़बड़ी, अत्यधिक उदासी, बेहद थकान, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट, हताशा, गहरी निराशा, जीवन से अरुचि, नाउमीदी, बच्चे के प्रति नकारात्मक विचार, आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। इसमें परिजनों को कई बार ऐसा लगता है कि बहू काम नही करना चाहती, खुश क्यों नही रहती। किंतु बिना इलाज के ये लक्षण महीनों महीनों बने रह सकते हैं और गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं।
तीसरी अपेक्षाकृत दुर्लभ स्थिति है पोस्ट पार्टम साइकोसिस, 1000 में से एक या दो माताओं को हैल्यूसिनेशंस, याने ऐसी आवाजें सुनाई देना या ऐसे लोग या वस्तुएं दिखाई देना जिनका कोई अस्तित्व नहीं है, तरह तरह के भ्रम होना, ऐसा लगना कि बच्चे में कोई चमत्कारिक शक्ति है या ये बच्चा किसी दुष्ट आत्मा का प्रतीक है, गुस्सा या बिल्कुल ठंडा व्यवहार, बच्चे को नुकसान करने या हत्या तक की कोशिश करना आदि लक्षण हो सकते हैं, परिजन कई बार तांत्रिक ओझा से झाड़ा लगवाना, अनुष्ठान आदि करने लगते हैं जबकि इस परिस्थिति में तुरंत मनोचिकित्सकीय इलाज की आवश्यकता होती है।
ये सभी दिक्कतें, बढ़िया दवाइयों, भरपूर सपोर्ट और अच्छी काउंसलिंग से ठीक हो सकती हैं। मनोचिकित्सक की सहायता लेने से गुरेज ना करें।
इनपुट सोर्स : डॉक्टर रश्मि मोघे हिरवे,
मनोचिकित्सक, सिनेप्स न्यूरो साइंसेज, आकृति इकोसिटी, भोपाल