घर वास्तु के हिसाब से होना चाहिए, पढ़ें क्या है वास्तु?

घर वास्तु के हिसाब से होना चाहिए, पढ़ें क्या है वास्तु?

फीचर्स डेस्क। प्राचीन समय से ही वास्तु शास्त्र का उपयोग हो रहा है। देश की संस्कृति का प्राण धर्म रहा है। कला पूर्ण निर्माण कार्य के लिए "वास्तु शास्त्र" का उपयोग होता था। " वास्तु" शब्द की व्युत्पत्ति "वस" धातु से हुई है। इसका अर्थ है किसी एक स्थान पर निवास करना। वास्तुशास्त्र एक ऐसा भवन वतावरण बनाता है जहाँ व्यक्ति को अलौकिक शांति महसूस होती है। जिससे उसका बौद्धिक विकास होता है। वास्तु का मतलब है रहने योग्य स्थान पंच तत्व का संतुलन ही वास्तु है।

पंच तत्व 

1 पृथ्वी- उचित ठोस वस्तु यानी पृथ्वी , घर बनाने के उपयोग की सामग्री ।

2 वायु- वायु का आवागमन यानी घर मे खुला स्थान , जिससे कि शुद्ध हवा अंदर आये , बाहर जाए ।

3 जल- जल ही जीवन है " शुद्ध जल , गंदे जल का उचित निकास बहुत महत्वपूर्ण है।

4 अग्नि- सूर्य की रोशनी , उचित प्रकाश व्यवस्था घर में हो यह देखना ।

5 अनन्त ( आकाश)  खुला भाग रिक्त स्थान घर मे जिसको हम पहले आंगन कहते थे ब्रह्म स्थान भी ।।

वास्तु में 10 दिशाओं का उपयोग ओर उचित समायोजन होता है।

1 पूर्व

2 पश्चिम

3 उत्तर

4 दक्षिण

5 पूर्व दक्षिण अग्नि कोण

6 पूर्व उत्तर ईशान

7 दक्षिण पश्चिम नेऋत्य

8 उत्तर पश्चिम वायव्य

9 आकाश ब्रह्म स्थान

10 पाताल

 जब दिन बड़े रात छोटी होती है तब सूर्योदय ईशान से होता है। जब दिन रात बराबर होते है तो सूर्योदय पूर्व से होता है। जब दिन छोटे रात बड़ी होती है तब सूर्योदय आग्नेय से होता है। पहले के समय मे दिशा का निर्धारण रात्रि के ध्रुव तारे को देख होता था। दोहपर में शिवालय को देख कर दिशा निर्धारित होती थी।: दिशा निर्धारण के लिए पहले शंकु को भी उपयोग लेते थे। सूर्योदय से पहले एक सीधी लकड़ी को जमीन में गाड़ देते । सूर्योदय के एक घण्टे बाद जहां छाया जाती उसकी दूसरी तरफ पूर्व दिशा होती है यह मानते थे। सूर्य जब उत्तर में रहता है तो 6 माह उत्तरायण। जब 6 माह दक्षिण में रहता है तो दक्षिणायन। स्त्री ऊर्जा का प्रतीक है पुरूष तत्व यानी एनर्जी का प्रतीक है। पंच तत्व का संतुलन ही एनर्जी है ह्रदय के ऊपर का भाग पोजेटिव नीचे का नेगेटिव होता है।: वास्तु ओर हमारे शरीर मे 45 देवताओं ओर 45 तरह की एनर्जी होती है। सम्पूर्ण वास्तु में ब्रह्म स्थान और ईशान कोण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है जिसको सही रखना जरूरी है। यदि भवन निर्माण के समय शिलान्यास गलत समय या गलत जगह हो जाता है तो इस दोष को हम आजीवन दूर नही कर सकते।

इनपुट सोर्स : डॉ सारिका औदिच्यजयपुर।