इशारों को समझ पाएं अब ऐसा दिल कहां

इशारों को समझ पाएं अब ऐसा दिल कहां

फीचर्स डेस्क। वक्त का सफर...कदम-कदम पर अपना अक्स छोड़ता चला गया। कभी याद बनकर... तो कभी तुम्हारी शोखियां... कभी रंजिशे... तो कभी तकरार...कभी तुम्हारी तुनकमिजाजी तो कभी मेरी तरफ बढ़ी हुई नजदीकियां। यह सब एक साथ मुझे उन दिनों की याद दिला गईं जो तुम्हारे बाजू में मैंने एक महीनें बिताएं थे। मेरी आंखें बेताब थी तुम्हें देखने को, मेरे ख्वाब पूरे हो रहे थे तुम्हारे सामने देख कर। एक बारगी तो मुझे भरोसा ही नहीं हुआ जब तुम्हारा हसबैंड तुम्हें बीएचयू दिखाने के लिए मेरे रूम पर रुकने के लिए बोला। लेकिन उस समय मुझे भी लोगों के मुंह से अक्सर सुने कि प्यार सच्चा हो तो मुलाकात हो ही जाती हैं जैसे वल्र्ड सच लगने लगे जब तुम अतत: रात में मेरे रूम पर आ ही गई। तुम्हें सामने देखकर पता नहीं क्यों भरोसा ही नहीं हो रहा था कि तुम वही हो लेकिन इनकार भी तो नहीं किया जा सकता था क्योंकि तुम वही थी। 

दरअसल, जैसे ही आफिस में काम करते हुए मुझे पता चला कि तुम आ रही हो और फिर मेरे रूम पर आते ही तुम मेरे सामने थी। आज भी तुम उतनी ही खूबसूरत लग रही थी, जितनी दो साल पहले अपनी पहली मुलाकात में तुम्हें देखते ही मेरा दिल मुझसे बॉय बॉय बॉय कहकर तुम्हारे पास चला गया था। शायद तुम-सा हसीन दुनिया में कोई और नहीं था। तुम्हारी खूबसूरती तो वैसी ही थी आज भी, लेकिन आज तुम वो पहलेवाली भी नहीं लग रही थीं। तुम्हारा वो शोख अंदाज, वो सारे तेवर और आंखों की वो कशिश, जो तुम्हारे सौंदर्य का सबसे बड़ा आकर्षण थीं, नजर नहीं आ रही थी। खैर तुम जैसी दिख रही थी अच्छी लग रही थी। जब तुम मिली तो तुम्हारी उन आंखों में सिर्फ गिले-शिकवे थे, जो मुझसे कह रहे थे 'क्या कोई इस तरह भी चला आता है?Ó और फिर तुम्हारी आंखें नम होती चली गईं। तुम्हारी ऐसी दशा देख बहुत दुखी होकर तुम्हें अपने हृदय से लगाने का दिल तो कर रहा था लेकिन...।  

बार-बार वो दिन याद आ रहे थे जब दो साल पहले जिसने चोरी से नाश्ता दिया हो, जिसने हर बात मेरी बड़ी चालाकी से सबके सामने रखी हो। जिसने मार्केट मेरे साथ जाने का बहाना बनाया हो। वह कोई और हो ही नहीं सकता वह तुम ही हो। बड़ी रात तक मैं और मेरी वाइफ तुमसे बात करते रहे। तुम्हारे हसबैंड और मेरी वाइफ को शायद इस कहानी की इंट्रों भी नहीं पता और हम मिलकर गुलिस्ता की सैर करते रहें। हर बात बड़े चालकी से एक दूसरे को बोलते रहे  लेकिन उन अनजानों को बताने के लिए भला रिस्क कौन लेने वाला था। दूसरे दिन सुबह बीएचयू पहुंचे तो लाइन में साहब लग गए और हम दोनों के लिए इससे बेहतर और समय कहा मिलने वाला था इसलिए थोड़े लड़े झगड़े तो थोड़ा प्यार दिखाया और अंतत: बार बार मिलने की एक वादा कर जल्द ही सहज भाव में खड़े हो गए।

इतनी बड़ी कहानी के लिए इन चंद मिनट का समय कहा उपयुक्त होता लेकिन न मिलने से इन चंद मिनट भी कई जन्मों जैसा अहसास कराने से कम नहीं था। वो पल भी शायद कभी न भूले जब हम दोनों वेटिंग प्लेस पर बैठे थे और साथ में आए साहब बच्चे को लेकर बाहर अंदर लेकर टहल रहे थे। उस समय लग रहा था कि पूरे लाइफ की बातें अभी पूरा कर लूं कल हो न  हो। सबसे अधिक तो दिल की खुशी उस समय मिली जब तुम्हारी जांच की रिपोर्ट अगले दिन मिलने की बता पता चली। तुम शाम को टे्रन पकडऩे वाली थी लेकिन शायद उपर वाले को एक रात और देने की दया आ गई हो।

दूसरे दिन शाम को हम चारों लोग बहुत बातें करते हुए एक दूसरे को लोगों के नजर में नीचे दिखाना भी नहीं छोड़ा खासतौर पर खिचाई तो तुमने मेरी खूब की। बस प्यार ऐसा ही होता है शायद यही बात मेरे को बेवस किये जा रहा था। आज तुम चली गई लेकिन जाते हुए एक बड़ी जिम्मेदारी देकर जिसे निभाउ तो प्यार न निभाऊ तो बेवफाई। 

                                                                                                                                                                    आर.पी. सिंह, यूपी, वाराणसी। 

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