उत्पन्ना एकादशी: क्या है इसके व्रत का विधान और पौराणिक कथा, जानिए ज्योतिषविद विमल जैन से

उत्पन्ना एकादशी जिसे पापाकुंशा एकादशी के नाम से जाना जाता है, इसका व्रत करने से शारीरिक और मानसिक स्थिति मजबूत होती है। क्या है इस व्रत की पूर्ण विधि और हमें इस दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसकी संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं ज्योतिषविद विमल जैन...

उत्पन्ना एकादशी: क्या है इसके व्रत का विधान और पौराणिक कथा, जानिए ज्योतिषविद विमल जैन से
उत्पन्ना एकादशी: क्या है इसके व्रत का विधान और पौराणिक कथा, जानिए ज्योतिषविद विमल जैन से

फीचर्स डेस्क। भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार हर माह की विशिष्ट तिथि की खास पहचान हैं। सभी तिथियों का किसी ना किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से संबंध है। तिथि विशेष पर पूजा अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती हैं। उत्पन्ना एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु की उपासना करने से अतीत और वर्तमान के पाप धुल जाते हैं। प्रख्यात ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 29 नवंबर सोमवार को अर्धरात्रि के बाद 4:14 पर लगेगी जो कि 30 नवंबर मंगलवार को अर्धरात्रि के पश्चात 2:14 तक रहेगी। उदया तिथि में 30 नवंबर मंगलवार को एकादशी तिथि होने के फलस्वरूप उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

व्रत का विधान

विमल जैन बताते हैं की व्रत के दिन व्रतकर्ता को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृतियों से निवृत्त होकर गंगा स्नान आदि करना चाहिए। गंगा स्नान यदि संभव ना हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। अपने आराध्य देवी देवता की पूजा अर्चना करने के बाद उत्पन्ना एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत के दिन प्रातः काल सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्रत का पारण दूसरे दिन द्वादशी तिथि को स्नानादि के पश्चात देवी देवता तथा भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना करने के बाद भी किया जाता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत महिला और पुरुष दोनों के लिए ही समान रूप से फलदाई है।

पौराणिक कथा

प्राचीन काल में मुर नामक एक राक्षस था जिसने अपने बुरे कर्मों के साथ आतंक पैदा किया और सभी तीनों लोगों में भय का वातावरण फैला दिया। राक्षस मुर की शक्तियों और गलत कर्मों के कारण सभी देवी देवताओं को बहुत भय हुआ और उन्होंने मदद के लिए विष्णु भगवान की साधना की। तब भगवान विष्णु ने सैकड़ों वर्षो तक उसके साथ युद्ध किया। इस बीच थकान की वजह से भगवान विष्णु थोड़ा आराम करना चाहते थे इसलिए उन्होंने गुफा में प्रवेश किया और वहां सो गए। गुफा का नाम हेमावती था। उस समय दानव मुर ने केवल गुफा के अंदर विष्णु भगवान की हत्या के बारे में सोचा था। उस विशेष पल में एक खूबसूरत महिला दिखाई दी और उसने लंबी लड़ाई के बाद राक्षस को मार डाला। उस समय जब भगवान विष्णु जागे तो राक्षस के मृत शरीर को देखकर वह चौक गए। वह महिला भगवान विष्णु का हिस्सा थी और उन्होंने उसे एकादशी का नाम दिया और उस समय अवधि के बाद से यह दिवस उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

क्या करें क्या न करें

आज के दिन संपूर्ण दिवस निराहार रहना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध है। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। विधि विधान पूर्वक उत्पन्ना एकादशी के व्रत और भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आरोग्य व सौभाग्य की अभिवृद्धि भी होती हैं। मन वचन कर्म से पूर्णरूपेण स्वच्छता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदाई रहता है। व्रत के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।

तो आप भी ये व्रत करें और भगवान विष्णु की कृपा के पात्र बनिए।

इनपुट सोर्स: ज्योतिषविद विमल जैन (वाराणसी सिटी)