लघु कथा : अंतहीन

उसे तो हमेशा अपनी माँ का प्यार- दुलार याद आता. अपने बाबा याद आते, अपनी बहन याद आती. गाँव के लोग याद आते. उसके बाबा जब भी उस से मिलने आते वह उनके साथ जाने के लिए रोने लगता. सुदेश बड़ी मुश्किल से उसे समझा- बुझाकर वापस लौट आता....

लघु कथा : अंतहीन

फीचर्स डेस्क। सुदेश एक किसान था. थोड़े- से खेत थे उसके पास. उसी से उसका गुजारा होता था. वैसे उसके पास खाने- पीने की कोई कमी नहीं थी. उसकी पत्नी थी लक्ष्मी, सात- आठ साल का एक बेटा था.. नाम था मनकू. एक- दो साल की एक बेटी भी थी. सुदेश था तो गरीब लेकिन कल्पनाएँ बड़ी- बड़ी करता था. वह चाहता था कि उसका बेटा किसी अच्छे स्कूल में पढ़े. पढ़- लिख कर डॉक्टर, कलक्टर बने. इसके लिए वह जी- तोड़ मेहनत करता था. उसकी पत्नी भी इधर-उधर काम कर के पैसे जोड़ती थी. वैसे सुदेश था बड़ा ही ईमानदार, मिलनसार और हंसमुख. गाँव वाले उस से बहुत खुश रहते थे

गाँव में ही एक मास्टर जी थे जिन के पास मनकू पढ़ने जाया करता था लेकिन गाँव की पढ़ाई तो नाम की ही थी. अतः मनकू घूमता- फिरता, कभी खेलता- कूदता, कभी लड़ाई- झगड़े करता. ऐसे तो वह था बड़ा ही प्यारा, बहुत भोला- भाला. सब लोग उसे बहुत चाहते थे क्योंकि वह सबका कुछ न कुछ काम कर देता था. जब सुदेश के पास कुछ पैसे इकट्ठे हो गए तो उसने सोचा कि मनकू को पढ़ने के लिए शहर भेज दे और दिल से हिम्मती सुदेश ने एक दिन मनकू को शहर के एक अच्छे स्कूल में भर्ती भी करा दिया

अपने प्यारे- दुलारे बेटे को स्कूल में छोड़ कर भरे मन से वह घर वापस चला आया.अब तो जैसे उसकी जिन्दगी ही बदल गई थी. वह दिन- रात सिर्फ मनकू के बारे में ही सोचा करता और अपने को कोसता कि क्यों दूर कर दिया अपने नन्हें- से बच्चे को. उसकी पत्नी भी उसे उलाहना देती रहती कि मेरे बच्चे को मुझसे क्यों छीन लिया.न जाने क्या खाया होगा, कैसे सोया होगा..? आखिर पढ़ कर करेगा क्या? इस से तो अच्छा था कि वह यहीं रहता हमारे सामने हमारे पास. सुदेश और उसकी पत्नी दोनों अपने बच्चे के लिए बेसब्र रहते. किसी काम में उनका मन नहीं लगता. गाँव वाले समझाते.. "क्यों रोते हो सुदेश..मनकू पढ़- लिख कर हमारे गाँव का नाम ऊंचा करेगा.जब वह बड़ा बाबू बन कर आएगा तो कितनी खुशी होगी हम सब को. बहुत अच्छा किया जो तुमने मनकू को पढ़ने शहर भेज दिया"

लोगों की बातें सुनकर सुदेश कल्पनाओं में खो जाता... जब उसका बेटा पढ़- लिख कर डॉक्टर, कलक्टर बनेगा तो उसे कितनी खुशी होगी.सब उसे बड़ा आदमी कहेंगे.. हमारा एक बहुत बड़ा मकान होगा.. दास- दासियां और नौकर- चाकर होंगे. मैं मनकू की खूब सेवा करूँगा. लक्ष्मी उसके पैर दबाएगी. मेरा बेटा राजकुमारों- सा होगा... और फिर एक दिन कोई राजकुमारी मेरी बहू बनकर आएगी.. हम उस से कोई काम नहीं कराएंगे.. उसे तो हीरे की तरह सम्भाल कर रखेंगे.. इन्हीं सारे सपनों में सुदेश खोया रहता.सच.. कल्पना कितनी मीठी होती है. सुदेश भी कल्पनाओं के आकाश में उड़ान भर- भर कर अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझता लेकिन ये सारे सपने उस समय टूट जाते जब मनकू को हर महीने पैसे भेजने होते. इसके लिए वह लोगों से उधार लेता. उनकी विनती करता. स्वयं जी- तोड़ मेहनत करता. पैसे जुटाने में दिन- रात एक कर देता. फिर भी पैसे कम पड़ जाते.एक समय ऐसा आया जब सबने उसे उधार देने से मना कर दिया. लेकिन सुदेश और उसकी पत्नी ने हिम्मत नहीं हारी. अपनी जमीन बेंच दी. जिस तरह भी हो पाया लेकिन मनकू को कोई कमी नहीं होने दिया

इधर मनकू जब नये स्कूल में भर्ती हुआ तो अनजान जगह उसे नहीं भाई. दिन- भर उदास रहता. किसी बच्चे के साथ नहीं खेलता. उसे तो हमेशा अपनी माँ का प्यार- दुलार याद आता. अपने बाबा याद आते, अपनी बहन याद आती. गाँव के लोग याद आते. उसके बाबा जब भी उस से मिलने आते वह उनके साथ जाने के लिए रोने लगता. सुदेश बड़ी मुश्किल से उसे समझा- बुझाकर वापस लौट आता

मनकू को उसके क्लास के सारे बच्चे चिढ़ाते, उसे तंग करते.वह बेचारा दिन- रात रोता रहता. अपने गाँव वापस जाने के लिए जिद्द करता.वह न पढ़ाई- लिखाई करता, न किसी से बात करता. उसके मास्टर उस से नाराज रहते, उसे डांटते, उसे मारते, उसे सजा देते. इसका परिणाम यह हुआ कि वह दिन- ब- दिन चिड़चिड़ा होता चला गया. अब उसे कोई अच्छा नहीं लगता था... न स्कूल के दोस्त, न मास्टर,न अपने माँ- बाबा. उसे कोई अपना नहीं लगता था.सब पराये- जैसे नज़र आते थे
ऐसी बात नहीं थी कि उसकी पीड़ा समझने वाला कोई था ही नहीं. उसका एक दोस्त था गोपाल. गोपाल उस स्कूल में एक नौकर था.. उम्र में बहुत बड़ा लेकिन मनकू को बहुत मानता था. उसे खिलाता पिलाता,सुलाता, उस से ढेर सारी बातें करता.. और कहानियाँ भी सुनाता. मनकू भी गोपाल की बातें मानता

धीरे- धीरे समय बीतता गया. मनकू ने बड़े अच्छे अंकों से स्कूल की परीक्षा पास की.अब उस का नाम कॉलेज में लिखा गया. कॉलेज तो उसके लिए और अधिक पतन और अवनति का कारक रहा. कॉलेज के दोस्तों के साथ वह और बिगाड़ता चला गया. लेकिन आज भी गोपाल को भूल पाना उसके लिए असंभव था. गोपाल हमेशा उससे मिलने आया करता, उसे समझाता, सही राह पर लाने की कोशिश करता. सुदेश और लक्ष्मी हमेशा समय से पैसे भेज दिया करते थे. हालांकि सुदेश के सिर पर बहुत सारा कर्ज हो गया था लेकिन मनकू की खातिर वह सब सहने को तैयार था. संयोग से मनकू को कॉलेज की परीक्षा में भी अच्छे अंक आए. अब उसे एक अच्छी नौकरी की तलाश थी. लेकिन इतना पढ़ने- लिखने के बावजूद उसे नौकरी नहीं मिली. हार कर उसने अपने लिए एक छोटी- सी नौकरी तलाश ली. सुदेश और लक्ष्मी के सारे सपने चकनाचूर हो गए. उनकी सारी मेहनत धूल- मिट्टी में मिल गई. आज तक इतने परिश्रम किये, लोगों के ताने सहे, सब निर्रथक हो गया था.अब तो उन्हें कोई उम्मीद भी नहीं रह गई थी

सुदेश और लक्ष्मी मनकू को वापस गाँव लाने के लिए शहर गए लेकिन मनकू तो गाँव और गाँव का प्यार बहुत पहले ही भूल चुका था. मनकू किसी भी कीमत पर गाँव जाने को तैयार नहीं हुआ. सुदेश और लक्ष्मी मन मारकर गाँव वापस आ गए. अब तो उनकी बेटी भी बड़ी हो गई थी. उसने भी जगह- जगह काम करना शुरू कर दिया था. इधर मनकू को उस छोटी- सी नौकरी से संतोष नहीं हुआ.वह एक बड़ी नौकरी पाने के लिए दिन- रात कोशिश में लगा रहता. एक दिन उसे बड़ी नौकरी मिल भी गई. अब वह कलेक्टर बन गया था

सुदेश और लक्ष्मी के सूखे चेहरे पर रौनक लौट आई. उनके अच्छे दिन लौट आये थे. बधाइयाँ देने के लिए सारे गाँव वालों का तांता लग गया था. गाँव के कुछ लोग खुशी से पागल हो गए.  कुछ लोगों को उसके सौभाग्य से जलन भी होने लगी. लोगों से उधार लेकर सुदेश और लक्ष्मी ने सारे गाँव में मिठाईयाँ बंटवाई. अगले ही दिन से उसके द्वार पर शुभचिन्तकों की भीड़ लग गई. जो कल तक सीधे मुंह बात भी नहीं करते थे, जो कल तक मुंह पर थूकते थे वे अब हाथ जोड़े विनीत भाव से उस के सामने खड़े थे. सुदेश ने महसूस किया... दुनिया कितनी मतलबी है

सुदेश अब मनकू को गाँव लाने के लिए शहर जाने की तैयारी करने लगा. कुछ उत्साही लोग उसके संग हो गए. जब सुदेश शहर पहुँचा तो देखा... एक बहुत बड़ा और भव्य मकान, जिसे उसने कभी सपने में भी नहीं देखा था, आज उसके बेटे का था. उसका मनकू अब माणिकलाल बन गया था. उसके दरवाजे पर सैकड़ों लोग हाथ जोड़े खड़े थे. आज माणिकलाल के स्वागत की तैयारियां हो रही थी. सुदेश और उसके साथी भी लोगों की भीड़ में खड़े हो कर सब देखते रहे. अपने मैले- कुचैले कपड़ों में लोगों की भीड़ के सामने अपने बेटे से मिलने में उसे संकोच हुआ. वह मौके का इंतजार करने लगा

जब भीड़ छंटने लगी तब सुदेश एक माला लेकर अपने बेटे की ओर बढ़ा. लेकिन माणिकलाल तो खुश होने की बजाय बेरुखी से मुस्कुरा दिया. हाथों से माला गिर पड़ी. किसी के पैरों तले कुचली भी गई. माणिकलाल ने अपने कक्ष में बुलाया और कहा- " देखो बाबा! ये एक लाख रुपये ले लो और लौट जाओ अपने गाँव. मुझे अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है. अब फिर यहाँ कभी मत आना."

सुदेश भरी आँखों से मनकू को देखता रहा और रुपये वहीं रखकर बाहर निकल आया. उसके साथी सुदेश की स्थिति समझ नहीं पाये.. बार- बार पूछने लगे.. ऐसी क्या बात हो गई सुदेश के साथ. लेकिन सुदेश कुछ बता नहीं पाया. शून्य- सा सीढ़ियों से नीचे उतरा. दो- चार कदम जाते ही कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा और ऐसा गिरा कि फिर कभी उठ नहीं पाया. उसके साथी किसी तरह उसे टांग कर गाँव ले आये. लक्ष्मी उसे देखते ही बेहोश हो गई. लोग ऊपर वाले की दुहाई देने लगे. बड़ी देर तक लोग उसे घेरे रहे. फिर सब उन्हें उनके हाल पर छोड़ कर निराश्रित चले गए
यह कोई कहानी नहीं हकीकत है. आज भी आपको सुदेश और लक्ष्मी मिल जाएंगे, मनकू भी मिल जाएगा और मणिकलाल भी. गोपाल भी अपना निश्छल प्यार लिये कहीं खड़ा मिल जाएगा. आपको जरूरत है तो सिर्फ पहचानने की. पहचानिए.. हो सकता है कि उन्हें आपकी सहानुभूति की सख्त जरूरत हो

इनपुट सोर्स : डॉ शिप्रा मिश्रा