लघु कथा : उदास कृति

मैं तो अपने मन की कह भी नहीं पाया। स्निग्धा अपने सपनों की रंगीन उड़ान भरने चली गई। उसके बाद मैंने भी.....

लघु कथा : उदास कृति

फीचर्स डेस्क। सलिल कल रात से ही परेशान था।शनिवार को , 'ललित कला अकादमी' में उसकी कृतियों की प्रदर्शनी है । शहर और आसपास के जाने-माने लोग उसकी प्रदर्शनी में आएंंगे। सलिल कोई भी कमी, नहीं छोड़ना चाहता था।  रात भर इस पाषाण मूर्ति में प्राण फूँकने का काम करता रहा। परंतु जैसे ही कमनीय सी मूर्ति को देखता उसे लगता, कुछ अधूरा सा है। 
सलिल एक जाना माना आर्टिस्ट है और बड़े-बड़े नेता ,अभिनेता की कलाकृतियाँ बनाता है । शहर में उसका बड़ा नाम है। प्रदर्शनी में जाने वाली सभी कृतियाँ तैयार है परंतु यह कृति उसके दिल के बहुत करीब थी।  इसका चेहरा कहीं स्निग्धा की प्रतिमूर्ति तो नहीं!!इतनी कोशिश करने के बाद भी वह इसमें अहसास ही नहीं भर पा रहा था । 
मैं थक कर बैठ गया और अतीत में चला गया । मुझे कॉलेज का समय याद आ गया। मैं और स्निग्धा एक साथ गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स में पढ़ते थे।मेरी और स्निग्धा की अच्छी दोस्ती थी। 
पत्थरों में एहसासों को उकेरना मैंने वही सीखा था। स्निग्धा रंग और तूलिका की मास्टर थी, कुछ ही मिनटों में वह  हुबहू तस्वीर कैनवस पर उतार देती थी। मैं स्निग्धा को मन ही मन चाहने लगा था । पर मैं कभी कुछ कह नहीं पाया कि वह दोस्त से कुछ विशेष है । 
ऐसा करते-करते कॉलेज का फाइनल ईयर आ गया। अचानक एक दिन सुबह स्निग्धा कॉलेज में आई और वह बहुत खुश थी। 
" सुनो सलिल, आज मैं बहुत खुश हूं! "
" बताओ क्या हुआ? " क्या कोई जॉब का ऑफर आ गया है? , जो इतनी खुश घूम रही हो! ! 
"मेरा दाखिला मास्टर्स में विदेश में हो गया है और 1 सप्ताह बाद में जा रही हूं। "
मुझे तो उसके बाद जैसे कुछ सुनाई नहीं दिया!, मैं तो बधाई देना भी भूल गया! ! 
मैं तो अपने मन की कह भी नहीं पाया। स्निग्धा अपने सपनों की रंगीन उड़ान भरने चली गई। उसके बाद मैंने भी खुद को अपने कला के प्रति समर्पित कर दिया। आज इस बात को 7-8 वर्ष बीत गए है । मैं रात दिन कलाकृतियाँ बनाता हूँ । बस एक बात समझ नहीं आती कि मेरी कृतियाँ मुस्कुराती नहीं, खिलखिलाती नहीं !! बहुत कोशिश करने के बाद भी एक अजीब सी खामोशी और उदासी मेरी कृतियों की आंँखों में रहती है। 
शायद कुछ कहना चाहती हैं जो सलिल समझ नहीं पा रहा ! कुछ अधूरा सा जिंदगी में रह गया है वहीं कृतियों में दिखाई देता है। 
            
इनपुट सोर्स: रेखा मित्तल