लघु कथा : पिंजरे में बचपन

प्रकृति को निहारना, तारों के नीचे बैठना, भाई बहनों की आपसी मस्ती, दोस्तों के साथ खेलना !! यह तो सब तो अब पुराने ज़माने की बात हो गई....

लघु कथा : पिंजरे में बचपन

फीचर्स डेस्क। "अमन, अमन! सुनो , कब से आवाज़ दे रही हूं! तुम्हारी ड्राइंग क्लास का समय हो गया है । "मैं लगभग चिल्लाते हुए घर में अमन को ढूंढ रही थी । 
"पता नहीं कब समझ आएगी इस लड़के को! पूरा घर देख लिया, कहां बैठा है? " मैं खुद ही बड़बड़ा रही थी। देखते-देखते आंगन में आ गई। 

"अरे तुम ,यहां बैठै हो ,मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे।"अमन पर तो, मानो कोई प्रतिक्रिया ही नहीं हुई!! होती भी कैसे? कानों में तो हेडफोन लगाए बैठे हैं साहिबजादे !! 
"तुमने तो मुझे बोला था ,आंगन में आम के पेड़ पर कोयल आती है तुम उसको देखने जा रहे हो। बैठकर मोबाइल पर क्या कर रहे हो। "
मैंने गुस्से से  अमन को देखा, कानों से हेडफोन निकाले!! 

"समय देखा है कितना हो गया है, ड्राइंग वाली मैम क्लास में आने  भी नहीं देंगी।"
आग लगे इन टेक्नोलॉजी वालों को, बच्चों का मासूम बचपन ही खराब कर दिया । जब से यह मुई पढ़ाई ऑनलाइन हुई है ,नन्हें नन्हें बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ा दिए।क्लास के बाद भी बच्चे सारा दिन इसी से चिपके रहते हैं। 

कभी होमवर्क ,कभी असाइनमेंट,कभी दोस्त से पूछना!!! 
मैं गहन चिंता में पड़ गई ,क्या होगा इस पीढ़ी का ? 

प्रकृति को निहारना, तारों के नीचे बैठना, भाई बहनों की आपसी मस्ती, दोस्तों के साथ खेलना !! यह तो सब तो अब पुराने ज़माने की बात हो गई ।बच्चों का अबोध बचपन इस मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में कैद होकर रह गया। बचपन में ही बड़े हो रहे हैं यह बालक!! 

जो चीजें समय के साथ सीखनी चाहिए, वह यह बच्चे सारा दिन गूगल करके सीख रहे हैं। 
शायद यह सब सीख जाएंगे पर व्यवहारिक अनुभव कहां से लाएंगे!!!! 

कोयल की कूक सुनने की बजाय, टेक्नोलॉजी के सुनहरे पिंजरे में कैद होता अबोध बचपन!! 

इनपुट सोर्स:  रेखा मित्तल