शीतला माता पूजा कल, पढ़े क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार और क्या है इसकी कथा

शीतला माता पूजा जिसे बासोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बासी भोजन माता को भोग लगाया जाता है। और फिर इसे ही लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है। इस साल 25 मार्च को शीतला माता की पूजा की जाएगी....

शीतला माता पूजा  कल, पढ़े क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार और क्या है इसकी कथा

फीचर्स डेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार शीतला माता का पूजन चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस दिन बासी खाने का भोग लगाया जाता है। यानी कि भोग का खाना  दिन पहले ही बना दिया जाता है। शीतला अष्टमी को ऋतु परिवर्तन का संकेत मानते है। आज से ही ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है। और ऐसा माना जाता है कि ग्रीष्म ऋतु में बासी भोजन नहीं खाते। इसलिए आज के दिन बासी भोजन का  भोग लगाकर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते है। कई लोग सप्तमी के दिन माता की पूजा करते है वो छठी के दिन भोग बनाते है और कई लोग सप्तमी के दिन भोग बनाकर अष्टमी पूजते है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन शीतला माता की पूजा करने से मां बच्चों को अपना आशीर्वाद देती है और चेचक,हैजा जैसी बीमारियों से उनकी रक्षा करती है।

क्या है शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त

कोई भी पूजा या हवन अगर सही मुहूर्त में की जाए तभी फल देती है। आज हम आपको बताएंगे कि पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है।

पूजा मुहूर्त: 6.29 AM से लेकर 6.41 PM तक

अवधि:12 घंटे12 मिनट

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 25 मार्च 2022 को 12.09 PM

अष्टमी तिथि समाप्त: 25 मार्च 2022 को 10.04 PM

माता शीतला करती है हर रोग दूर

मां शीतला सौभाग्य की देवी है। इनकी पूजा से समस्त रोग दूर हो जाते है और परिवार में सुख शांति बनी रहती है।माता शीतला मनुष्य के सभी तापों का नाश करती है और भक्तों के तन व मन को ठंडक प्रदान करती है। इस दिन से बासी भोजन का सेवन बंद कर दिया जाता है। हिंदू मान्यता अनुसार सिर्फ शीतला माता का व्रत व पूजा ही ऐसी है जिसमे बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। अन्य किसी व्रत में ऐसा विधान नहीं है । जो भी इस व्रत को करता है या शीतला माता की पूजा पूरी विधान से करता है सिर्फ उसके ही नहीं उसके समस्त कुल के सभी रोग नष्ट हो जाते है। इस दिन व्रती को शीतल एवं शुद्ध जल से स्नान करके पूजा करनी चाहिए। इस दिन शीतला माता की कथा और शीतला स्रोत का श्रवण अवश्य करना चाहिए बहुत लाभकारी होता है।

शीतला माता का स्वरूप

शीतला माता को अत्यंत शांत और शीतल माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये समस्त कष्ट का नाश करके सुख समृद्धि देती है। गधा इनकी सवारी है और इनके हाथों में कलश के साथ सूप,झाड़ू व नीम के पत्ते है। इनकी पूजा का ये संकेत है कि आज से ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ हो चुकी है।

शीतला माता की पूजा का तरीका

सबसे पहले प्रातः जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। फिर पूजा की थाली को सजाए। रोली,अक्षत,हल्दी,मौली ,होली वाले बरकुले की माला ,मेंहदी और काले भीगे चने से। आटे का दीपक बनाए। भोग की थाली सजाए। जल का लोटा शीतल जल से भरे ।नई मटकी रसोई घर में स्थापित करें। मटकी की पूजा करें। माता की प्रतिमा सामने रखकर पूजा करें और भोग लगाएं। फिर पूजा के जल को घर के सभी सदस्यों को दे पीने के लिए। जल को आंखों में भी लगाए। उसके बाद बचा हुआ जल घर के प्रत्येक कोने में छिड़क दें। 

शीतला माता की पौराणिक कथा

एक गांव में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। उनके दो बेटा और दो बहुएं थी। कई सालों बाद बहुओं की गोद हरी हुई थी और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। एक माह बाद शीतला अष्टमी का त्यौहार आया। बासी भोजन का भोग लगाया गया। दोनो बहुओं को डर था कि कहीं बासी भोजन खाकर वो बीमार न पड़ जाए।इसलिए उन्होंने बासी भोजन ग्रहण नहीं किया और चुपचाप ताजा भोजन बना लिया। और भरपेट भोजन कर लिया। उनकी सास ने शीतला माता के भजन के बाद जब ठंडा खाना खाने को कहा तो उन्होंने खाने का झूठा नाटक किया और काम में लग गई। दोनो बहुओं के बेटे जब शाम तक नहीं जागे तो सास ने कहा कि अब बच्चो को जगा कर उन्हे दूध पिला दो। जब बहुएं बच्चों को जगाने गई तब बच्चों को मृत पाया। ये सब शीतला माता के प्रसाद को त्यागने से हुआ। जब पूरी घटना का सास को पता चला तो वो बहुओं पर बहुत नाराज हुई और उन्हें घर से निकाल दिया। अपने मरे हुए बच्चों को टोकरी में लेता कर बहुएं घर  निकल पड़ी। चलते चलते जब थक गई तो एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे बैठ गई। उस पेड़ के नीचे पहले से ही ओरी और शीतला दो बहनें बैठी हुई थी। उनके बालों में बहुत मात्रा में जुए थी। दोनो बहुओं ने उन दोनो की जुए निकाली। तब उन दोनों बहनों को शीतलता का अनुभव हुआ। उन दोनों बहनों ने बहुओं से कहा जैसे तुमने हमारे माथे को शीतलता प्रदान की वैसे ही तुम्हारे पेट को शीतलता प्रदान हो। बहुओं ने रोकर कहा हमारे पेट के जने को ही तो हम लिए लिए फिर रहे है पर शीतला माता के दर्शन नहीं हो रहे। इस पर बहनों ने कहा तुम पापिनी हो तुमने शीतला माता का प्रसाद ठुकरा कर गरम भोजन ग्रहण किया ।इसी का परिणाम तुम्हें भुगतना पड़ा।बहुएं समझ गई कि ये ही शीतला माता है। उन्होंने उनके पैरों में गिर कर माफी मांगी और अपनी गलती का पश्चाताप किया। दोनों बहनें जो कि माता का ही रूप थी वो उनके पश्चाताप के वचनों से प्रसन्न हुई और उनके पुत्रों को पुनर्जीवित कर दिया। अपने जीवित पुत्रों को लेकर बहुएं पुनः अपने गांव लौटी। वहां जाकर उन्होंने शीतला माता की मंदिर की स्थापना की। सभी गांव वालो ने शीतला माता की महिमा को पहचाना। और प्रत्येक वर्ष शीतला अष्टमी को ठंडे खाने का भोग लगा कर उसे ग्रहण किया। जैसे शीतला माता उन बहुओं पर प्रसन्न हुई वैसे ही सब पर प्रसन्न हो।

"शीतले त्वएम जगन्माता

 शीतले त्वएम जगत पिता

 शीतले त्वएम जगद्वात्री

 शीतलायै नमो नमः।।"

Pictures Courtesy: Google